24. राजीव गांधी – भारतरत्न- 1991

24. राजीव गांधी -भारतरत्न- 1991

(जन्म-20 अगस्त 1944, मृत्यु – 21 मई 1991)

“मेरा संकल्प है कि जन सेवा को और बेहतर बनाया जाए। मैं इस सेवा में लगे सभी लोगों से कहना चाहता हूं कि अगर वे लगन और निष्ठा से काम करेंगे, तो उन्हें बाहरी दबाव और दखलअन्दाज़ी से पूरी सुरक्षा दी जाएगी, लेकिन भ्रष्ट, आलसी और निकम्मे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” यह बात कहने वाले राजीव गांधी वास्तव में स्वच्छ प्रशासन के हामी थे और उन्होंने सारी बुराइयों को जड़-मूल से नष्ट करने का प्रयत्न किया।

राजीव जी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को मुम्बई के डॉ. शिरोडकर नर्सिंग होम में हुआ था। वह अपनी मां इन्दिरा गांधी, नाना पं. जवाहरलाल नेहरू और पिता फ़िरोज़ गांधी की राजनीतिक विरासत को उन्हीं के बताए रास्ते पर चलाने के लिए वचनबद्ध थे।

सम्बन्धियों और मित्रों ने जब राजीव के जन्म की ख़बर सुनी, तो सबके दिलों में खुशी की लहर दौड़ गई। नवजात शिशु की कोमल मुस्कान देखकर घर का वातावरण झूम उठा। पंडित नेहरू उन दिनों जेल में थे। उन्होंने इन्दिरा जी को अपनी इच्छा कहला भेजी कि बच्चे का नाम उसकी नानी के नाम पर ही रखा जाए। इसलिए उसका नाम रखा गया, राजीव रत्न गांधी। कमल का एक पर्यायवाची शब्द राजीव भी होता है। रत्न शब्द का मतलब जवाहर से होता है। अतः यह हुआ राजीव रत्न यानी कमला और जवाहर का नवासा।

कहा जाता है कि बालक की प्रथम गुरु मां होती है। बच्चे अपने माता-पिता को जैसा काम करते हुए देखते हैं, वैसे ही गुण स्वतः उनमें समाते चले जाते हैं। बालक राजीव भी मौन रहकर अपने माता-पिता के क्रियाकलापों से प्रेरणा ग्रहण करते रहते थे।

राजीव बड़े मिलनसार, खुशमिज़ाज, काम को पूरी लगन से करने वाले बालक थे। वह ग़रीबों और बीमारों की सहायता में दिलचस्पी लेते थे। उन्हें बाग-बगीचे और बढ़िया फ़र्नीचरों का बड़ा शौक़ था। मशीनों के प्रति लगाव ने उन्हें होनहार बनाया। गृहस्थ जीवन को व्यवस्थित रूप में निभाना, पत्नी से बेहद प्रेम, अदम्य साहस, निर्भीकता, देश के प्रति समर्पण की भावना, रोज़मर्रा के जीवन को नियमित रखने जैसी आदतें माता से प्राप्त करने लगे। इन्हीं गुणों के कारण बाद में राजीव की कार्यप्रणाली विश्व भर में चर्चित हुई।

15 अगस्त, 1947 को देश आज़ाद हुआ और पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने। उनका निवास-स्थान तीनमूर्ति भवन को बनाया गया। नेहरू जी की यह ज़बर्दस्त इच्छा थी कि इन्दिरा जी इस विशाल भवन में सपरिवार उनके साथ ही रहें, लेकिन फ़िरोज गांधी देश को गुलामी से मुक्त कराने के बाद देश-निर्माण के कार्यों में जुटे रहे। तीनमूर्ति भवन की चारदीवारी में अपने आपको समेटना नहीं चाहते थे। देश सेवा ही उनका प्रथम लक्ष्य था। अतः उन्होंने अपनी पत्नी सोनिया गांधी को दोनों बालकों सहित तीनमूर्ति भवन में रहने की इजाज़त दे दी। वैसे बच्चों और इन्दिरा जी से मिलने वह बराबर वहां जाते रहे|

बालक राजीव जब बड़े हो गए, तो उन्हें दिल्ली के कर्ज़न रोड स्थित ‘शिव निकेतन’ स्कूल भेजा गया। यह स्कूल एक जर्मन महिला एलिज़ाबेथ गाबा चलाती थीं। दोनों बच्चे बड़े हुए तो बोर्डिंग स्कूल गए। 1955 में संजय के साथ उन्हें देहरादून के दून स्कूल में, दाखिल करवा दिया गया। इसके बाद राजीव को पढ़ने के लिए विलायत भेजा गया। एक वर्ष तक इम्पीरियल कॉलेज में और उसके बाद मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए ट्रिनिटी कॉलेज में दाख़िला ले लिया।

कमज़ोर का पक्ष लेना और जीवों पर दया करना, राजीव के मन में ये दो भावनाएं ऐसी जम गई थीं कि यदि वह अपने भाई अथवा किसी अन्य को इसके ख़िलाफ़ पाते, तो उसे डांटते और इसका महत्त्व समझाते। सभी से भविष्य में किसी जीव को न सताने का संकल्प करवाते। कितने ही ऐसे अवसर आए, जब राजीव ने संजय को इन बातों पर ख़ूब समझाया तथा स्नेह का पाठ पढ़ाया। राजीव के व्यक्तित्व में इस भावना की तीव्रता सहज ही देखी जा सकती थी।

भारत की तुलना वह विदेशों से करते और देश की जड़ों में जो कमियां छिपी हुई थीं, उनके विषय में दोस्तों से राय-मशविरा किया करते। अपनी कल्पना में वह भारत को विश्व का महान आत्मनिर्भर देश देखना चाहते थे। उनका सपना था कि चारों ओर खुशहाली हो और कोई भी भूखा न रहे । सभी के लिए अनिवार्य रोटी, कपड़ा और मकान के लिए चिन्तित रहते राजीव विलायत में थे, तभी उनकी मुलाक़ात इंग्लैंड में एक समारोह में सोनिया माइनो नामक युवती से हुई। इसी युवती के साथ भारत में 25 फ़रवरी, 1968 को राजीव का विधिवत विवाह सम्पन्न हो गया।

इन्दिरा जी ने आपात काल की घोषणा कर दी थी, क्योंकि देश में चारों ओर अव्यवस्था व असन्तोष फैला हुआ था। आपात काल का उद्देश्य था, देश को अराजकता से बचाना और आर्थिक स्थिति सुधारना। उसके बाद 1977 के चुनावों में इन्दिरा गांधी चुनाव हार गईं। जनवरी, 1980 में मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई और इस बार फिर से कांग्रेस सत्ता में आ गई।

अचानक जून, 1980 में एक हवाई दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु हो गई। अब इन्दिरा जी को केवल राजीव का ही सहारा था। अतः मां की मदद के लिए वह राजनीति में चले आए। संजय की मृत्यु से पहले उन्होंने राजनीति की ओर रुख करने की बात कभी सोची नहीं थी। संजय गांधी के निधन के कारण नेतृत्व में जो रिक्तता आ गई थी, उसे भरने के लिए राजीव के नाम पर ही विचार किया जा रहा था। लगभग सत्रह सांसदों ने मिलकर एक प्रस्ताव पारित किया और उस पर सबने हस्ताक्षर किए। राजीव पहले तो काफ़ी टालते रहे पर बाद में उन्हें मंजूर करना ही पड़ा। वैसे राजीव अपनी छुट्टियों के दौरान मां का हाथ बंटाते ही थे और प्रधानमन्त्री से मिलने आने वाले ख़ास व्यक्तियों से मिलते भी थे। उनसे विचार-विमर्श भी करते थे ।

राजीव का व्यक्तित्व, उनका देश के प्रति समर्पण भाव, नेहरू परिवार के देश पर छाए हुए असर जैसे गुणों ने राजीव को जल्दी ही लोकप्रिय बनाकर बुलन्दी पर बैठा दिया।

फ़रवरी, 1981 में राजीव ने दिल्ली में एक विशाल किसान रैली का आयोजन किया। एक अनुमान के अनुसार इस रैली में लगभग 50 लाख किसान आए थे। उन्होंने लगभग 25 हज़ार कार्यकर्ताओं के लगातार सहयोग से रैली की तैयारी की थी। अतः यह कहा जा सकता है कि उसी दिन राजीव गांधी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। उस समय उन्होंने उत्तम क़िस्म का बीज एवं खाद उपलब्ध कराने के विषय में सरकार का ध्यान आकर्षित किया। अपने विचारों को किसानों के सामने रखकर उन्होंने किसानों का दिल जीत लिया। समय पर सिंचाई के लिए किसानों को पानी मिले, इसके लिए सरकार से बिजली भी भरपूर मात्रा में देने का अनुरोध किया।

30 अप्रैल, 1981 को युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय समिति ने एकमत से पारित प्रस्ताव द्वारा राजीव गांधी से चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया। कांग्रेस संसदीय दल की बैठक हुई। बैठक में चुनाव के लिए उम्मीदवारों पर चर्चा आरम्भ हुई, तो वसन्तदादा पाटिल ने अमेठी चुनाव क्षेत्र से राजीव गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा। इससे पूर्व अमेठी संजय गांधी का चुनाव क्षेत्र रहा था। अमेठी की सीट उनके देहान्त के बाद खाली था। 9 जून को चुनाव हुआ और 16 जून को घोषित परिणामों के अनुसार अमेठी ने भरपूर प्यार के साथ राजीव गांधी को अपना प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा में भेज दिया। यहां से राजीव गांधी का राजनीतिक सफ़र आरम्भ हुआ। 17 अगस्त को राजीव ने लोकसभा में सदस्यता की शपथ ग्रहण की।

यह उनके लिए अच्छा था कि वह सांसद हो गए थे। कुछ आलोचकों को उनका मां के कामों में हाथ बंटाना अकारण अखर रहा था, लेकिन अब वह विधिवत मां के कामों में उनकी मदद करके लोगों के मुंह बन्द कर सकते थे राजीव गांधी ने सांसद बनने के बाद अनेक कार्यक्रम बनाए। वह अपने क्षेत्र के लोगों की दिक्कतें जानने के लिए निरन्तर दौरे करते रहे। उन्होंने लोगों को क्षेत्र में आते रहने का विश्वास दिलाया। इस विश्वास को उन्होंने अन्त तक बनाए रखा और क्षेत्र में कभी किसी को कहने का मौक़ा नहीं दिया कि उनका नेता चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में नहीं आता।

1984 के उत्तरार्द्ध में पंजाब की समस्या देश के लिए एक भीषण चुनौती के रूप में उभरकर सामने आई थी। इसी का ही नतीजा था कि 31 अक्टूबर, 1984 को कायरता और बर्बरतापूर्ण तरीके से प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की उनके ही निवास स्थान पर नृशंस हत्या कर दी गई। उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने उन पर गोलियां चलाकर उनका शरीर छलनी कर दिया । इन्दिरा जी की दुखद मृत्यु से भारत ने राजनीतिक और आर्थिक विकास के निर्णायक समय में एक समर्पित और प्रतिभावान नेता खो दिया।

इन्दिरा गांधी की हत्या का समाचार राजीव जी को भेजा गया। वह पार्टी के कार्य से कलकत्ता गए हुए थे। सूचना मिलते ही वह तुरन्त वहां से चल दिए । चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। देशभर में साम्प्रदायिक तनाव फैल गया। लोग ख़ूनी खेल खेलने लगे। दिल्ली में यह आग भयंकर रूप से फैली। राजीव जी ने उस गर्म वातावरण पर काबू पाने का भरसक प्रयत्न किया। वह दिल्ली में घूम-घूमकर लोगों को शान्त रहने के लिए समझा रहे थे।

श्रीमती गांधी की मृत्यु के बाद जिस सहजता से उसी दिन राजीव गांधी को कांग्रेस के संसदीय दल द्वारा नेता चुना गया। इसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी, लेकिन अब उन्हें प्रधानमन्त्री तो बनना ही था ।

12 नवम्बर, 1984 को प्रसारित राष्ट्र के नाम सन्देश में उन्होंने घोषणा की, “मेरा संकल्प है कि जन-सेवा को बेहतर बनाया जाए। मैं इस सेवा में लगे सभी लोगों से कहना चाहता हूं कि अगर वे लगन और निष्ठा से काम करेंगे, तो उन्हें बाहरी दबाव और दखलअन्दाज़ी से पूरी सुरक्षा दी जाएगी, लेकिन भ्रष्ट, आलसी और निकम्मे लोगों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

प्रधानमन्त्री का पद भार संभालने के बाद नए युग का सूत्रपात हुआ । उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण कार्य और किया । तुरन्त नए चुनावों की घोषणा कर दी। 1984 में आठवीं लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने सारे भारत का तूफ़ानी दौरा किया। चुनाव सम्पन्न हुए। पिछले सभी रिकॉर्डों को तोड़कर उन्होंने नया रिकॉर्ड बनाया। जनता ने जितने प्रचंड बहुमत से राजीव गांधी को प्रधानमन्त्री पद पर बैठाया, वह कल्पना से परे था । यह भारत की राजनीति में एक नए धूमकेतु का उदय था।

30 जनवरी, 1985 को आठवीं लोकसभा के पहले सत्र में राजीव गांधी ने दल-बदल सम्बन्धी एक विधेयक प्रस्तुत किया। इस विधेयक का सभी राजनीतिक दलों ने खुले दिल से स्वागत किया। राजीव गांधी का मुख्य उद्देश्य ईमानदार, निष्ठावान और कार्य करने वाली सरकार की स्थापना करना और भारत की स्थिति को विदेशों में ऊंचा उठाना था। इसलिए नेहरू जी की तरह विदेश मन्त्रालय अपने पास ही रखा।

उन्होंने 28 जनवरी, 1985 को दिल्ली के विज्ञान भवन में छः राष्ट्रों के शासनाध्यक्षों का शिखर सम्मेलन आयोजित किया। सम्मेलन में परमाणु हथियारों के परीक्षण और होड़ पर रोक लगाने की मांग की गई और सुझाव दिया गया कि इस पर ख़र्च होने वाले धन को विकास कार्यों के लिए किया जाए। इस घोषणा पर भारत, यूनान, स्वीडन, अर्जेंटीना, मैक्सिको और तंजानिया ने हस्ताक्षर किए। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर राजीव गांधी का यह पहला क़दम था। यह भगवान बुद्ध, महात्मा गांधी और नेहरू की शान्ति, अहिंसा और सहअस्तित्व की विरासत को आगे बढ़ाने वाला एक सराहनीय एक क़दम था।

राजीव गांधी ने महसूस किया कि देश के नागरिकों की सेवा करने और उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए देश को निकट से देखना बेहद ज़रूरी है। यही सोचकर उन्होंने सम्पूर्ण भारत-दर्शन का कार्यक्रम बनाया। 12 जुलाई, 1985 को यह यात्रा मध्य-प्रदेश के एक साधारण और अनजाने गांव झाबुआ से शुरू हुई, फिर उड़ीसा, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, लक्षद्वीप से लेकर अरुणाचल और मिज़ोरम तक सारे ही देश को नाप दिया। इस यात्रा में उन्होंने भारत की वास्तविक तस्वीर को बहुत क़रीब से देखा। इसे राजीव गांधी की सद्भावना यात्रा कहा गया।

श्रीलंका का इतिहास मानव रक्त में डूब गया था। हज़ारों नागरिक मौत की नींद सो गए। लगभग पन्द्रह लाख लोग भागकर भारत आ गए और शरणार्थी बन गए। इस मामले में राजीव गांधी ने पहल की। 29 जुलाई, 1987 को कोलम्बो में श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने से आमने-सामने बैठकर बात की और दोनों ने भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किए। दूसरे दिन राजीव गांधी स्वदेश लौट रहे थे। श्रीलंका सरकार की ओर से कोलम्बो हवाई अड्डे पर उनके सम्मान में विदाई समारोह का आयोजन किया गया था। परम्परा के अनुसार उनको नौसैनिकों द्वारा प्रस्तुत गार्ड ऑफ ऑनर के निरीक्षण के लिए आमन्त्रित किया गया। यहां पर एक नौसैनिक ने उन पर घातक हमला कर दिया। बन्दूक का कुन्दा उनकी गर्दन पर लगा। सौभाग्य से अनहोनी टल गई। इससे पहले 2 अक्टूबर, 1986 को जब वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे, तब भी बाहर एक कोने की घनी झाड़ियों में से किसी ने गोली चलाकर उनकी हत्या का घिनौना प्रयास किया था।

राजीव गांधी इस क़द्र लोकप्रिय हो चुके थे कि समूचे विपक्ष को अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को सफल बनाने का मौक़ा ही नहीं मिल रहा था। आख़िर विपक्षी दलों ने मिलकर जनमोर्चा की स्थापना कर ली। इससे नवीं लोकसभा के आम चुनावों में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से जनमोर्चा की सरकार बनी और विश्वनाथप्रताप सिंह देश के प्रधानमन्त्री बन गए। इस दौरान विश्वनाथप्रताप सिंह ने मंडल कमीशन लागू कर दिया। उनकी नीति भारतीय जनता पार्टी को रास नहीं आई और उसने अपना समर्थन वापस ले लिया। उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी और लोकसभा भंग कर दी गई।

अगली लोकसभा के लिए चुनावों की घोषणा हुई। चुनावी सरगर्मियां फिर शुरू हो गईं। राजीव गांधी के तूफ़ानी दौरे होने लगे। चुनाव अभियान के दौरान जब वह 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपैराम्बदूर नामक स्थान पर एक आम सभा में भाषण देने के लिए गए, तो एक आत्मघाती औरत ने राजीव गांधी को मृत्यु की अन्धी गुफ़ा में धकेल दिया। इस तरह एक स्वप्नद्रष्टा युवा नेता तथा भारतीय राजनीति का धूमकेतु सदा के लिए विलुप्त हो गया और शेष रह गए केवल उसके किए हुए काम और अन्तहीन यादें ।

17 जून, 1991 को उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से विभूषित किया। इसके बाद मई, 1992 में इन्दिरा गांधी शान्ति, निःशस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार से भी राजीव गांधी को नवाज़ा गया।

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