एक व्यक्ति विशेष की जिन्होंने 12 साल की उम्र में मेट्रिक की परीक्षा पास की थी…………………………… रमन इफेक्ट के प्रणेता, भारत रत्न और नोबेल प्राइज़ विजेता…. सी.वी. रमन (चन्द्रशेखर वेंकट रमन)
चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को दक्षिण भारत के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके पिता गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे। शायद यहीं से रमन के मन में अध्ययन अध्यापन को लेकर एक जिजीविषा जागृत हुई। रमन के जन्म के समय उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। रमन के आठ भाई-बहन थे। रमन का संबंध ब्राह्मण परिवार से था। जब रमन चार साल के थे तो उनके पिता को एक कॉलेज में लेक्चरर की जॉब मिल गई। बहुत ही कम उम्र से रमन की विज्ञान में दिलचस्पी थी। वह पढ़ने में काफी तेज थे। सिर्फ बारह साल की उम्र में उन्होंने 10वीं की परीक्षा दी और पहली पोजिशन लाए। सिर्फ 14 साल की उम्र में साल 1903 में उनको हॉस्टल में भेजा गया। उन्होंने 1902 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास में प्रवेश किया। 1904 में भौतिकी में पहला स्थान और स्वर्ण पदक हासिल कर भविष्य में अपना लक्ष्य सबके सामने कर दिया। वहीं वर्ष 1907 में उन्होंने अपनी एम.ए. की उपाधि प्राप्त की और यहां उन्होंने सर्वाधिक अंक हासिल किए।
छात्र जीवन में शुरू किए गए प्रकाश और ध्वनि में उनके शुरुआती शोधों पर उन्होंने अपना पूरा करियर समर्पित कर दिया। चूंकि उस समय एक वैज्ञानिक पेशे के कोई सही सही खाका तैयार नहीं था इस लिए सीवी रमन ने, इसलिए रमन 1907 में भारतीय वित्त विभाग में शामिल हो गए। यद्यपि उनके कार्यालय के कर्तव्यों में उनका अधिकांश समय लगता था। प्रारम्भ में ये भारत सरकार की वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठे और प्रथम श्रेणी से सफल हुए। जिसके बात जून 1907 ईo में रमन को असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल के पद पर कलकत्ता में तैनाती मिली। पर इतने प्रतिभाशाली व्यक्ति के जीवन में इस नौकरी के सहारे एक स्थिरता आ गयी जो इनकी प्रतिभा का अपमान था। तब इन्होंने वहां की “इंडियन असोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस” में शोध करना प्रारम्भ किया। यहाँ कुछ समय व्यतीत करने के बाद इन्हें रंगून भेज दिया गया और बाद में नागपुर। प्रयोगशाला का समय निर्धारित होने के कारण बाद में इन्होंने अपने घर में ही एक छोटी प्रयोगशाला स्थापित कर ली जिससे अपने समय का अधिक से अधिक उपयोग कर सकें। 1917 ईo में कलकत्ता विश्वविद्यालय में इन्हें भौतिक के प्राध्यापक का पद प्राप्त हुआ। 1921 ईo में इन्हें विश्वविद्यालयी कांग्रेस का प्रतिनिधि बनाकर ऑक्सफ़ोर्ड भेजा गया।
ऑप्टिकस’ के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये वर्ष 1924 में रमन को लन्दन की ‘रॉयल सोसाइटी’ का सदस्य बनाया गया और यह किसी भी वैज्ञानिक के लिये बहुत सम्मान की बात थी।
‘रमन इफ़ेक्ट’ की खोज 28 फरवरी 1928 को हुई। रमन ने इसकी घोषणा अगले ही दिन विदेशी प्रेस में कर दी। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने उसे प्रकाशित किया। उन्होंने 16 मार्च, 1928 को अपनी नयी खोज के ऊपर बैंगलोर स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया। इसके बाद धीरे-धीरे विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में ‘रमन इफेक्ट’ पर अन्वेषण होने लगा। फोरेंसिक साइंस में तो रमन प्रभाव का खासा उपयोग हो रहा है और यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी। दरअसल, जब खास तरंगदैर्ध्य वाली लेजर बीम किसी चीज पर पड़ती है तो ज्यादातर प्रकाश का तरंगदैर्ध्य एक ही होता है। लेकिन हजार में से एक ही तरंगदैर्ध्य मे परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन को स्कैनर की मदद से ग्राफ के रूप में रिकॉर्ड कर लिया जाता है। स्कैनर में विभिन्न वस्तुओं के ग्राफ का एक डाटाबेस होता है। हर वस्तु का अपना ग्राफ होता है, हम उसे उन वस्तुओं का फिंगर-प्रिन्ट भी कह सकते हैं। जब स्कैनर किसी वस्तु से लगाया जाता है तो उसका भी ग्राफ बन जाता है। और फिर स्कैनर अपने डाटाबेस से उस ग्राफ की तुलना करता है और पता लगा लेता है कि वस्तु कौन-सी है। हर अणु की अपनी खासियत होती है और इसी वजह से रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी से खनिज पदार्थ, कार्बनिक चीजों, जैसे- प्रोटीन, डीएनए और अमीनो एसिड का पता लग सकता है।
वेंकट रमन ने वर्ष 1929 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता भी की। वर्ष 1930 में प्रकाश के प्रकीर्णन और रमण प्रभाव की खोज के लिए उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।उनका आविष्कार उनके नाम पर ही रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। रमन प्रभाव का उपयोग आज भी विविध वैज्ञानिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। भारत से अंतरिक्ष मिशन चन्द्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था।
वर्ष 1934 में रमन को बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान का निदेशक बनाया गया। उन्होंने स्टिल की स्पेक्ट्रम प्रकृति, स्टिल डाइनेमिक्स के बुनियादी मुद्दे, हीरे की संरचना और गुणों और अनेक रंगदीप्त पदार्थो के प्रकाशीय आचरण पर भी शोध किया। उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति की खोज की थी। सीवी रमन ये खोज और अविष्कार तब कर रहे थे जब विज्ञान भारतीय विज्ञान बेहद अभाव के दौर से गुजर्नरह था। उस दौर में शोधकर्ताओं के पास बड़े और पुराने किस्म के यंत्र थे। खुद रामन ने भी रमन प्रभाव की खोज इन्हीं यंत्रों से की थी। आज रमन प्रभाव ने प्रौद्योगिकी को बदल दिया है। अब हर क्षेत्र के वैज्ञानिक रमन प्रभाव के सहारे कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इसके चलते बैक्टीरिया, रासायनिक प्रदूषण और विस्फोटक चीजों का पता आसानी से चल जाता है। अब तो अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसे सिलिकॉन पर भी इस्तेमाल करना आरंभ कर दिया है। ग्लास की अपेक्षा सिलिकॉन पर रमन प्रभाव दस हजार गुना ज्यादा तीव्रता से काम करता है। इससे आर्थिक लाभ तो होता ही है साथ में समय की भी काफी बचत हो सकती है।
वर्ष 1948 में वो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएस) से सेवानिवृत्त हुए। इसके पश्चात उन्होंने बेंगलुरू में रमन रिसर्च इंस्टीटयूट की स्थापना की। सन 1954 में सर सीवी रमन भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया तथा सन 1957 में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया था। चन्द्रशेखर वेंकटरमन का 82 वर्ष की उम्र में 21 नवम्बर 1970 में बंगलुरु में निधन हुआ था।