स्वयं को पहचानो…………..

जीवन में सफल होने के लिए, सबसे जरूरी बात है स्वयं को पहचानना और उसके बाद स्वयं को बदलना, स्वयं पर विश्वास करना और स्वयं के ऊपर काम करना। वैसे तो यह कहा जाता है कि, हमेशा मनुष्य को अपने अहम का त्याग करना चाहिए, लेकिन यहाँ पर बात है विकास की, सफलता की और अपने सपनों को साकार करने की। फ्ट्रिपुर्नय् ने लिखा है,  बुध्धिमान इंसान वही है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। जो मन में आई भावनाओं में नहीं बहता, जो आवेश को अपने ऊपर शासन नहीं करने देता, किन्तु अपने सिद्धांतों के अनुकूल आचरण करता हैय्। इसलिए सबसे जरूरी है स्वयं को पहचानना। विश्व के कई प्रतिष्ठित लोग कहते हैं कि, सुबह में उठकर सब से पहले आईने में अपना मुंह देखकर यह बोलना है कि, भगवन मेरे साथ है और इसलिए मैं दुनिया का सर्वश्रेठ मनुष्य हूँ। मैं कुछ भी कर सकता हूँ। मैं कुछ भी बन सकता हूँ। भगवद् गीता के 15वें अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि, सर्वस्यचाहं ”हृदिसंनिविस्टो, मतलब की भगवान हमारे ”ऋदय में हैं, हमारे भीतर हैं।

आप सोचो की अगर एक कलेक्टर के साथ हम चलकर जाते हैं तो हम अपने आप को कितना गर्व महसूस करवाते हैं। हम एकदम सीधा, सीना तानकर चलते हैं, विश्वास से सम्पूर्ण होते हैं, गर्व से भरपूर होते हैं। एक पुलिस इन्स्पेक्टर के साथ अगर हमारी पहचान होती है, तो हम गाँव में सब के ऊपर अपना रुआब जताते हैं। सचिवालय में मंत्री का कारकुन या नौकर, बाहर जाकर कितना इतराता है। इन सब बाताें से हर कोई परिचित है, इसलिए हम अपने आप को यह अच्छी तरह समझाएं की दुनिया का पालनहार, कर्ता-हर्ता हमारे भीतर है। जब खुद भगवान मेरे भीतर हैं तो मुझे किसी से क्या डरना?— मैं क्यों दीन, लाचार, असहाय बनूँ?– तो यह तय हुआ की भगवान मेरे भीतर है तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कुछ भी बन सकता हूँ। आत्मविश्वास होने से ज्यादा जरूरी है ईश-विश्वास। कोई काम मुझसे से होगा की नहीं, यह मैं कैसे कर सकता हूँ कि नहीं, ऐसी बातों का हमारे जीवन में कोई महत्व होना ही नहीं चाहिए। अपने मन को हमें खुद तैयार करना होगा, अपने आप को बदलना होगा, तो सफलता हमारे कदमों को चूमेगी। मनुष्य जीवन श्रेष्ठ जीवन है। कहते हैं कि 84 लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है, इसलिए इस जीवन को संभालकर जीना है। एक बार सोच लो कि, अगर भगवान प्रसन्न होते हैं और हमें हमारी विश (इच्छा) को पूरा करने का बोलते हैं। मैंने कहा कि मुझे एक अच्छी सी गाड़ी चाहिए, और भगवान अगर यह कहते है कि, गाड़ी तो मैं देता हूँ पर शर्त यह है कि तुझे अपने जीवन में फिर कभी भी गाड़ी नहीं मिलेंगी। अगर ऐसा हुआ तो हम यह गाड़ी कैसे संभालेंगे?— अपनी जान से भी ज्यादा।

वैसे ही हमें यह मानकर चलना होगा की यह श्रेष्ठ मनुष्य जीवन भगवान ने मुझे प्रदान किया है, जो व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। यह श्रेष्ठ जीवन मुझे जुआ खेलकर, दारू पीकर, लोगों से लड़ाई कर के, झूठ बोलकर, सिगरेट के धुंए निकालकर या मोबाइल में हररोज चार-छह घंटा चौटिंग करके व्यर्थ नहीं करना है। मुझे अपने आप को बदलना पड़ेगा, आदतें बदलनी पड़ेंगी, मन को मजबूत करना पड़ेगा, तभी जाकर मुझे सफलता मिलेगी। तालाब में एक फ्रलाई ड्रेगन नाम के कीडे से होते है, जो तालाब के भीतर रेंगते रहते हैं और हमेशा ऊपर जाने की कोशिश करते रहते हैं। एक बार एक कीड़ा बड़ी महेनत करके ऊपर चला गया। इन कीड़ो में एक ऐसी खासियत होती है कि अगर वो तालाब से बाहर निकल जाए तो उड़ सकते हैं और रंग भी बदल जाता है। जो ऊपर चला गया वो कीड़ा जब तालाब के ऊपर से उड़ेगा तब क्या सोचेगा?— वह सोचेगा की अगर मैं इतनी महेनत नहीं करता तो आज मैं भी इन सब कीड़ों के साथ तालाब में रेंगता रहता।

इसलिए अगर मुझे अपने सपनो को साकार करना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी। दूसरा कि वो कीड़ा अब चाहे तो भी वहां पर तालाब में वापस जा नहीं सकता, वैसे ही एक बार आदमी सफल हो जाए तो फिर वो चाहकर भी गंदगी में जा नहीं सकता, और अगर चला जाए तो अंदर के कीड़े उसे पहचान नहीं सकते। वैसे ही जब हम अपने आप में परिवर्तन करेंगे तो सफलता मिलेगी और सफलता मिलेगी तो लोग अलग तरीके से जानेंगे। अंदर के कीड़े बोलेंगे की तुम तो बदल गए हो, वैसे ही हम अपने आप में बदलाव लाएँगे तो पहले हम जहां पर थे वो लोग हमारे पैर खींचने की कोशिश करेंगे, हमसे इमोशनल बातें करेंगे, पर हमें अपने विचारों पर कायम रहना है। दूसरा यह भी हो सकता है, वो ऊपर वाले कीड़े को देखकर, तालाब में और कीड़े भी ऊपर जाने की कोशिश करेंगे। जब हम अपने आप को कुछ बना लेते हैं तब लोग हमसे प्रेरणा लेते हैं और बाकी के लोग भी ऊपर आने की कोशिश करते हैं। सही में यह फ्रलाइंग ड्रेगन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

अभी यह प्रश्न है कि, हमें सफलता पाने के लिए अपने आप में क्या बदलाव लाना चाहिए?—एक गांव ऐसा था कि वहां पर छोटे से गाँव में से कई लोग सफल हुए थे और वो गाँव इसलिए बहुत प्रचलित था। वहां पर एक बार कोई पत्रकार आया और वो यह गाँव पर रिसर्च करना चाहता था। पत्रकार ने गाँव में आकर गाँव के लोगों से पूछा कि, आप के गाँव में कितने महान लोग पैदा हुए हैं?— तब गाँव के बुजुर्गों ने बताया कि, हमारे गाँव में सब बच्चे ही पैदा होते हैं और महेनत करके, अपने कार्य से वो महान बनते हैं। इस बात से यह सीख जरूर मिलती है कि, कोई मनुष्य महान जन्म नहीं लेता, अपने कर्माे के द्वारा उसे महान बनना पड़ता है। हमें अपना कार्य करते हुए हर बात की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी, मतलब की जिम्मेवारी से काम करना पड़ेगा। हमारी जिन्दगी को हमें अपने तरीके से जीना है, पर जीते जीते हमें इस बात का ख्याल करना है कि, कभी भी किसी व्यक्ति या अपने अतीत या किसी घटना को दोषी नहीं मानना है। मेरी हर बात का जिम्मेदार मैं ही हूँ, अगर गलती है तो वो मेरी है और मुझे उसमें सुधार करना है। दूसरी बात यह है कि, हम जो हैं वही है। हमें अलग-अलग तरीकों से अपने आप को कोई और साबित करने की जरूरत नहीं है। हमें किसी की भी प्रतिलिपि (कॉपी) नहीं करना है, अपने विचार खुद करने हैं, अपनी चीजे खुद तैयार करनी है और किसी भी प्रतिस्पर्धी से कभी डरना नहीं है। और सबसे जरूरी कि हमें अपने कार्य के प्रति वफादार रहना है, मतलब की एथिक्स से साथ काम करना है, प्रामाणिकता और नैतिकता के साथ कभी भी समझौता नहीं करना है। दूसरा, हमें हमेशा खुश रहना है। चेहरे और मन से खुश व्यक्ति, अनेक लोगों को खुश कर सकता है और अपने काम में मन लगा सकता है। हमें कार्य करते हुए हमेशा यह सोचना है कि, आज मैंने कितने लोगों की मदद की, कितने लोगों का जीवन बदलने की कोशिश की, कितने लोगों के चेहरे पर खुशी लाने की कोशिश की। क्योंकि सब से बड़ा सुख दूसरों को कुछ देने में है, चाहे वो प्यार हो, पैसा हो या खुशी हो इन सब के साथ ही हमें अपने ऊपर भी काम करना है।

अपने ऊपर काम करना मतलब अपना स्वयं विकास करना। हमारा दिमाग उतना ही काम करता है, जितना हम उसको करने को बोलते हैं। हमें अपने दिमाग को हर बात के लिए कमांड देना, अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है, क्याेंकि हम काबिल होंगे तो ही हम अपने दिमाग को कमांड दे पाएंगे। जैसे शरीर को अच्छी तरह चलाने के लिए हमें खाना-पीना पड़ता है वैसे ही दिमाग का भोजन है, अच्छे विचार। हमें लगातार अच्छी पुस्तकों का अध्ययन, अच्छे चरित्रें का पठन करना पड़ेगा, जिससे हमारा दिमाग ज्यादा तेज बनता है। हमारी आदतों को सुधारना है, और किसी की टीका-टिप्पणी से मायूस नहीं होना है। सुबह में आठ-दस बजे उठकर या रात को दो बजे तक मोबाईल में लगे रहने से हम कामयाब कभी नहीं बन सकते। अच्छा और सात्विक आहार लेना है एवं शरीर के लिए जरूरी नींद भी लेनी है। कामयाब लोग कहते हैं कि सबेरे जल्दी उठने से और उठकर व्यायाम, योग-प्राणायाम करने से शरीर एवं दिमाग संतुलित रहता है। अत्यंत सुबह एक घंटा अध्ययन, दिन के तीन-चार घंटे के बराबर है। चलो फिर हम आज के विषय का संकलन करते हैं। एक तो सुबह में जल्दी उठना है, उठकर भगवान के प्रति आभार व्यक्त करना है और अपने आप को प्यार करना है। मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मनुष्य हूँ क्योंकि भगवान मेरे भीतर हैं, इस बात को दृढ़ करना है। अपने ऊपर काम करना है, मतलब अच्छे विचारों का आ“वान करना है। हमेशा खुश रहना है और दूसरों को खुश रखना है। सुबह में व्यायाम-योग आदि करना है और स्वस्थ खाना ग्रहण करना है। समय का पालन करना है और समय की कीमत पहचाननी है। कोई भी अगर यह सब ठान ले तो, सफलता दूर नहीं होगी, यह बात निश्चित है।

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