वामन अवतार (पांचवा अवतार)

हम अभी भगवान विष्णु के दशावतारों के बारे में बात कर रहे हैं। हमारी वैदिक संस्कृति कहती है समाज के 70 प्रतिशत लोक फोलोअर्स होते है। यानि जिस दिशा में सब जाते है, उसी दिशा या प्रवाह में जाने वाले या ढलने वाले लोग होते है। केवल बाकि के बचे 30 प्रतिशत लोगो में से 15 प्रतिशत सात्विक और 15 प्रतिशत राक्षसी विचार धारा के लोग होते हैं। समाज में जिन लोगो का वर्चस्व बढ़ता है, यानि अगर समाज में सात्विक लोगो का बढेगा तो 70 +15 = 85 प्रतिशत समाज सात्विक बनेगा  मतलब सतयुग आएगा और अगर राक्षसी लोगो का वर्चस्व बढ़ा तो 70 +15 = 85 प्रतिशत समाज में आसुरी वृतियों का दबदबा बढ़ जायेगा और समाज में चारो तरफ अराजकता बन जाएगी। लोग स्वार्थी वृति, भोगी और लंपटता जैसी बीमारियां समाज में फैल जाती है। और ऐसे हालात निर्माण होने से वह अराजकता और आसुरी वृत्ति का दमन करने भगवान स्वयं अवतार लेके उस आसुरि वृति को खत्म करते है।

इसी श्रृंखला में भगवान विष्णु का पांचवा अवतार यानि वामन अवतार। वामन यानि बौना या छोटे कद वाला। भगवान ने ऋषि कश्यप और अदिति के गर्भ से यह वामन अवतार धारण किया जहा सभी ऋषि गण और देवताओं ने मिलके उन्हें आयुध और शास्त्रें से आभूषित कर बलि का सामना करने योग्य बनाया। भगवान ने इस रुप में अवतार लेकर साबित कर दिया की, कोई भी काम करने के लिए इंसान का कद, उसकी सफलता में कोई बाधा नहीं बन सकता।

कहानी हम सब को पता है। बलि राजा के सोवे राजसूय यज्ञ को पूरा न होने देने हेतु, यज्ञ में पहुच कर वामन अवतार में भगवान ने उनसे तीन भूमि की दक्षिणा मांगी। अगर यह यज्ञ पूरा हो जाता तो इंद्र को उसका सिंहासन जाने का डर सताता था। 99 सफल राजसूय यज्ञ के कारण, अहंकार से भरे बलि ने, वामन का कद देखके,  अपने गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी उसे वह वरदान मांगने को हामी भर दी। और वामन ने अपना पहला कदम इतना बड़ा कर दिया की एक ही कदम में पृथ्वी दुसरे कदम में आकाश भर लिया। फिर बलि से तीसरे कदम के लिए पूछा तो अपने वचनबद्धता के अनुसार उसने अपना सर आगे घर दिया। और उसकी वचनबद्धता को देख भगवान प्रसन्न हुए और उसे पाताल में भेज दिया। जहा द्वार पाल बनकर खुद रहे।

अगर इस कहानी का मर्म समझे तो, बलि की अगर कुल परंपरा देखे तो, राक्षस  हिरण्य कश्यपू का पुत्र  प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त निकला। किंतु प्रहलाद का पुत्र विरोचन उससे विपरीत था। विरोचन का पुत्र बलि अपने परदादा ओकी गलतियों का अभ्यास कर उससे पाठ ले के, उसने समाज में फिर से कोई नरसिंह पैदा न हो इस  कारण उसने समाज में अपनी छबी धार्मिक और दयालु बनाई। राजसत्ता हाथ में आते ही उसने धर्म के चारो पैर में से तीन पैर तोड़ने का काम किया। राज्य में जो बुद्धिमान ब्राह्मण सत्ता थी उसे बड़ी बड़ी दक्षिणा देके उसको यज्ञ कार्य में लगा दिया। मेरा ब्रेड बटर चलता है तो में किसी दूसरी चीजों में चंचुपात नहीं करता। अच्छा भोजन, काम, और बड़ी दक्षिणा पा कर ब्राह्मण वर्ग को बुद्धि से उसने राज्य के काम से दूर कर दिया। शिक्षा भी वैश्यों के हाथ में देदी। उससे शिक्षा का भी व्यापार बन गया। रक्षण करने वाले क्षत्रियों को भी युद्ध न होने के कारण उनके कर्तव्य कार्य  से दूर कर दिया। और वाद विवाद में लगा दिया। इस तरह पूरी समाज व्यवस्था यानि हमारी चातुरवर्ण व्यवस्था को उलट पुलट कर दिया। और दस साल में तो पूरा नक्शा ही बदल दिया।

जैसे आज के जमाने में हमें जो इतिहास पढ़ाया जाता है, जो हमारी संस्कृति से हमें दूर ले जाने का काम करता है। वैसा ही उस जमाने में भी हुआ। चातुर वर्ण व्यवस्था को फिर से खड़ी कर के बलि के चहेरे से अच्छाई का नकाबपोश हटाने के हेतु से वामन अवतार आया। वामन ब्राह्मण के पुत्र तो थे ही साथ में कश्यप जैसे ऋषि के। असाधारण बुद्धिमान और कर्तव्य निष्ठा के कारण समाज में धीरे धीरे उन्होंने अपना काम ऐसा फैलाया की बलि के हाथ से तीनों लोक चले गए। सभी जगह वामन की गाथाएँ सुनाई देने लगी थी। यह विराट कार्य वामन अवतार में हुआ। किंतु बलि प्रहलाद का पौत्र था। समाज में बहोत धार्मिक कार्य करवाता था। इस कारण उसे पाताल लोक में भगवान ने भेजा और उसके द्वारपाल वे खुद बने। यानि राजनैतिक नजर कैद उसे दी। लेकिन उसने दुसरे राक्षसों की तरह दुसरे अनैतिक काम नहीं किए थे इस कारण उसे पाताल लोक भेजने वाले दिन को बलि प्रतिपदा कहते है। यानि दीवाली का दूसरा दिन यानि गोवर्धन पूजा वाला दिन। उसके एक दिन पहले दीवाली यानि लक्ष्मी पूजा। उसके एक दिन पहले नरक चतुर्दशी। यानि श्री कृष्ण ने नरका सुर के राज कैद से छुड़ाई 14 हजार राज कन्याए बलि प्रतिपदा के दुसरे दिन भाई दूज यानि समाज में स्त्री की तरफ देखने का नजरिया बदलने का दिन। अपनी बहन की तरह हर स्त्री की तरफ उसी दृष्टी से देखने का नजरिया रखना। यही सिख हमारे ऋषियों ने दी है। इस तरह दीवाली का त्योहार चार दिन का हो गया।

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