50. लालकृष्ण आडवाणी -2024

50. लालकृष्ण आडवाणी -2024

(जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर, 1927)

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर, 1927 को एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किशनचंद आडवाणी और मां का नाम ज्ञानी देवी है। उनके पिता पेशे से एक उद्यमी थे। शुरुआती शिक्षा उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से ग्रहण की थी। इसके बाद वह हैदराबाद, सिंध के डीजी नेशनल स्कूल में दाखिला लिया। उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल से पढ़ाई की है। 1942 में उन्होंने भारत छोडो आंदोलन के दौरान गिडूमल नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होंने 1944 में कराची के मॉडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी की।

1951 में श्याम प्रसाद मुखेरजी ने आर.एस. एस. के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की. आर.एस.एस. के सदस्य होने के नाते एल.के.आडवाणी भी जनसंघ से जुड़ गए. उन्हें राजस्थान में जनसंघ  के श्री एस.एस.भण्डारी के सचिव के पदपर नियुक्त किया गया. एल.के.आडवाणी. बहुत ही कुशल राजनीतिक थे.उनके कुशल नेत्रत्व के डीएम पर जल्द ही उन्हें जनसंघ में जनरल सेक्रेटरी का पद भी मिल गया| फिर राजनीति में अपना कदम आगे बढाते हुए 1957 में उन्होने दिल्ली की ओर रूख किया. वहाँ उन्हे दिल्ली के जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया| उन्होने 1967 में दिल्ली के महानगरीय परिषद चुनाव लड़े और काउंसिल के नेता बने. राजनीतिक गुण के साथ-साथ एल.के.आडवाणी में और भी कई प्रतिभाएँ थी. 1966 में आर.एस.एस. की साप्ताहिक पत्रिका में उन्होने संपादक श्री के.आर.मलकानी की भी मदद की|

भारतीय राजनीतिक पटल पर सबसे अनुभवी राजनीतिज्ञों में से एक एवं भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष- कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी 1947 में देश के आजाद होने का जश्न भी नहीं मना सके क्योंकि आजादी के महज कुछ घंटों में ही उन्हें अपने घर को छोड़कर भारत रवाना होना पड़ा। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान छोड़कर मुंबई आकर बस गया। यहां उन्होंने लॉ कॉलेज ऑफ द बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। सन 1965 में फरवरी में एल. के. आडवाणीजी का विवाह कमला देवी से हुआ उनके बेटे का नाम जयंत आडवाणी और बेटी का नाम प्रतिभा आडवाणी है।

आडवाणी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जरिए अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। कई वर्षों तक आडवाणी राजस्थान में आरएसएस प्रचारक के काम में लगे रहे। वह उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी।

1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से ही आडवाणी जी वह शख्स हैं जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी तीन बार (1986 से 1990, 1993 से 1998 और 2004 से 2005) भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। आडवाणी जी पहले गृह मंत्री रहे, बाद में अटल जी की कैबिनट में (1999-2004) उप-प्रधानमंत्री बने आडवाणी जी को बेहद बुद्धिजीवी, काबिल और मजबूत नेता माना जाता है जिनके भीतर मजबूत और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित है। जैसा की अटलजी बताया करते थे, आडवाणी जी ने कभी राष्ट्रवाद के मूलभूत विचार को नहीं त्यागा और इसे ध्यान में रखते हुए राजनीतिक जीवन में वह आगे ब़ढ़े हैं और जहां जरूरत महसूस हुई है, वहां उन्होंने लचीलापन भी दिखाया है।

लाल कृष्ण आडवाणी ने पहला लोकसभा चुनाव 1984 में लड़ा और भारतीय जनता पार्टी  को केवल दो सीटें उसे मिलीं. लेकिन जैसे ही लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा की कमान संभाली तब 1989 में उसने लोकसभा की 85 सीटें जीत लीं. इसका श्रेय आडवाणी को मिला क्योंकि वही उस समय पार्टी प्रेसिडेंट थे. उनके उग्र हिंदुत्त्ववादी रुझान को इस जीत का क्रेडिट दिया गया. इसी के साथ उनकी जन नेता की छवि बनी. इसके पहले वे बैक डोर वाले नेता कहे जाते थे.

1980 की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन की शुरुआत करने लगी। उधर आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा राम मंदिर आंदोलन का चेहरा बन गई। आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर सोमनाथ से राम रथ यात्रा शुरू की थी।

1980 से 1990 के बीच आडवाणी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए काम किया। 1984 में महज दो सीटें हासिल करने वाली पार्टी को अगले लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिलीं। पार्टी की स्थिति 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और भाजपा सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी थी।

आडवाणी दिग्गज तथा दूरदर्शी नेता थे, फिर भी राजनीति में रहते उन पर कई आरोप भी लगे. उन पर हवाला ब्रोकर्स से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया, लेकिन सूप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में इन्हे बाइज्जत बरी कर दिया.

वह 1998 से 2004 के बीच भाजपा के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) में गृहमंत्री रह चुके हैं। लालकृष्ण आडवाणी 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भारत के सातवें उप प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं। 10वीं और 14वीं लोकसभा के दौरान उन्होंने विपक्ष के नेता की भूमिका बखूबी निभाई है।

एल.के. आडवाणी की आलोचनाओं का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ. एक बार जून 2005 में वे कराची के दौरे पर गए, जो कि उनका जन्मस्थान है, वहाँ उन्होने मोहम्मद अली जिन्नाह को एक धर्मनिरपेक्ष नेता बताया| यह बात आर.एस.एस. के हिन्दू नेताओं के गले नहीं उतरी और आर.एस.एस. ने इस बयान के विरोध में आडवाणी के इस्तीफे की मांग कर दी| आडवाणी जी को विपक्ष के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में उन्होने अपना इस्तीफा वापस ले लिया\

लालकृष्ण आडवाणी को एक सांसद, एक मंत्री, एक पार्टी नेता और एक राजनेता के रूप में राष्ट्र के प्रति उनके उत्कृष्ट योगदान हेतु इस सम्मान के लिए चुना गया था। उनकी राजनीतिक यात्रा सात दशकों से अधिक लंबी है और उनका योगदान देश की प्रगति और विकास में महत्वपूर्ण रहा है।

लालकृष्ण आडवाणी को व्यापक रूप से महान् बौद्धिक क्षमता, मजबूत सिद्धांतों और एक मजबूत और समृद्ध भारत के विचारों के प्रति अटूट आस्था एवं समर्थनवाले व्यक्ति के रूप में जाना-माना जाता है। जैसा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने पुष्टि की है, ” उन्होंने राष्ट्रवाद में अपने मूल विश्वास से कभी समझौता नहीं किया है और फिर भी जब भी स्थिति की माँग हुई, उन्होंने राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में लचीलापन प्रदर्शित किया है।”

भारत के उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में, लालकृष्ण आडवाणी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून प्रवर्तन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में पुलिस बल के आधुनिकीकरण और आतंकवाद और उग्रवाद जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई। उन्होंने सन् 2002 ई. में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अधिकारियों को आतंकवाद से लड़ने के लिए और अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं। उन्होंने विभिन्न खतरों और आपात स्थितियों के प्रति देश की तैयारियों और प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की भी स्थापना की।

आडवाणी को उनकी सार्वजनिक सेवा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जैसे सन् 2015 ई. में भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण, सन् 1999 ई. में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार और सन् 2016 ई. में भारतीय राजनीति में उनके योगदान के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जैसे ‘माई कंट्री माई लाइफ़’, ‘ए प्रिज़नर्स स्क्रैप-बुक’, और ‘द बीजेपी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी’ इत्यादि।

भारतरत्न न केवल लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) के राजनीतिक करियर की स्वीकृति है, बल्कि राष्ट्र की सेवा के लिए उनकी राजनीति कौशल और समर्पण की भी मान्यता भी है। उनको भारतरत्न प्रदान करने में आडवाणी के अनुसार, सरकार सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि दृढ़ नेतृत्व, दृढ़ विश्वास और राष्ट्र की सेवा के प्रतीक का सम्मान करती है। आडवाणी की विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी और यह पुरस्कार उस राजनेता के प्रति सच्ची श्रद्धा है, जिसने भारत की नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस बहाने भारतीय राजनीति के एक कुशल राजनीतिज्ञ एवं भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष शिल्पकार  को आदर और सम्मान देना सुखद है।  लालकृष्ण आडवाणी 1970 से 2019 तक संसद के दोनों सदन में सदस्य रहे। 2015 नें उन्हें भारत के दूसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। लालकृष्ण आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ 2024 के लिए चुना गया है।

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