नए साल का उत्सव उत्साह पूर्ण से मना लेने के बाद मानवी जीवन जोश से, पूरे विश्व का प्यार स स्वागत करते हुए, नए साल का शुभारम्भ हो जाता है। उसके दुसरे दिन, यानि द्वितीया के दिन विश्व में, बेजोड़ ऐसा माना जाने वाला भाई दूज का त्यौहार भारतीय संस्कृति ने विश्व को दिया है। अपनी पत्नी को छोड़ पूरे विश्व की स्त्रिओ की तरफ संम्मान की द्रष्टि से, देखने का नजरिया भारतीय संस्कृति देती है। हिन्दू केलेंडर के मुताबिक कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज मनाइ जाती है। यानि उसे यम द्वितीया भी कहते है। दीपावली के तीसरे दिन यह त्यौहार मनाया जाता है। जो भाई बहन के पवित्र ऐसे रिश्ते का इजहार करता है।
हमारी हिदू परंपरा के अनुसार रक्षा बंधन के दिन, बहन भाई के घर आती है राखी बांधने और भाईदूज के दिन भाई आता है अपनी बहन के घर उसे मिलने के लिए। शादी हो जाने के बाद भाई बहन का हररोज मिलना संभव नहीं हो पाता है। शायद इस कारण हमारे ऋषियों ने इस निर्व्याज प्यार के खातिर, यह दो त्योहारों का समावेश करके उनके प्यार में वृध्ही करने का काम किया है। हमारे वेदों में, भारत की पवित्र यमुना नदी को, मृत्यु के देवता यमराज की बहन माना गया है। कहते है इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर, खाना खाने गए थे और उसे उपहार दिए थे। उस दिन से कहा जाने लगा की इस दिन जो भी भाई अपने बहन के घर इस दिन आता है, उसके घर यम अकाल कभी नहीं जाता।
यह त्यौहार केवल हिंदूओ की परंपरा बनकर नहीं रहा है। मुस्लिम संप्रदाय में भी इस त्यौहार का महत्व उतना ही है। रक्षा बंधन और भाईदूज दोनों त्यौहार इस धर्म में भी, इतनी ही सिद्दत से निभाए जाते है। बहन अपने घर भाई को उसका मनपसंद खाना बनाके खिलाती है। अपने भाई के माथे तिलक लगाकर, उसकी आरती करती है, और उसे दुनिया की दूसरी स्त्रिओ की तरफ देखने की दृष्टी वह देती है। भाई अपनी बहन के घर वैसे भी खाली हाथ कभी नहीं जाता है। तब इस त्यौहार पर तो कैसे जा सकता है ! बदले में भाई बहन को अपने सामर्थ्य अनुसार भेट देता है।
वैसे भी हमारे ऋषियों ने भारतीय स्त्री का चंद्र के साथ नाता जोड़ दिया है। चाँद पर तो बहुत सालो बाद मानव ने अपने पैर रखा था। किंतु भारतीय स्त्री ने चाँद को अपना भाई बनाकर उसे मामा का दर्जा देकर अपना रिश्ता कब से बना लिया है। शायद इस वजह से भारत में चंदामामा कहलाते है। भारतीय संस्कृति रिश्तों और उसे निभाने पर आधारित है। आज कल लोग घर में, या पड़ोस में भी रिश्ता नहीं बना पाते। जब की आज से हजारों साल पहले ही यह भाई बहन का रिश्ता तय हो गया था। हर बहन चाँद में अपने भाई की छवि देखती है। जब भी माइके की याद आये तो उसे याद करके रात में आकाश के चाँद को देख, अपने मनकी प्यास बुजा लेती है। इतना गहरा और संवेदनशील रिश्ता यह कहलाता है।
द्वितीया के चंद्र की सुंदरता देखने लायक होती है। अमावस्या के बाद द्वितीया का चाँद मन को लुभाता है। भगवान शिव ने भी उसे अपने मष्तिष्क पर धारण किया है। उससे उसकी गरिमा और बढ़ गई है। मुस्लिम धर्म ने तो, द्विज के चाँद को अपनी धर्मध्वजा में भी उसको स्थान दिया है। सिंधी लोक भी अपने नए साल को, चेटी चाँद कहके ही मनाते है। सभी धर्म के लोगो का द्वितीय के चंद्र को मानने का महत्वपूर्ण है। क्योंकि द्विज का चंद्र बढती की निशानी है। जीवन में आगे बढ़ने का प्रतीक है। और आगे बहते हुए चाँद की तरह शीतल रह कर द्विज के चाँद की तरह लोभायमान बने रहो यही संदेश देता है। हमारे ऋषियो ने बहुत समाज के इस त्योहार को इस तिथि के साथ जोडकर, एक नया पण हरेक के, जीवन में दिया है धन्य है, हमारी भारतीय परंपरा और हमारे दीर्घ ऋषि मुनि।