अपने बचपन बचाओ आन्दोलन के द्वारा 80,000 से भी ज्यादा बच्चो की जिन्दगी संवारने वाले भारत के सपूत………. कैलाश सत्यार्थी

अपने बचपन बचाओ आन्दोलन के द्वारा 80,000 से भी ज्यादा बच्चो की जिन्दगी संवारने वाले भारत के सपूत………. कैलाश सत्यार्थी

कैलाश सत्यार्थी का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में हुआ था। कैलाश सत्यार्थी का मूल नाम कैलाश शर्मा है। सत्यार्थी ऐसे भारतीय समाज सुधारक हैं जिन्होंने भारत और अन्य जगहों पर बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाया। शिक्षा के सार्वभौमिक अधिकार की वकालत की। 2014 में, उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के साथ-साथ किशोर पाकिस्तानी शिक्षा वकील मलाला यूसुफजई के साथ, “बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ’’ उनके संघर्ष के लिए और सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार के लिए सम्मानित किया गया था।

कैलाश का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता पुलिस अधिकारी और मां एक गृहिणी थीं। बाल्यवस्था से ही उनके मन में समाज के प्रति कुछ करने की ललक थी। यही वजह रही कि बचपन में उन्होंने वंचित छात्रों की पढ़ाई की फीस भुगतान के लिए एक फुटबॉल क्लब का गठन किया। साथ ही उनके लिए एक पाठ्य पुस्तक बैंक के विकास के लिए भी अभियान चलाया। शुरुआती शिक्षा दीक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई। जिसके बाद उन्होंने विदिशा में सम्राट अशोक प्रौद्योगिकी संस्थान में दाखिला लिया। 1974 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।

इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिग्री पूरी करने के बाद, उन्होंने इसी क्षेत्र को अध्यापन के चुना। लेकिन शुरुआती दौर से मन में समाज और उससे जुड़े सरोकार को लेकर जो अलख जागृत हो चुकी थी। वह अलख आगे चलकर बेहद वृहद रूप में परिवर्तित हो गई । यही वजह रही कि सत्यार्थी ने वर्ष 1980 में, अध्यापन का कार्य छोड़ने का फैसला लिया। और इसी के साथ उन्होंने संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की।  संगठन का नाम तो बचपन से जुड़ा था लेकिन ये तय कर रहा था हजारों लाखों भविष्य के परिवारों की दिशा। इस संगठन की ही देन थी जिसने हजारों बच्चों को दास जैसी स्थितियों से मुक्त कर दिया है। वह लगातार बाल श्रम और बच्चों के शिक्षा के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं। इसके अलावां  अन्य संगठनों की कई विस्तृत श्रृंखलाओं में भी वह सक्रिय रहे हैं।अपनी संस्था के माध्यम से कैलाश सत्यार्थी ने अब तक करीब 80 हजार बच्चों की जिंदगी बचाई है। इस संस्था की सबसे मुख्य पहल बाल मित्र ग्राम कार्यक्रम है जो बाल बंधुआ मजदूरी, बाल अधिकार और सर्वशिक्षा के अभियान में एक नया प्रतिमान बन गया। कैलाश सत्यार्थी को इस अभियान के शुरू करने के कुछ सालों के बाद यह आभास हुआ कि बाल मजदूरी और शोषण के लगभग 70 फीसदी मामले गांवों में होते हैं।तब उन्होंने बच्चों को बचाए जाने के बाद प्रशासन द्वारा उन्हें उचित शिक्षा मुहैया हो सके इसकी व्यवस्था पर जोर देना शुरू किया।बाल मित्र ग्राम वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है। 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक चाइल्ड फ्रेंडली विलेज घोषित किया जा चुका है। हालांकि कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है। इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं।‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बाल मित्र ग्राम में 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त, व्यापक और स्तरीय शिक्षा के साथ ही लड़कियां स्कूल न छोड़ें इसलिए स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं मौजूद हों यह सुनिश्चित करती है। दुनिया की अधिकांश आबादी, विशेष रूप से विकासशील देशों में, बच्चों और युवाओं से बनी है।  एक शांतिपूर्ण समाज बनाने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि बच्चों और युवाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाए।  महात्मा गांधी की परंपरा के बाद, भारतीय कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने बच्चों को स्कूल जाने के बजाय श्रम के रूप में शोषण करने से रोकने के लिए एक शांतिपूर्ण संघर्ष किया।  उन्होंने बच्चों के अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद की।

उन सिद्धांतों से प्रेरित होकर, सत्यार्थी ने एक पत्रिका स्थापित की, संघर्ष जरी रहेगा (“स्ट्रगल विल कंटिन्यू”), इस पत्रिका के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के जीवन का दस्तावेजीकरण किया। जिसमें भारत में बाल श्रम पर व्यापकता से चिंतित किया गया है। बेहद गरीबी के कारण अक्सर बच्चे बंधुआ मजबूरी में उतर जाते हैं। जिसके माध्यम से वे अपने पैतृक ऋण की अदायगी करते हैं। इन्हीं बन्धनों से मुक्ति के लिए सत्यार्थी ने अपना पूरा जीवन उन बच्चों के नाम कर दिया जिन्हें समाज में हरबतर से अस्वीकार्यता मिलती है। और ये समर्पण बढ़ती उम्र के  साथ और भी ज्यादा केंद्रित होता जा रहा है।

सत्यार्थी के इसी समर्पण को देखते हुए न सिर्फ भारत अपितु विश्व के कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड (2009 अमेरिका), मेडल ऑफ द इटालियन सीनेट (2007 इटली), रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) आदि शामिल हैं। उन्होंने ग्लोबल मार्च अगेन्स्ट चाइल्ड लेबर मुहिम चलायी जो कई देशों में सक्रिय है। उन्हें रूगमार्क के गठन का श्रेय भी जाता है जिसे गुड वेब भी कहा जाता है। यह एक तरह का सामाजिक प्रमाण पत्र है जिसे दक्षिण एशिया में बाल मजदूर मुक्त कालीनों के निर्माण के लिए दिया जाता है। सत्यार्थी को बाल अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पहले भी कई बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है। और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। इनसे पहले मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार दिया गया था जिनका जन्म अल्बानिया में हुआ था।

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