संबंधों की सुगंध

बच्चे, मन के सच्चे ….. !
बालक शब्द सुनते ही हमारे मन के भीतर एक अलग सा भाव जागृत हो जाता है I अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि बच्चों के कोलाहल के बिना परिवार अधूरा होता है। ढेर सारी शरारतें , मस्ती, संस्कारों का उद्भवस्थान और मासूमियत …. इन सभी बातों को मिला देते हैं तो “बालक” शब्द बन जाता है I मनुष्य को बालक स्वरूप इतना ज्यादा पसंद है कि, उसे भगवान भी बालक स्वरूप में ही ज्यादा अच्छे लगते हैं I हम सभी लोग इस बात को महसूस जरुर करते होंगे कि, हमें श्रीकृष्ण भगवान के योगेश्वर स्वरूप से ज्यादा उनका बालकृष्ण स्वरूप पसंद आता है I बालकृष्ण के बचपन की बातें, उनकी शरारतें हमें ज्यादा पसंद आती है क्योंकि बच्चे मन के साफ और सच्चे होते हैं I शायद यही कारण है कि हम सब को बच्चे ज्यादा पसंद होते हैं I किसी ने लिखा है,

ना रोने की कोई वजह थी, ना हंसने का कोई बहाना था
क्यों हो गए हम इतने बड़े, इससे अच्छा तो बचपन का ज़माना था ……

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉन ऍफ़. केनेडी ने भी कहा है कि, “बच्चे दुनिया के सबसे मूल्यवान संसाधन है और भविष्य के लिए सबसे बड़ी उम्मीद भी” I ऐसा इसलिए कहा गया, क्योकि भारतीय संस्कृति ने कहा है कि छोटे बच्चों को जैसे भी मोड़ना चाहो मोड़ सकते हो, अच्छा भी और बुरा भी I बचपन की अवस्था एक ऐसी अवस्था है जहां पर शायद पूरा सुनने की आदत हो न हो लेकिन सूना हुआ पूरा करने की आदत जरुर होती है, देखा हुआ अवलोकन साकार करना सहज होता है I इसलिए तो हमें कहा जाता है कि बाल्यावस्था में बच्चों के संस्कारों पर जरूर से ध्यान केन्द्रित करना चाहिए I हमारे उपनिषदों ने भी बच्चों के बारे में कहा है कि,

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृध्धोपसेविनं :
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आर्युर्विध्या याशोबलं II

अर्थात बड़े-बुजुर्गो का अभिवादन अर्थात नमस्कार करने वाले और बुजुर्गो की सेवा करने वालों की चार चीजें हमेशा बढ़ती है I यह चार चीजें हैं , आयु, विद्या, यश और बल। शायद इसलिए ही हम बचपन में बच्चों को इन चीजों का संस्कार देते हैं I हमारी संस्कृति कहती है कि आप भले ही जितना भी प्यार बच्चों को करो लेकिन उनकी आदतों और संस्कारों के साथ समझौता कभी मत करो I
हमारे देश में हर साल बाल दिवस मनाया जाता है , जैसा कि नाम से ही ज्ञात है, यह दिन बालकों को समर्पित है। आखिरकार बालकों की महत्ता के लिए किसी खास दिन की जरूरत क्यों पड़ी। इसके लिए विश्व समुदाय का चिन्तन और प्रयास सराहनीय है। 1954 में, बच्चों को सुरक्षित स्थिति में रखने के लिए लंबे समय तक काम करने से बचाने की जरूरत महसूस की गई, और इसी उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र सभा ने सभी देशों के सामने एक सार्वभौमिक प्रस्ताव पेश किया । प्रस्ताव के पांच साल बाद 20 नवंबर, 1959 को, संयुक्त राष्ट्र ने बाल अधिकारों की घोषणा की और सदस्य देशों ने उन विशिष्ट अधिकारों को अपनाया। अधिकारों के प्रति विभिन्न देश के नागरिकों को पुनर्जागृत करने के लिए विश्व बाल दिवस मनाने का प्रावधान किया गया, जिसके चलते घोषणा के दिन से ही विश्व बाल दिवस मनाया जाने लगा। भारत में भी पहला बाल दिवस 20 नवम्बर 1959 को ही मनाया गया था और इस प्रकार हर साल 20 नवंबर को विश्व बाल दिवस मनाया जाने लगा।
बाद में भारत में इस उत्सव के लिए एक दूसरी तिथि का चयन किया गया और भारत में बाल दिवस 14 नवम्बर को मनाया जाने लगा। इस बदलाव के पीछे लोगों का तर्क है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का बच्चों से काफी लगाव था। 1964 में जब पंडित नेहरू का देहांत हुआ तो भारत सरकार ने उनको सम्मान देने के लिए उनके जन्म दिन 14 नवम्बर को बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।इसके बाद भारत में वर्ष 1964 से 14 नवम्बर को ही बाल दिवस मानाया जाने लगा। बाल दिवस का उत्सव खास तौर पर उन उपेक्षित बच्चों के प्रति देश के नागरिकों और सरकारों तथा जिम्मेदार संस्थाओं को अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का एहसास कराता है और उन उपेक्षित बच्चों जिन्हें मजबूरीवश पेट पालने के लिए छोटी उम्र से ही काम करना पड़ता है, उनके भविष्य निर्माण के लिए बाल दिवस के माध्यम से समाज में जागरूकता पैदा करने का कार्य किया जाता है।
बच्चे किसी भी राष्ट्र का भविष्य होते हैं इसलिए उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये उनके सर्वांगीण विकास के साथ -साथ देश के नागरिकों को उनके महत्व को भी समझना चाहिए। बाल मजदूरी अनेक देशों में देखने को मिलती है, जो कि समाज और राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ा बाधक है। हालांकि इसका मुख्य कारण देश के निति- निर्माताओं, समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और परिवार के मुखिया की अदूरदर्शिता और आर्थिक मजबूरी होती है। जिसके चलते कोई बालक छोटी उम्र में ही काम करने तथा अपना और अपने परिवार का भरण- पोषण करने को मजबूर होता है।
हालांकि कई लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे की जो उम्र खेलने, पढ़ने और उनके सर्वांगीण विकास की होती है, उस उम्र में वे उनसे काम करवाते हैं। एक तरफ तो सरकारें बाल मजदूरी के खिलाफ कानून बनाती है और 14 वर्ष की उम्र तक उनके शिक्षा, स्वस्थ और भोजन को उनका मूल अधिकार बताती है और इसे पूरा करने के प्रयत्न करती है। वहीं देश के विभिन्न क्षेत्रों में ढाबाओं , दुकानों, टी स्टाल और अन्य स्थानों पर बच्चे काम करते पाए जाते हैं। इससे समाज और राष्ट्र की दोहरी मानसिकता का पता चलता है, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक विडम्बना ही है।
ऐसा नहीं है कि समाज में बच्चों के प्रति असंवेदनशीलता है। जागरूकता बढ़ने के साथ अब लोगों में बच्चों के सुरक्षित भविष्य के प्रति सचेतना भी जाएगी है। बाल दिवस मनाने की परंपरा इसी कड़ी का एक हिस्सा है। जागरूक और जिम्मेदार लोग इस दिवस को उत्सव का रूप देने के लिए अलग-अलग कारण और तरीके भी ढूंढने लगे हैं। बच्चों के सही विकास से कालान्तर में एक तरफ राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी सुधार परिलक्षित होने लगा है। दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि के साथ सुविधाओं के आभाव के चलते बहुत से बच्चों को आगे बढ़ाने और उनके व्यक्तित्व विकास के लिए एक सामाजिक और आर्थिक सहयोग के अभाव में विश्वास खोता जा रहा है।
समाज में अवसर की समानता लाने के लिए बाल दिवस के इस उत्सव के कारण को समझने और इसमें आवश्यक सुधार करने की जरूरत है, ताकि हम हर बच्चे के भविष्य को सुरक्षित कर सकें और उन्हें ऊंची उड़ाने भरने के लिए आत्मविश्वास और व्यक्तित्व विकास प्रदान कर आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन करने और देश के विकास में अपना योगदान देने के लिए नए नए तरीके अपनाने के साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकें ।
लोगों के छोटे- छोटे प्रयास भी अमूल परिवर्तन ला सकते हैं। जैसे संपन्न परिवार के लोग बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए अपने बच्चे के साथ बाहर आएं और बाल दिवस के मौके पर सुविधाओं से वंचित बच्चों के साथ समय बिताएं और उनके सानिध्य में उल्लास का वातावरण पैदा करें और इस दिन उनके साथ खुशियां मनाएं। एक छोटी सी मदद सुविधाओं से वंचित उन बच्चों के लिए कई तरह से सहयोग कर सकती है। उदाहरण के लिए हम कुछ सरल चीजे करें जैसे उन बच्चों के साथ नए या पुराने कपड़े साझा कर कर सकते हैं। हम अपने अतिरिक्त पुस्तकें और स्टेशनरी, या हम मित्रों और परिवार से कुछ मदद प्राप्त कर उसका वितरण उन बच्चों के बीच कर सकते हैं । अतिरिक्त दवाएं जो हमारे घरों में बेकार हो जाती हैं उनकी एक्सपायरी की जांच कर जरूरतमंद बच्चों को खुराक और एक्सपायरी के बारे में बताया जा सकता है । ख़ास करके हमें अगर कुछ करना ही है तो जिन बच्चों से समाज दूरी रखता है ऐसे बच्चों को अच्छे विचार और अच्छे संस्कार देने का कार्य करना चाहिए, जिसकी वजह से उनका हौंसला बुलंद हो और उसमें कुछ कर दिखाने की हिम्मत भी आ जाए I
हम ऐसे बच्चों के लिए सप्ताह में कम से कम एक दिन निःशुल्क ट्यूशन देंने की शुरूआत कर सकते हैं , इससे उनको बढ़ने में सहयोग मिल सकेगा और वे धन के आभाव में अपने आप को अलग थलग महसूस नहीं करेंगे। अक्सर हमारे उत्सव के कार्यक्रमों में खाना बर्बाद होता है। अगर हम उन्हें सही से इस्तेमाल करें और बचे हुए खाने को पैकेट में भर कर उन बच्चों में वितरण करे तो उनका भी दिन बन जाएगा। ये कुछ बुनियादी चीजें हैं जिन्हें हम खुद करके उन बच्चो के जीवन में बदलाव ला सकते हैं।
कहा जाता है बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं , और यह सच भी है, क्योंकि जब भी हम बच्चों को देखते हैं, तो वे हमें ज्यादातर सुंदर, प्यारे लगते हैं और उनकी जैविक पहचान की परवाह किए बिना हम उन्हें अपने कंधों पर ले लेते हैं। जब हम बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं तो हमारे दुख और तकलीफें दूर हो जाती हैं। बच्चों को परमात्मा, सच्चाई, शुद्धता, स्नेह और ईमानदारी का अवतार माना जाता है। ये वे गुण हैं जिन्हें हम सभी को विकसित करने की आवश्यकता है।
जब हम बड़े होते हैं तो हमें अपने परिवार, दोस्तों, स्कूल और समाज से बहुत सी चीजें जानने और अनुभव करने को मिलती है। सफल होने की आपाधापी में हमारे भीतर का बच्चा कहीं न कहीं गायब होने लगा है। हम स्वभाव से अधिक अंतर्मुखी, संक्षिप्त और अपने हितों के प्रति थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं। जब भी किसी ऐसी चीज के बारे में पूछा जाता है जिसे हम नहीं जानते हैं, जब भी हम ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो हम अपमानित महसूस करते हैं। समय बीतने के साथ हमारे अंदर की इच्छा और जिज्ञासा हमारे अहंकार के साथ संघर्ष करती है। जो हमें बच्चों की तरह विनम्र, प्रसन्न और ग्रहणशील नहीं होने देती ।
अपने अंदर के बालक को हमेशा जिंदा रखें। यहां ‘‘बालक‘‘ का अर्थ है, स्वभाविकता, सच्चाई, दिव्यता, मासूमियत और जिज्ञासा जो जीवन के हर क्षेत्र में मनुष्य के जीवन को ऊपर उठाने में मदद करती है और उन्हें न केवल भौतिकवादी सफलता की ओर ले जाती है बल्कि परम और पूर्ण सत्य की ओर भी ले जाती है जो हमारे जीवन में हमेशा के लिए खुशी और सिर्फ खुशी लाती है।
बाल दिवस सभी बच्चों के लिए एक विशेष दिन होता है और हर माता-पिता को कुछ अनोखा करने की योजना बनाकर इसका अधिकतम लाभ उठाने की जरूरत है। बाल दिवस पर हम अपने बच्चे को एक ऐसा सरप्राइज दें सकते हैं, जिसे वह हमेशा संजो कर रखे। बच्चों को सरप्राइज पसंद होता है और वे उस समय उत्साहित हो जाते हैं जब हम किसी साधारण चीज का उत्सव मनाते हैं, खासकर सप्ताह के बीच में। आम तौर पर, सभी माता-पिता सप्ताह के दिनों में काम में काफी व्यस्त रहते हैं और बच्चे स्कूल के काम में व्यस्त रहते हैं। मौज-मस्ती करने का शायद ही समय मिल पाता है। ऐसे में बाल दिवस हमें अपने नन्हे-मुन्नों को पोषित महसूस कराने का सही अवसर प्रदान करता है।
इस दिन हम अपने बच्चों के साथ-साथ अपने बचपन की यादों को भी ताजा करें I बच्चे देश का भविष्य है इसलिए यह संकल्प करें कि कम से कम समाज के एक बच्चे को हम अच्छी शिक्षा और संस्कार प्रदान करेंगे I अगर देश में बसा हर सक्षम परिवार इस बात को ठान लेता है तो समाज के भीतर से बुराई ख़त्म हो जाएगी और आशा का उजाला छा जाएगा और यह हमारे हाथ में ही है I

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