हर साल 25,000 से ज्यादा आदिवासी और गरीब बच्चो को मुफ्त में शिक्षा प्रदान करनेवाले डॉ. अच्युत सामंत

सामंत का जन्म 20 जनवरी 1965 को  ओडिशा के कटक जिले के कलारबंका नामक गांव में हुआ | उनकी माता का नाम निर्मला रानी और पिता का नाम अनादि चरण था | गरीबी और अभाव में उनका बचपन बीता | बावजूद इसके उन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में  एमएससी की और भुवनेश्वर के महर्षि महाविद्यालय में अध्यापन करने लगे |  वे आज भी अविवाहित हैं | डॉ अच्युत सामंत को कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं

आदिवासी बच्चों को मुफ्त शिक्षा, भोजन, पुस्तकें, पोशाकें उपलब्ध करनेवाले डॉ अच्युत सामंत हाल ही ओडिशा से बीजू जनता दल से राज्यसभा सांसद बने  हैं | अशिक्षा के खिलाफ उनकी लड़ाई  उनके सामाजिक सरोकार के जज्बे  को दर्शाती है | सामंत को आदिवासियों का मसीहा भी कहा जाता है |  अच्युत सामंत खुद को सबसे गरीब सांसद मानते हैं | बैंक बेलेंस के नाम पर उनके पास  लगभग तीन लाख रुपये है | जायदाद के नाम पर भी उनके पास कुछ भी नहीं है | जनता से जुड़े मुद्दे को ही वे संसद  में उठाना चाहते हैं | जनहित में काम करना उनकी तीव्र इच्छा है |

उनके द्वारा  स्थापित कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (किस) में करीब 27 हजार गरीब आदिवासी बच्चे केजी से पीजी तक मुफ्त में शिक्षा, छात्रावास की सुविधा  और भोजन प्राप्त कर रहे हैं | किन्नरों को भी  मुख्यधारा में जोड़ने की उनकी इच्छा है | वे दूसरे राज्यों में भी  किस की शाखाएँ  खोलना चाहते हैं | डॉ सामंत ओडिशा के प्रसिद्ध समाजसेवी और शिक्षाशास्त्री हैं | वे कलिंग प्रौद्योगिकी संस्थान (कीट), कलिंग  औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्थान ( किस) व कलिंग समाज विज्ञान संस्थान के संस्थापक हैं |

किस के संस्थापक डॉ अच्युत सामंत ने अपनी असाधारण कामयाबी से पूरे भारत में शैक्षिक क्रांति ला दी  है | विश्व विख्यात उनके दो शैक्षिक संस्थान के आईआईटी (कीट) कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलोजी और केआईएसएस (किस) कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज  आज विश्व स्तर पर शिक्षा  जगत की अनुपम मिशाल बन चुके है | एक तरफ जहाँ कीट भारत के बेस्ट 30 तकनीक कालेजों में से एक है, वही किस विश्व का एक मात्र सबसे बड़ा आदिवासी आवासीय विद्यालय बन चूका है |

डॉ अच्युत सामंत अपने भाग्य और पुरुषार्थ दोनों पर विश्वास रखते हैं | विश्व स्तर पर किस की स्थापना और अपनी शैक्षिक पहल को डॉ सामंत ईश्वर कृपा ही मानते हैं | डॉ सामंत जब 24-25 साल के थे,  तब  वे एक इंजीनियरिंग कालेज खोलना चाहते थे | उस समय उनके पास कुछ भी नहीं था | न पैसा, न ही कोई सहायक और न ही कोई सलाहकार | उन्होंने स्वयं अपनी कमाई के मात्र पांच हजार की जमा पूंजी से 1992 में कीट की स्थापना की | कीट को आगे चलाने के लिए 1995 में उनके सिर पर 15 लाख रुपये का कर्ज हो गया | एक दिन ऐसा आया कि कर्ज अदायगी में अपने को असमर्थ पाकर आत्महत्या करने की ठान ली | लेकिन भाग्य का खेल देखिये अचानक बिना कोई शर्त एक बैंक उनके सामने आया | उसने कीट भवन को देखकर कुल 25 लाख रुपये का कर्ज उन्हें दे दिया | तब से उन्होंने कभी पीछे मोड़कर नहीं देखा | कीट में आज २२ हरे भरे कैंपस हैं | वहां पर लगभग 100 स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम नियमित रूप से चलते हैं | कीट में आज लगभग 25 हजार बच्चे हैं | सच तो यही  है कि डॉ सामंत के सपनों को साकार करती हुई उनकी दोनों विश्वस्तरीय संस्थान कीट-किस कुल 400 एकड़ भूभाग पर ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर में अवस्थित है |

डॉ सामंत ने कीट की स्थापना, 1992 में की | अपने कीट से प्राप्त आय को उन्होंने किस में लगाया, जहाँ कुल 125 बंधुआ मजदूरों के बच्चे निःशुल्क रहते और पढ़ते थे | आज किस में ओडिशा के आदिवासी बाहुल्य कुल 23 जिलों के 25 हजार आदिवासी बच्चे हैं | देश- विदेश के अनेक नोबेल पुरस्कार विजेता, विधिवेत्ता,  फिल्मी हस्तियाँ और खिलाड़ी आदि किस प्रबंधन को देखने के लिए आते रहते हैं | कीट के सभी नियमित कर्मचारियों  और  अधिकारियों के मासिक वेतन का तीन प्रतिशत किस कल्याण कोष के लिए लिया जाता है | कीट के वैसे अभिभावकों से भी अंशदान लिया जाता है, जो किस के कल्याण के लिए देना चाहते हैं | इस प्रकार किस के साल भर के 90 प्रतिशत  व्यय का इंतजाम कीट खुद  ही करता है | इसके अलावा अनेक उदारमना, सहृदय व्यक्ति और संगठन भी किस के कल्याण हेतु खुले दिल से दान देते हैं | डॉ सामंत के जीवन का लक्ष्य किस की 30 अन्य शाखाएँ ओडिशा के 30 जिला मुख्यालयों में खोलना है | उनकी इच्छा है कि किस की शाखाएँ वे पूरे भारत में खोले |  ऐसे महान पुरुषों की इच्छा अवश्य पूरी हो |

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