हर इंसान की जो नींव होती है सही मायने में वह नींव होती है वो है हमारे माता-पिता I हम दुनिया का कोई भी कर्ज को उतार सकते हैं , पर माँ-बाप का कर्ज कभी नहीं उतार सकते I मनुष्य चाहे कितना भी धार्मिक हो, कितना ही मूल्यवान हो, कितना ही धनिक हो, अगर वो अपने मां-बाप की इज्जत नहीं करता तो सब कुछ बेकार है I हमारे माता-पिता ने हमारी जिन्दगी को संवारने के लिए, अपने सारे जीवन का बलिदान दे दिया है I आज के समय में अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लोग जब बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं , तब ऐसा बोलने लगते हैं कि , हमारे माँ-बाप ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया, लेकिन उसको क्या पता कि उसका जीवन, सिर्फ उसके माँ-बाप की बदौलत ही है I दुनिया में माँ-बाप का एक ही रिश्ता है, जो जीवन पर्यंत कभी हमारा साथ नहीं छोड़ता I माँ-बाप का प्रेम, निष्वार्थ प्रेम है I अगर जन्म होते ही, हमारी माँ हमें अपने स्नेह और करुणा से नहलाती नहीं और अगर हमारे पिता ने हमें संस्कार सिंचन करके बड़ा नहीं किया होता, तो आज हमारी कोई पहचान ही नहीं होती I फिर भी लोग अपने माँ-बाप को भूल जाते हैं I अक्सर सुना जाता है कि पहला प्यार कभी भूलाया नहीं जाता, तो फिर लोग अपने माँ-बाप को क्यों भूल जाते हैं ?… आखिर हमारे माँ-बाप ही हमारे जीवन का पहला प्यार है I
जब हमारा जन्म होता है, तब हमारे माँ-बाप हमारी परवरिश करते हैं, लाखों घर ऐसे है ,जहां घर में खाने का दाना नहीं होता और पहनने को कपड़ें नहीं होते, फिर भी माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छे से अच्छा खाना देने की उम्मीद रखते हैं , खुद फटे हुए कपड़ें पहन लेते हैं , पर अपने बच्चों को अच्छे कपड़े पहनाने की इच्छा रखते हैं I फिर भी बड़े होकर अपनी कार, मकान और लक्ज़री चीजों की किश्तों को बराबर याद रखने वाला आदमी, अपने माँ-बाप को भूल जाता है I शादी होते ही अलग रहने की सुविधा हर किसी की चाहत बन गई है I जो बहू घर में आकर हमें यह बताती है कि, मै आपके माता-पिता के साथ नहीं रहूंगी, क्या वो भूल गई है कि उसके अपने भी माता-पिता है, और अगर उसको कोई छोड़ देता तो कैसा लगेगा ?…. लेकिन ज्यादातर लोग, अपने लग्न जीवन का प्यार पाने के लिए अपने माँ-बाप का प्यार भूल जाते हैं I किसी ने कहा है कि, “दुनिया में मिलने को तो लाखों लोग मिल जायेंगे, लेकिन हजारों गलतिया माफ़ करने वाले माँ-बाप कभी दुबारा नहीं मिलते”I बच्चा कुछ भी करे, माँ-बाप हमेशा उसकी गलतियों को माफ़ करने और सुधारने में लगे रहते हैं I
इसी संदर्भ में एक कहानी है कि -एक लड़का किसी एक लड़की से प्यार करता था और उससे शादी करना चाहता था I लेकिन लड़की ने शर्त रखी की कि मैं तुम्हारे माँ-बाप के साथ नहीं रहूंगी I बात धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी I एक दिन उस लड़की ने उसे कहा कि, अगर तुम मुझे प्यार करते हो तो तुम अपनी माँ का ह्रदय निकालकर मुझे गिफ्ट करो, फिर मै तुमसे शादी करुँगी I लड़का भी उसके प्यार में पागल था, उसने यह कभी नहीं सोचा कि, मेरी मां ने मेरे लिए क्या क्या किया है I दस घर के बर्तन धोकर मुझे पढ़ाया- लिखाया और आज दुनिया के सामने सर उठाकर जीने के काबिल बनाया, यह सोच तो उसके दिमाग से निकल ही गई I उसने तो घर जाकर रात को जब उसकी माँ सो गई तब उसे मार डाला और उसका ह्रदय निकालकर, अपनी प्रेमिका को देने के लिए निकल पड़ा I चलते -चलते अंधेरे में एक पत्थर से टकरा गया और गिरने लगा तब, उसकी मां के ह्रदय से आवाज निकली, “बेटा तुम्हें कहीं लगी तो नहीं ?” तब उसे अपनी माँ की कीमत पता चली, लेकिन अब वह अफ़सोस करने के आलावा और कुछ कर भी नही सकता था I यह उदहारण ही हमें बताता है कि, हम चाहे कुछ भी करें लेकिन हमारी मां तो हमारे लिए हमेशा दुआ ही करती है, हमारे पिता हमेशा ही हम कैसे आगे बढ़ें उसकी सोच में ही रहते हैं I माँ-बाप अमीर हो या गरीब, उनके लिए तो अपने बच्चे ही सबकुछ होते हैं I
आज ज्यादातर देखा जाता है कि समाज में वृद्धाश्रम बढ़ने लगे हैं , हर लड़का अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ने की इच्छा रखता है I क्या हमारे माँ-बाप ने इस दिन को देखने के लिए हमें बड़ा किया था ? एक माँ-बाप अपने चार बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा करते हैं , पर बड़े होकर वो चार बेटे, अपने एक माँ-बाप को सम्भाल नहीं सकते I हमें तब ही हमारे माँ-बाप की कीमत होती है, जब हमारे यहां बच्चे होते हैं I एक किस्सा है शायद आप सब ने भी सुना होगा कि – एक घर में लड़का प्रोफ़ेसर था I एक दिन बाहर जाते समय, उसने अपने माँ-बाप से कहा कई, हम लोग आज एक पार्टी में जा रहे हैं , खाना भी वहीं पर खाएंगे , तो आप लोग आज जो नजदीक में गुरुद्वारा है, वहां पर जाकर लंगर का खाना खा लेना I रास्ते में गाड़ी में बैठे हुए, उसके लड़के ने उसके पापा को बोला कि, पापा आप भविष्य में अपना घर गुरुद्वारा के नजदीक में ही ले लेना I पापा ने लड़के से पूछा की, क्यों ? गुरुद्वारा के नजदीक घर क्यों चाहिए ? बेटे ने कहा कि, पापा ! जमाना बढ़ता ही जा रहा है I हो सकता है जब मैं बड़ा हो जाऊ, मुझे आपसे ज्यादा पार्टी में जाना पड़े, तब मैं भी तो आपको गुरुद्वारा में लंगर खाने आसानी से भेज सकता हूं ना !….. बेटे की यह बात सुनकर पापा की अक्ल ठिकाने पर आ गई I तुरंत ही उसने घर जाकर अपने मां -बाप से माफ़ी मांगी और खाने का इंतजाम किया I यह उदहारण हमें जानना इसलिए जरुरी है कि, भगवद गीता का नियम है, यहां पर किये हुए कर्म को यहीं पर भुगतना पड़ता है I अगर हम अपने मां -बाप को वृद्धाश्रम छोड़ते हैं तो हमारे बच्चे भी हमें एक दिन वृध्धाश्रम जरुर भेजेंगे I
चाहे मैं डॉक्टर हूं , इंजीनियर हूं , शिक्षक हूं , व्यापारी हूं …. जो भी हूं , मैं मेरे माँ-बाप की बदौलत ही हूं , यह विचार हमारे दिमाग से कभी नहीं जाना चाहिए I घर में मां-बाप को दुखी करके, चार धाम की यात्रा करने जाने का कोई फायदा नहीं I हमारे मां-बाप ही हमारे भगवान है और वो ही चार-धाम है I हम सब ने वो कहानी तो सुनी ही है कि एक बार भगवान शंकर ने अपने दोनों बेटों को पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने के लिए बोला I तब कार्तिकेय तो अपने पिता की आज्ञा सुनकर, पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने निकल पड़े I गणेश जी ने तो वहीं पर शंकर-पार्वती बैठे थे, उनकी प्रदक्षिणा कर ली I भगवान शंकर ने जब पूछा तो उन्होंने कहा कि , हमारे लिए तो पृथ्वी और आकाश सब कुछ आप (हमारे मां-बाप) ही हो, बाहर जाने की कोई जरुरत नहीं I गणेश जी की यह बात बिलकुल ही सही है I हमारे मां-बाप ही हमारे लिए सबकुछ है, बाहर देवी-देवताओं को खुश करने की कोई जरुरत नहीं है, माँ-बाप खुश तो सब कोई खुश I
एक लेखक ने लिखा है , “मुझे इतनी फुर्सत कहा कि, मै तक़दीर में लिखा देखूं , मैं तो बस अपने माता-पिता की मुस्कराहट को देखकर समझ जाता हूं कि , मेरी तक़दीर बुलंद है”I आजकल लोग वसीयत के कागज तो संभालकर रखते हैं , पर माँ-बाप की दवाई की पर्ची अक्सर खो जाती है I हमें यह याद नहीं रहता कि, जब हम छोटे थे, तो एक बुखार में मेरी मां चार दिन तक सोई नहीं थी, मेरे पापा ने कर्ज लेकर मेरा इलाज कराया था I बेटा हमेशा बोलता रहता है कि, मेरे पापा ने मेरे लिए किया ही क्या है ? लेकिन उसको यह पता नहीं, जितना पापा के किया है उतना तो दुनिया की कोई ताकत नहीं कर सकती I अगर अपनी चमड़ी उतारकर, उसके जूते ते बनाकर उसको मां-बाप को पहनाया जाए तो भी, हमारे मां-बाप का कर्ज कभी नहीं उतर सकता I
हमारे इतिहास में ऐसी कई बाते हैं , कई ऐसे पात्र है, जिन्होंने अपने मां-बाप के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया I हमने श्रवण कुमार का नाम तो सुना ही है, और बात भी पता है कि, अपने अंधे मां-बाप की यात्रा की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने अपने कंधो पर कावड़ डालकर, उसमें अपने माता-पिता को बिठाकर, सारे देश की यात्रा करवाई थी I हमारे सामने भगवान श्री राम का उदहारण मौजूद ही है I अपने पिता की आज्ञा और माता के वचनों का पालन करने के लिए, श्री राम 14 साल वनवास में चले गए I चहरे पर कोई सिकन नहीं, कोई फरियाद नहीं, बस एक ही बात थी कि मेरे पिता की आज्ञा है, और मुझे उसका पालन करना ही है I धन्य है ऐसे पुत्र !….. जो अपने माता-पिता की इच्छा और आज्ञा को अपने सर पर उठाते हैं , और उसे पूरा करने का पूर्ण प्रयास करते हैं I
अपने मां-बाप की फ़िक्र नहीं करने वाले लोगों के लिए ‘आवाश अल्फाज’ ने बहुत खूब लिखा है….. “अपने औलाद को इन्सान बनाने की फ़िक्र में, मां-बाप को मरने की भी मोहलत नहीं मिली, वही मां-बाप बेचारे जब बूढ़े और लाचार हुए, उसी बेशर्म औलाद की सोहबत नहीं मिली”I अभी भी वक्त है, अपने मां-बाप को संभालो ,उनकी सेवा करो !… जन्नत और स्वर्ग उनके कदमो में ही है I मां-बाप के क़दमों में रहनेवालों को कभी भी जहन्नुम (नर्क) का डर नहीं लगता I
आज ही और इसी वक्त संकल्प करें कि हम सब को अपने मां-बाप को याद करना है और उनकी हर तकलीफ को दूर करने का प्रमाणिक प्रयास करना है I गलती की है तो मां-बाप तो माफ़ कर ही देंगे, एक बार उनके चरणों में जाकर तो देखिए !
किसी ज्ञानी पंडित ने कहा है, “अगर जीत लोगे अपने मां-बाप का दिल, तो हो जाओगे कामयाब I नहीं तो सारी दुनिया जीतकर भी तुम सब से हार जाओगे” I इसलिए, भूलो चाहे सबकुछ पर माँ-बाप को कभी भूलना नहीं I