वराह अवतार (तृतीय अवतार)

उत्क्रांति तत्व के अनुसार सर्व प्रथम जलचर प्राणियों का निर्माण हुआ। यानि उसमे श्रेष्ठ ऐसा मत्स्य अवतार। जल-स्थल प्राणी उत्पन्न हुए। उसमे श्रेष्ठ ऐसा कुर्मा अवतार। ठोस या शुष्क भूमि पर रहने वाले, प्राणियो की उत्पत्ति हुई। इस तरह उत्क्रांतिवाद के सिद्धांत के अनुसार सार्वभौम ऐसी सुपर शक्ति के बल से और कर्तुत्व से पृथ्वी जल से ऊपर आई। यानि भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेके पृथ्वी को जल में डूबने से बचाकर समुंद्र की सपाटी पर लाकर रख दिया।

भौगोलिक दृष्टि से देख जाए तो हमारे शास्त्रों की दृष्टि से लेम्युरीया द्वीप में ही सबसे ज्यादा स्तन प्राणियों की उत्पत्ति यहां ही हुई है। उन सभी प्राणियो में वराह अवतार लेके भगवान ने अपने दातों से इस पृथ्वी को बचाकर समुंद्र से ऊपर ले आए। उत्क्रांति वाद के नियमों के अनुसार विकसित उत्क्रांति के अनुसार जल-जलचर-स्थल और स्थल वासी यानि वराह अवतार हुआ।

इसकी पौराणिक कथा हमें पता ही है कश्यप पत्नी दिति की काम वासनाओं के फल स्वरूप उनके यहां दो पुत्र जन्में। हिरण्याक्ष और हिरण्य कश्यपू। दोनों राक्षस कुल में जन्मे थे। दिति को राक्षसों की माता माना जाता है। राक्षस यानि केवल अपना ही सोचनेवाले। और जिसकी आँखें में केवल सोना ही दिखता है वह हिरन्याश। केवल स्वार्थी विचार धारा के चलते मनुष्य राक्षस बन जाता है। वैसे उन्हीं के कुल में प्रहलाद जैसा भक्त भी जन्मा था। यह तो उसके कर्मों और उसकी सोच पर निर्भर करता है की वो क्या बनेगा। हिरन्याक्ष के उत्पात से सारी पृथ्वी और देव सभी त्राहिमाम हो गए थे। और यह धरा इतनी रसहीन हो गई थी की वह धीरे धीरे समुद्र में डूबने लगी थी। इस डूबती धरा को बचाने भगवान ने वराह अवतार धारण कर अपने दातों पर पृथ्वी को बचाकर समुद्र की तह से उसकी सपाटी पर ले आए।

भगवानने गीता में भी कहा है,

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थाप्नार्थय संभवामि युगे युगे।। (गीता 4 /8)

और इस वचन के अनुसार भगवान जब जब धरा पर सात्विक लोकों पर जब जब मुश्किलों के बादल मंडराते है तब तब भगवान सहायातार्थ जन्म लेते है। और यह बात तैतेरेय संहिता के अनुसार सिद्ध और साबित हो चुकी है। भगवान ने इसी कारण वराह अवतार लेके हिरण्याक्ष का वध किया।

हिरन्याश यानि जिसकी आँख में केवल सोना ही है। जिसे चारों और केवल भोगवाद ही दिखता है। जो अपने बल के बलबूते पर हर चीज हासिल कर उसका केवल उपभोग करना ही जानता है। जिसमें दूसरो के लिए उसके मन में कोई दया या करुणा भाव नहीं है।

वेदव्यासजी के सिद्धांत के अनुसार राजा ही समाज का नेतृत्व करने वाला होता है। ना की समाज नेता बनता है। यही सनातन सत्य है। जैसा राजा वैसी प्रजा यही कहावत सच्ची है। यही भारतीय संस्कृति भी कहती है, और भारत का इतिहास इस बात का गवाह है। सामर्थ्यवान राजा ही कुशल नेता और उत्कृष्ट समाज निर्माण कर सकता है। समाज में यही चलता आ रहा है धनवान और बुद्धिवान लोग राज सत्ता के अनुकूल ही बनते गए है।

इसी कारण उस वत्तफ़ समाज में जड़वादी मान्यताओं का जाल फैल गया था। उस जाल को तोड़ के फिर से शाश्वत जीवन निर्वाह नहीं हो पता तब तक संस्कृति शाश्वत नहीं रह पाती। क्योंकि जब तक पेट खाली हो तबतक कोई बात नहीं सुजती। शायद इसीलिए मराठी में कहावत है आदि पोटोबा नंतर विठोबा। यानि पहले पेट पूजा बाद में भगवान। वराह अवतार में भगवान ने लोगो को मांसाहार से खेती की तरफ बढ़ा के लोगू के जीवन में एक कर्म योग शुरू करवाया।

अगर आज के भौगोलिक तथ्यों से देखा जाए तो राजस्थान के जैसलमेर के ऐतिहासिक ग्रंथ में बाबर के डायरी के अनुसार सिंध और बलूचिस्तान में वराह नामक धर्म निष्ठ और स्वाभिमानी राजपूत लोगो की जाती रही है। यानि भगवान ने वराह अवतार यानि क्षत्रिय कुल में अवतार लेके पृथ्वी को बचाया था।

 

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