हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है और व्यक्तित्व के ऊपर से ही व्यक्ति की सही पहचान होती है। आज जमाना व्यक्तित्व का ही है। कोई भी व्यक्ति जब कोई साक्षात्कार (Interview) देने के लिए जाता है, तब उनके प्रवेश से लेकर बाहर जाने तक, उसके हर तरह के व्यक्तित्व को देखा जाता है, जैसे कि, उसकी अन्दर आने की प्रक्रिया, बैठने का ढंग, शारीरिक मुद्रा, उसके कपड़े पहनने का ढंग, उसके हर प्रश्न के उत्तर देने की प्रक्रिया —। सामान्यतः व्यक्तित्व दो प्रकार का होता है, बाह्य व्यक्तित्व और आंतरिक व्यक्तित्व। दोनों प्रकार के व्यक्तित्व का महत्व उतना ही है, जितना खाना खाने के बाद उसका पाचन होना जरूरी होता है। बाह्य व्यक्तित्व में जो चीजें महत्व की है, वो है एक तो शरीर का सही संतुलन, बॉडी लेंग्वेज (शरीर की प्रतिक्रिया) और कपड़े पहनने का ढंग। आंतरिक व्यक्तित्व में सबसे महत्व है, आत्मसम्मान (self respect)का, विषयों का ज्ञान और आत्मविश्वास (Self-confidence) का। व्यक्ति के भीतर जो गुण चाहिए, प्रामाणिकता, नैतिकता, हर काम करने की योग्यता एवं हर चीजों को देखने का नजरिया— यह सब बातें आत्म सम्मान के भीतर आती हैं। अगर यह सब बातें अपने भीतर है, तो हमारे व्यक्तित्व का हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं।
सबसे पहले हम देखते हैं शारीरिक संतुलन। शरीर का स्वस्थ होना क्यों जरूरी होता है?– हमारे वेद-उपनिषद ने भी कहा है कि, अगर शरीर स्वस्थ है तो मन स्वस्थ होता है, और अगर मन स्वस्थ है तो बुद्धि स्वस्थ होती है। इसलिए हमें मन और बुद्धि को स्वस्थ रखने के लिए भी शरीर स्वस्थ रखना पड़ेगा। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, और सोने-उठने की नियमित प्रक्रिया का होना जरूरी है। कपड़ें कितने भी अच्छे हों, मंहगे हाें, पर अगर शरीर संतुलित नहीं होता तो वो कपड़े बिलकुल जंचते नहीं। उसके बाद देखा जाता है, बॉडी लैंग्वेज मतलब शरीर की प्रतिक्रिया। जब भी हम किसी व्यक्ति के सामने होते हैं, तब हमारे शरीर की जो प्रतिक्रिया है, जैसे कि— हमारे हाथों का हिलना, पैरों में कम्पन, बोलने का ढंग— यह सब बातों का भी महत्त्व ज्यादा होता है। हमारे बॉडी लैंग्वेज से सामने वाले को पता चल जाता है कि, हमारे भीतर कितना आत्म विश्वास और आत्म सम्मान है। इसलिए हमें हमारे शरीर की बॉडी लैंग्वेज को उत्कृष्ट बनाना पड़ेगा। हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए और अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने के लिए, सीखने की प्रक्रिया अविरत करनी पड़ेगी। जीवन के हर मोड़ पर हमें नई नई चीजें सीखने को मिलती हैं। सीखने की कोई उम्र नहीं होती, हर उम्र में आदमी को सीखने की प्रक्रिया अविरत रखनी चाहिए। संसार की हर बात और समाज का हर व्यक्ति हमें कुछ न कुछ सिखा कर जाता है। सीखने के लिए कोई इंस्टीट्यूट या कॉलेज का होना जरूरी नहीं है, समाज का एक सामान्य आदमी भी हमें बहुत कुछ सिखा सकता है। कहते है कि, ठोकर खाकर मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है, यह बात बिलकुल सच है। हम जीवन में आगे बढ़ने के लिए जो कार्य करते हैं, उस कार्य में हमसे कोई न कोई गलती तो होती ही है, लेकिन हर गलती से हमें कुछ न कुछ सही रास्ता मिलता है।
दूसरा, सीखने की प्रक्रिया में पढ़ना भी आता है। जितना हो सके हमें अलग-अलग पात्रें और प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है। व्यक्तित्व विकास के लिए आंतिरक बाताें में एक बात बहुत जरूरी है, और वो है ‘सुनना’। हमें एक अच्छा सुनने वाला बनना है। कई बार हम बहुत आगे बढ़ने लगते हैं तब हमें लगता है कि हमें किसी को सुनने की जरूरत नहीं है, हम दूसरे लोगों पर ध्यान नहीं देते, यह बात सही नहीं है। विश्व के ख्यातिप्राप्त सफल लोगों में माइक्रोसॉफ्रट के फाउंडर बिल गेट्स का नाम आता है। बिल गेट्स ने अपनी सफल कहानी में लिखा है कि, उनकी जो तीन-चार मुख्य बातें हैं उनमें एक बात यह है कि वे सब को सुनते है और फिर ही अपना कोई निर्णय लेते हैं। उनके कहने के मुताबिक ऐसा भी हो सकता है कि कोई सामान्य आदमी को भी कोई बड़ा विचार आ जाए। जो व्यक्ति सब को सुनता है, वो हमेशा आगे बढ़ता है। मनुष्य जितना ऊपर जाता है, उतना ही उसे नम्र और विवेकी बनने की जरूरत होती है, और तरक्की करने के लिए यह गुण आवश्यक है। नम्रता और विवेक से कोई भी कठिन कार्य, मुश्किल नहीं रहता। किसी ने कहा है कि, तुम्हे जो चाहिए वो तुम किसी और को दो— अगर आप चाहते हैं कि लोग मेरी इज्जत करें तो पहले आप लोगों को इज्जत देना शुरू करो। उम्र ज्यादा होने से या पैसा ज्यादा होने से आदमी बड़ा नहीं हो जाता।
दूसरी बात यह है कि, नम्र और विवेकी होने के साथ ही हमें वास्तविक होना है, मै जो दिखता हूं, वही हूं— यह बात बहुत जरूरी है। दिखावा करने से हम आगे बढ़ नहीं सकते। उसके बाद हमें एक और बात का भी ख्याल रखना जरूरी है कि, हमारी गतिविधियों के भीतर हमें किसी को भी अपने दिमाग से तुरंत जज नहीं करना है। वो आदमी तो ऐसा ही है, यह सोच हमारी सफलता का अवरोध है। व्यक्तित्व विकास में एक और चीज का महत्त्व है, और वो है हमारी कम्युनिकेशन स्किल। क्या बोलना है और कब बोलना है, यह तय करना बहुत जरूरी है। दूसरा, अंग्रेजी बोलना कोई बड़ी बात नहीं है पर अगर हमें लोगों के साथ रहना है तो अंग्रेजी भाषा को सुदृढ़ बनाना भी जरूरी है, क्याेंकि समाज में आज इस भाषा का महत्त्व ज्यादा है। हमारा हर एक शब्द, हमारे व्यक्तित्व को प्रस्तावित करता है, इसलिए — फ्तोलमोल के बोलय्। हमें कोई भी बात किसी को अच्छा लगाने के लिए नहीं, लेकिन हमें अच्छा लगने के लिए बोलनी है। जैसे हमारा सोचना सकारात्मक होना जरूरी है वैसे ही हमारा बोलना (Affirmative) भी सकारात्मक होना चाहिए। व्यक्तित्व विकास के लिए उदेश्य और आशा, यह दोनों शब्द महत्वपूर्ण है। जीवन में एक लक्ष्य का होना जरूरी है और उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जो महेनत करनी पड़े वो महेनत भी जरूरी है। जितना ऊँचा लक्ष्य, उतनी बड़ी सफलता। एक लक्ष्य को निर्धारित करके फिर उसके ऊपर काम करना, यही एक सफल व्यक्ति की पहचान है।
दूसरी जो बात है, वो है आशा। कोई भी कार्य करते-करते हमें अपने सपनों को साकारित करने की इच्छा हमेशा होती है, वो इच्छा ही हमारी आशा है। फ्आशाय् का दूसरा शब्द है आत्म विश्वास। आशा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसके भीतर आत्म विश्वास हो कि मैं ये कर सकता हूँ, मैं ये बन सकता हूँ। दिमाग का विकास और सही दिशा में दिमाग का प्रयोग, यह बात भी आवश्यक है। जब हम एक साल से लेकर इक्कीस साल के होते हैं, तो उस बीच में हम कई तरह के माहौल में रहते हैं। शुरुआत में हमारा घर और घर की परम्परा, बाद में हमारा स्कूल और स्कूल का वातावरण, फिर बड़े होकर विश्वविद्यालय का माहौल और वहां से बाहर निकलते ही नौकरी-धंधे का माहौल। इन सब के बीच में अखबार, मैगजीन, टीवी-, यू-ट्यूब, मित्र— यह सब तो होता ही है। इस सभी वातावरण में हमारे दिमाग को अलग-अलग फीडिंग मिलती है। लेकिन हमें इन सब बातों को साइड में रखकर अपने दिमाग को अपने जरूरी रास्ते पर चलाना है, उनका सही दिशा में उपयोग करना है। व्यक्तित्व विकास में सबसे जरूरी बात है, हमारा चेहरा— हमारी हंसी (laughter)— हमारा अभिगम। प्रफुल्लित चेहरा, ये एक अच्छे व्यक्ति की निशानी है, दुख हो या सुख चेहरा तो हँसता हुआ ही चाहिए। अगर दुख में हम मुंह लटका के बैठ गए तो क्या कोई हमें मदद करने आने वाला है?— नहीं। तो फिर हम चेहरे को प्रफुल्लित ही क्यों न रखें, जो हमारी सफलता की एक सीढ़ी भी है। हमेशा खुश रहने से और चेहरे पर स्माइल बनाये रखने से दुनिया के आधे से ज्यादा दुःख दूर हो जाते हैं। दूसरी बात है हमारा अभिगम।
दूसरों के साथ का व्यहवार और हमारे खुद के साथ का व्यवहार। हमें समाज में हर अलग-अलग स्थानों पर हमारा व्यवहार भी अलग-अलग रखना पड़ेगा। जो व्यक्ति अपना व्यवहार (अभिगम) सुधार सकता है, वो हमेशा ही आगे बढ़ता है। तो हमें अगर हमारे व्यक्तित्व का विकास करना है, तो हमें अपने आप को बदलना पड़ेगा, अपने शरीर को स्वस्थ रखना पड़ेगा, अपनी आदतों को सुधारना होगा, हमारे दिमाग को स्वस्थ और सतेज करना पड़ेगा, हमारे अभिगम को बदलना पड़ेगा और चेहरे पर हमेशा हंसी लानी पड़ेगी, हमारे बॉडी लैंग्वेज को ठीक करना पड़ेगा, हमारे भीतर आत्म सम्मान और आत्म विश्वास का निर्माण करना पड़ेगा, हर किसी को सुनना पड़ेगा और हमेशा सीखने की भावना रखनी पड़ेगी, जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करके उसपर ही चलने का निश्चय करना पड़ेगा और हमारे मन और बुद्धि को स्थिर एवं संयमी रखना पड़ेगा। अगर हम यह सब बातों का ख्याल कर सकें तो, हम अपने व्यक्तिव का विकास कर सकते हैं। यदि हमें अपने जीवन में, अपने नौकरी-धंधे में सफल होना है, तो उसके लिए व्यक्तित्व विकास पर ध्यान देकर अपने जीवन को सार्थक करना जरूरी है।