48. डोक्टर भूपेन हज़ारिका
(8 सितंबर, 1926- ५ नवम्बर २०११) भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम …
सिनेमा, संगीत और कला के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए मशहूर डॉक्टर भूपेन हज़ारिका को भारत रत्न दिया जाएगा| वे न केवल हिंदी बल्कि असमिया और बंगाली भाषाओं के कलाजगत के प्रमुख स्तंभ रहे. पद्म और दादा साहेब फालके सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़े गए हज़ारिका ने पहला गीत सिर्फ 10 बरस की उम्र में गाया था|
हज़ारिका के संगीत सफर की शुरूआत बचपन में ही हो चुकी थी| 12 साल की उम्र में हज़ारिका ने पहली बार प्लेबैक सिंगिंग की थी| असमिया के मशहूर गीतकार, नाटककार और फिल्मकार अगरवाला की 1939 में रिलीज़ हुई फिल्म इंद्रमालती के लिए हज़ारिका ने दो गाने गाए थे| इन दो गानों के बोल थे — ‘काक्षोते कोलोसी लोई’ और ‘बिस्वो बिजयी नौजवान’|
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, यह कहावत चरितार्थ करते हुए चौंकाने का सिलसिला हज़ारिका ने जारी रखा| 13 बरस की उम्र में उन्होंने पहला गीत खुद लिखा और खुद कंपोज़ किया| यह गीत था ‘अग्निजुगोर फिरिंगोती मोई’ जिसे खासी प्रसिद्धि और सराहना भी मिली थी|
बचपन से शुरू हुआ संगीत का उनका यह सफर आगे ही बढ़ता चला गया और उनकी ख्याति बनता गया| संगीत के प्रति हज़ारिका की लगन और नैसर्गिक प्रतिभा का एक कारनामा यह भी था कि उन्होंने कई ट्रेंड सेट किए| असमिया संगीत के वह अग्रदूत माने जाते हैं| इसके साथ ही, बंगाल के संगीत की एक धारा पर भी उनका प्रभाव है| बंगाल के ख्यात कंपोज़र और गायक कबीर सुमन का ‘ज्वालामुखी गीत’ शैली अस्ल में, हज़ारिका के संगीत से ही प्रभावित रही है|
हज़ारिका को उनके एक प्रसिद्ध गीत ‘गंगा बहती हो क्यों’ के ज़रिये उनके प्रशंसक हमेशा याद करते हैं. अमेरिका में शिक्षा और काम के लिए उनका प्रवास उनके संगीत के लिए भी महत्वपूर्ण बना| इस दौरान हज़ारिका की मुलाकातें नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और संगीत के जानकार पॉल रॉबेसन से हुई थीं| संगीत के विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘गंगा बहती हो क्यों’ का संगीत हज़ारिका ने रॉबेसन के गीत ‘ओ मैन्स रिवर’ की थीम और कल्पना के आधार पर ही रचा था|
अमेरिका से लौटकर हज़ारिका ‘इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन’ यानी इप्टा से जुड़े थे और वहां भी उनके संगीत योगदान को याद किया जाता रहा| हालांकि इप्टा के साथ उनकी सक्रियता सिर्फ दो सालों की रही लेकिन उनकी शख़्सियत और प्रतिभा यह थी कि 1955 की कॉन्फ्रेंस के लिए उन्हें रिसेप्शन कमेटी का सचिव नियुक्त किया गया था|
संगीतकार होने के साथ ही भूपेन हज़ारिका प्रशंसित और सम्मानित फिल्मकार रहे. असमिया की कम से कम दो क्लासिक फिल्में ‘शकुंतला’ और ‘प्रतिध्वनि’ के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहा है और रहेगा| इसके साथ ही, रुदाली, मिल गई मंज़िल मुझे, दरमियान, दमन, साज़, गजगामिनी और क्यों जैसी फिल्में भी उनकी कला के सबूत के तौर पर उनके फैन्स को याद आती रही हैं|
बेस्ट फिल्ममेकर का प्रेसिडेंट नेशनल अवॉर्ड उन्हें तीन बार मिला. इसके साथ ही फिल्मों में संगीत के लिए उन्हें कई बार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया|
भूपेन के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग मशहूर फिल्मकार कल्पना लाजमी के साथ रिश्ता भी रहा| कल्पना और हज़ारिका का प्रेम प्रसंग कई बार कई तरह से चर्चा में भी आया| इसकी चर्चा तब भी हुई थी जब कल्पना निर्देशित फिल्म चिंगारी प्रदर्शित हुई थी| अस्ल में कल्पना की फिल्म चिंगारी, हज़ारिका लिखित उपन्यास ‘द प्रॉस्टिट्यूट एंड द पोस्टमैन’ पर आधारित थी|
हजारिका का जन्म असम के तिनसुकिया जिले के सदिया इलाके में हुआ था। 10 बच्चों में सबसे बड़े, हजारिका को अपनी मां की वजह से संगीत से लगाव हुआ। उन्होंने मात्र 10 साल की उम्र में अपने लिखे गाने को गाया था। साथ ही उन्होंने असमिया सिनेमा की दूसरी फिल्म ‘इंद्रमालती’ के लिए 1931 में काम किया। उस समय उनकी उम्र मात्र 12 साल थी। हजारिका ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए किया। इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली।
पढ़ाई पूरी होने के बाद हजारिका ने गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरू कर दिया। इसके साथ हजारिका बंगाली गानों को हिंदी में ट्रांसलेट कर उसे अपनी आवाज देते थे। हजारिका को कई भाषाओं का ज्ञान था। समय बीतने के साथ वो स्टेज परफॉर्मेंस भी देने लगे। एक बार वो कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए। यहां उनकी मुलाकात प्रियम्वदा पटेल से हुई। दोनों में प्यार हुआ और यूएस में ही साल 1950 में दोनों ने शादी कर ली।
1952 में उनका बेटा तेज हजारिका हुआ। 1953 में हजारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आए लेकिन दोनों ज्यादा समय तक साथ नहीं रह पाए। भारत आकर हजारिका ने गुवाहाटी यूनिवसिर्टी में टीचर की जॉब की। बहुत समय तक वो टीचर की नौकरी नहीं कर पाए और रिजाइन दे दिया।
पैसों की तंगी की वजह से उनकी पत्नी प्रियम्वदा ने उन्हें छोड़ दिया। इसके बाद हजारिका ने म्यूजिक को ही अपना साथी बना लिया। उन्होंने ‘रुदाली’, ‘मिल गई मंजिल मुझे’, ‘साज’, ‘दरमियां’, ‘गजगामिनी’, ‘दमन’ और ‘क्यों’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत दिए। हजारिका ने अपने जीवन में एक हजार गाने और 15 किताबें लिखीं। इसके अलावा उन्होंने स्टार टीवी पर आने वाले सीरियल ‘डॉन’ को प्रोड्यूस भी किया था।
म्यूजिक के क्षेत्र में उनके अद्भुत योगदान के लिए उन्हें 1975 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 2009 में असोम रत्न और इसी साल संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2011 में पद्म भूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनके यादगार गानों में ‘दिल हूं हूं’ और ‘जूठी मूठी मितवा’ है।
भूपेन हजारिका देश के ऐसे महान कलाकार थे जो अपने गाने खुद लिखते, संगीतबद्ध करते और गाते थे। भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा उन्होंने हिंदी, बंगला समेत कई भारतीय भाषाओं में गाने गाए।
भूपेन हजारिका को प्रकृति से बेहद प्यार था। उनके गानों में प्रकृति की झलक दिखती है। वो भारतीय संस्कृति और जनता के प्रति उनका लगाव और प्रतिबद्धता संदेह के परे थी। वो एक बेहतरीन गायक, कवि, गीतकार, संगीतकार, फिल्मकार और लेखक थे। उन्होंने असमिया भाषा को देशभर में पहचान दिलाने के लिए काफी मेहनत की। असमिया भाषा, वहां की कला-संस्कृति और लोक कलाओं को संवर्धन और प्रसार में उनका योगदान अमूल्य था। उन्होंने गंगा नदी की दुर्दशा को लेकर ‘ओ गंगा बहती है क्यों’ गाया, जिसे न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी खूब सराहना मिली। हजारिका ने इस गीत को बांग्ला और असमिया में भी गाया है। उन्होंने इस गाने के जरिए सामाजिक चेतना जगाने का प्रयास किया।
भूपेन हजारिका ने 1000 से ज्यादा गानें गाए। उन्हें ‘एक पल’ या ‘रुदाली’ जैसी फिल्मों के अद्भुत गीत और संगीत की वजह से अलग पहचान मिली। वो गहरे रूप से असम से जुड़े होने के बावजूद अपनी छवि को अखिल भारतीय प्रतिभा की तरह रखा और हर भारतीय उन्हें अपना मानता था। उन्होंने अपनी संगीत के जरिए उन्होंने उत्तर-पूर्व और शेष भारत के बीच अपरिचय की खाई को पाटने के काम में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने 30 से ज्यादा फिल्मों में 1000 से ज्यादा गानें गए। 15 किताबें लिखी हैं। इसके अलावा टीवी सीरियल को प्रोड्यूस करने का भी काम किया। उनके सुपरहिट गानों और म्यूजिक में ‘रुदाली’, ‘मिल गई मंजिल मुझे’, ‘साज’, ‘दरमियां’, ‘गजगामिनी’, ‘दमन’ और ‘क्यों’ ‘दिल हूं हूं’ और ‘जूठी मूठी मितवा’ शामिल है।
वह हमेशा संगीतकार, गायक, एक्टर और फिल्म निर्देशक के रूप में सक्रिय रहे। समाज के तमाम गंभीर मुद्दों को उन्होंने फिल्मों और संगीत के माध्यम से पेश किया। उनकी इसी कला ने उन्हें एक महान गीतकार की फेहरिस्त में लाकर खड़ा कर दिया। 2011 में उनका निधन हो गया।