बजीराव पेशवा प्रथम

(सन् 1700-1740)

बजीराव पेशवा प्रथम – ये वो नाम है जिसने अपने 20 वर्ष के सैन्यजीवन में एक भी जंग नहीं हारी । इन्होंने करीब 44 युद्ध किए और अपने शौर्य एवं वीरता का परिचय देते हुए हर युद्ध में विजय पताका फहराई। पेशवा बाजीराव हिन्दुस्तान में मराठा साम्राज्य के एक महान सेनापति थे। वे सन् 1720 से 1740 तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमंत्री) रहेे। बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के पंद्रह दिन बाद पुत्र बाजीराव 17 अप्रैल 1720 में मात्र 20 वर्ष की आयु में पेशवा बने। इससे नारोराम मंत्री, अनंत राव सामंत और श्रीपथ राव प्रतिनिधी को इनसे ईर्ष्या होने लगी।

छत्रपति शाहूजी महाराज के पहले पेशवा का पद राजाआें के कहने पर किसी योग्य व्यक्ति को प्रदान किया जाता था। परंतु शाहूजी ने इसे वंशानुगत कर दिया था। बाजीराव में बचपन से ही अपार नेतृत्व क्षमता थी और इनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। मराठा साम्राज्य को चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाने का श्रेय बाजीराव पेशवा को ही जाता है।

बाजीराव का पूरा नाम बाजीराव बल्लाळ बालाजी भट्ट था। इनका जन्म 18 अगस्त 1700 को चित्ताबन कुल के ब्राह्मण वंश के भट्ट परिवार में हुआ था। इनके पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधाबाई थीं। इनके पिता भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बाजीराव के छोटे भाई का नाम चिमाजी अप्पा था। अपने पिता के हर सैन्य अभियान में साथ रहने के कारण बाजीराव युद्ध कौशल और रणनीति में माहिर हो गए।
बाजीराव का विवाह बचपन में ही काशीबाई से हुआ। काशीबाई से उन्हें बालाजी बाजीराव, रघुनाथ राव और जनार्धन राव नामक तीन पुत्र हुए। इन्होंने बाद में मस्तानी से विवाह कर लिया। बाजीराव और मस्तानी का अमर प्रेम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। हालांकि इनके प्रेम संबंधों से इनके अपने परिवार में ही कलह होने लगी। मस्तानी बुंदेलों के राजपूत राजा और बुंदेलखंड प्रांत के संस्थापक महाराजा छत्रसाल एवं फारसी मुस्लिम महिला रोहियानी बाई की पुत्री थी। मस्तानी बहुत सुंदर और बहादुर महिला थी। जब 1727-28 के समीप अलाहाबाद के मुगल प्रमुख मोहम्मद खान बंगाज ने छत्रसाल साम्राज्य पर आक्रमण किया तब छत्रसाल ने गुप्त संदेश भेजकर अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए बाजीराव से सहायता मांगी। बाजीराव छत्रसाल की सहायता के लिए आए तो उनकी मुलाकात पहली बार मस्तानी से हुई। बाजीराव अपनी सेना के साथ बुंदेलखंड की ओर चल दिए। मस्तानी भी उनके साथ गई। मराठों और मुगलों के दो वर्ष के संघर्ष के बाद आखिरकार बाजीराव की जीत हुई। इसके बाद बाजीराव ने मस्तानी से विवाह कर लिया जो इनकी माता को रास नहीं आया। बाजीराव की गैरमौजूदगी में वह मस्तानी को बहुत तंग करती थीं। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने मस्तानी को जहर तक पिलाने की कोशिश की थी। इस बात का पता चलते ही बाजीराव ने मस्तानी की सुरक्षा हेतु मस्तानी महल बनवाया। मस्तानी ने हमेशा सैन्य अभियान में बाजीराव का साथ दिया। मस्तानी से बाजीराव को 1734 में कृष्णा राव नामक पुत्र हुआ। मराठा हिन्दु समाज में कोई भी इस बच्चे का धार्मिक संस्कार करने को तैयार नहीं हुआ। बाद में बाजीराव ने अपने पुत्र का नाम शमशेर बहादुर रखा। बाजीराव ने उसे काल्पी और बांदा की सूबेदारी दी थी। बाजीराव ने शनिवारवाड़ा (पुणे) नामक किला भी बनवाया जो 1730 में बनकर पूरा हुआ।

बाजीराव घुड़सवारी, तलवार बाजी, भाला फेंकना, बंदूक चलाना, तीरंदाजी, बनेठी, लाठी, आदि चलाने में माहिर थे। बाजीराव बैठ-बैठे ही जब भाला फेंकते थे तो सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था। बाजीराव के काल में मुगलों के अलावा अंग्रेजों एवं पुर्तगालियों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करना, प्रताड़ित करना, लूटपाट, मंदिरों को तोड़ना, महिलाओं पर जुल्म ढाना, आम बात हो गई थी। बाजीराव पेशवा ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक अपनी विजय पताका फहराई। मुगलों के पतन के बारे में बाजीराव ने शहूजी महाराज को कहा – ‘‘अब समय आ गया है कि हम विदेशियों को भारत से बाहर निकाल दें और हिन्दुओं के लिए अमर कीर्ति प्राप्त करें। आओ हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर वार करें, शाखाएं तो स्वयं ही गिर जाएंगी। हमारे प्रयत्नों से मराठा पताका (ध्वज) कृष्णा नदी से अटक (पाकिस्तान का एक हिस्सा) तक फहराने लगेगी।’’ तब शाहू जी ने कहा – ‘‘आप निश्चय ही इसे हिमालय के पार गाड़ देंगे। निःसंदेह आप योग्य पिता की योग्य संतान हैं।’’

बाजीराव पेशवा ने लगभग 44 युद्ध लड़े किसी भी युद्ध में वे हारे नहीं। इन्होंने 1728 में पालखेड़ा का युद्ध निजाम के खिलाफ लड़ा। हैदराबाद के निजाम आसफजहा निजाम उल मुल्क मुगलों के लिए काम करता था। 1720-1721 तक वह दक्कन का सूबेदार था। 1724 में निजाम का मुगल बादशाह से मनमुटाव होने के कारण वह दक्कन आकर स्वायत्त शासन स्थापित करने का प्रयास करने लगा। निजाम ने मराठों में फूट डालने का प्रयास किया। इसके बाद निजाम को बाजीराव ने पालखेड़ा युद्ध में परास्त किया। तब दोनों के बीच मुंगी शिवगांव नामक एक संधि हुई। इसके अनुसार तय हुआ कि निजाम शाहू जी को अपनी आय का चौथा हिस्सा देगा, निजाम द्वारा कोल्हापुर के शासक शम्भाजी की सहायता न करना, मराठों के जीते हुए प्रदेशों को वापस करना और मराठा बंदियों को आजाद करना इसकी चार शर्तें थीं।

अद्भुत रण कौशल और अदम्य साहस के परिचायक बाजीराव ने 28 अप्रैल 1740 को 39 वर्ष की उम्र में आकस्मिक बुखार के कारण अपनी अंतिम सांस ली। उस समय बाजीराव अपनी एक लाख की सेना के साथ इंदौर शहर के निकट खारगौन जिले की जमीन का निरीक्षण करने निकले थे। उनका अंतिम संस्कार नर्मदा नदी के किनारे रावेरखेड़ी (पश्चिम निमाड जिला, म-प्र-) में किया गया। इनकी मृत्यु का समाचार मिलते ही बहुत जल्द मस्तानी की भी मृत्यु हो गई। आज भी पुणे से बीस मील दूर पाबल में मस्तानी का मकबरा स्थित है।

यह स्पष्ट होता है कि बाजीराव पेशवा-प् एक महान सेनानायक, देश भक्त, युद्ध कौशल में निपुण एवं एक निश्छल प्रेमी के रूप में भारत के इतिहास में एक प्रमुख स्थान रखते हैं। आज भी इनका नाम न केवल मराठी अपितु पूरा भारत आदर से लेता है। भारतियों के दिलों में ये हमेशा अविस्मर्णीय रहेंगे।

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