युवा: संस्कार और समृद्धि का आधारस्तंभ

युवा शब्द सुनते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में एक 20 -22 साल के युवक की छवि सामने आती है। लेकिन सही मायने में युवा देश की देश की वो महत्वपूर्ण पूंजी है, जो देश को बदलने की ताकत रखता है।

किसी ने लिखा है , “न रोक सकोगे, न रुकेंगे हम, भारत का गौरव और शान है हम, उम्मीदों की किरणों जैसा प्रकाश है हम, जंजीरों से भी सख्त है हम” । अब इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद हर किसी के मन में यह सवाल आएगा कि युवा कौन है ? यह प्रश्न बहुत ही कठिन है । क्या 15 से 40 साल की उम्र जिसकी है, वो युवा है ? क्या शादी करके घर चलाता है, वो युवा है ? क्या बात- बात पर अपना आवेश खोने वाला युवा है ? क्या जिसके भीतर सहनशक्ति ही नहीं है, वो युवा है ? जी नहीं ! युवा उम्र से नहीं लेकिन वृति से होता है । जिसकी वृति युवा है, वही सच्चा युवा है । हमारे देश में स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के बारे में बहुत कुछ कहा है, वो हमेशा युवाओं के बारे में चिंतित रहते थे । “उठो, जागो और ध्येय प्राप्त न हो तब तक लगे रहो”, यह स्वामी विवेकानंद जी ने ही कहा है ।

देश, समाज और संकृति का आधार युवा है । युवा, जो चाहे कर सकता है, जिसको चाहे बदल सकता है । लेकिन प्रश्न यह है कि, आज का युवा चाहता क्या है ? पश्चिमी संस्कृति का अंधा अनुकरण !.. दिन-रात मोबाइल के भीतर रहने का जूनून !.. सिगरेट, गुटखा और दारू का साथ !.. दंगे-फसाद और किसी का साधन बनने का जुस्सा !…

हमारे शास्त्रों ने कहा है कि, युवा वो है जिसमें आकाश को भी बंधन में करने की ताकत है, हिमालय को भी हराने का जूनून है, नदियों का भी रास्ते बदलने पर मजबूत करने का इरादा रखता है, जो शास्त्र और शस्त्र दोनों को बराबर मानता है, और धर्म का उल्लंघन कभी नहीं करता । हमारे देश में नचिकेता और नभग जैसे वीर युवा पैदा हुए, स्वामी विवेकानंद, बाजीराव पेशवा, शिवाजी महाराज, राणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह जैसे वीर पैदा हुए, जिन्होंने यह साबित कर दिया कि युवा आखिर कैसा होना चाहिए । आजकल अंग्रेजी किताबें पढ़ने का एक माहौल हो गया है, हमारी युवा पीढ़ी अमेरिका और जर्मनी के लोगों को पढ़ते रहते हैं ।

ऐसे समय पर हमें यह विचार जरुर आता है कि, क्या हमारे देश में पढ़ने लायक कोई पात्र है ही नहीं ? क्या आत्मज्ञान, समझ , अच्छे विचार, लेने के लिए भारत देश में कोई साहित्य है ही नहीं ?…. यह बात करना एक गुनाह है, क्योकि हमारे देश के साहित्य और वेद-उपनिषद के आधार पर तो आधी दुनिया चलती है । उन्हीं से विचार लेकर अंग्रेजी में बदल कर हमारे सामने पेश किया जाता है, और हमें वह विचार बहुत अच्छा लगता है । आज हमारी किसी यूनिवर्सिटी में संकृत भाषा का ज्ञान दिया नहीं जाता, लेकिन कनाडा और जर्मनी की कई यूनिवर्सिटी में संस्कृत भाषा को बड़ा महत्त्व दिया जाता है । इसका कारण यह है कि, हमारी संस्कृत भाषा में ही हमारे सारे ग्रन्थ है, जिसमें मानव जीवन को जीने के लिए हर तरह के उपाय दिए गए हैं , हर समस्या का समाधान है ।

आइये जानते हैं हमारे शास्त्रों ने युवा के बारे में क्या कहा है ? “तैतरीय उपनिषद”, जो हमारे शास्त्रों का एक मान्य ग्रन्थ है, उसमें अध्याय-2 में 8 वें श्लोक में, युवा के बारे में लिखा है कि….

युवा स्यात्साधु: युवाध्यायक: आशिष्ठो द्र्धिश्ठो बलिष्ठ:

इस श्लोक में स्पष्ट रूप से युवा की व्याख्या की गई है, इसलिए भारतीय संस्कृति की दृष्टि से युवा ऐसा ही होना चाहिए । इस श्लोक का विवरण इस प्रकार है।

“युवा स्यात्साधु:”, का मतलब है युवा साधु वृति का होना चाहिए । साधु वृति मतलब क्या ? क्या इसमें भगवे कपड़ें और दाढ़ी वाले साधु की बात की गई है ? …. नहीं ! यहां पर साधु वृति का मतलब है, सरल वृति । युवा हमेशा सरल वृति का होना चाहिए । मन में दंभ नहीं, किसी के प्रति इर्ष्या नहीं, द्वेष भाव नहीं, क्रोध नहीं और लोभ नहीं, यह सरल वृति का मतलब होता है । भगवद गीता में भी कहा गया है कि, क्रोध-लोभ-मोह-मत्सर, मनुष्य को अधोगति की तरफ ले जाता है । हमने रामायण में भगवान राम का चारित्र्य देखा है, अगर हम इसे पढ़े और समझे तो हमें महसूस होगा कि सरल वृति किसको कहते हैं । श्री राम का जीवन, सरलता से भरा हुआ था । नम्रता, प्रेम और विवेक की मूर्ति थे, श्री राम । और यही सरलता हर युवा में होना जरुरी है|

श्लोक का दूसरा शब्द है, “युवाध्यायक:”, इसका मतलब है युवा अध्ययनशील होना चाहिए । हमारे पढ़ते हुए युवा को तो तुरंत ही लगेगा कि मैं अध्ययनशील ही हूं, दिन में 6-8 घंटा मेरे स्कूल-कॉलेज की किताबें पढ़ता हूं । यहां पर सिर्फ अभ्यास की बात नहीं है, अभ्यास करते हुए हमें हमारी किताबे पढ़ना , यह तो एक सामान्य प्रक्रिया है और अगर हम नहीं पढेंगे तो, फेल हो जायेंगे । यहां पर अध्ययनशील का मतलब है, वेद-उपनिषद, गीता, हमारे वैश्विक धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन, हमारी संस्कृति में जिन्होंने महान और शौर्य वाले कार्य किये हैं, जैसे शिवाजी, राणा प्रताप, राणी लक्ष्मीबाई, नचिकेता, नभग, प्रह्लाद, ध्रुव, स्वामी विवेकानंद… ऐसे चरित्रों का अध्ययन । सिर्फ स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तो हमें शायद दो वक्त की रोटी प्रदान कर सकती है, पर जीवन उत्कृष्ट तरीके जीने के लिए, जीवन को प्रफुल्लित और आनंदित बनाने के लिए, जीवन में उत्साह और धैर्य हासिल करने के लिए, और सही में संस्कार क्या होता है, वो समझने के लिए, हमें ऐसे पुस्तकों –ग्रंथो का अध्ययन करना पड़ेगा । और यह अध्ययन मनुष्य के जीवन में मरते दम तक जरुरी है |

श्लोक का तीसरा शब्द है, “आशिष्ठो”….. इसका मतलब है युवा को आशावान होना चाहिए । आज हम देखते हैं कि , हमारी युवा पीढ़ी, कदम- कदम पर अपनी आशा को छोड़ देती है । खुद के ऊपर विश्वास ही नहीं है । इसलिए तो हमें परीक्षा के वक्त पर हनुमान जी के मंदिर में लाइनें दिखती है । खुद पर विश्वास करके, एक आशा के साथ जीवन जीने के बदले लोग भगवान और मान्यताओं पर आधार रखना शुरू कर देते हैं । हमने इतिहास पढ़ा ही है, और उसमें कोलंबस के बारे में भी पढ़ा हैं । सालों तक हिंदुस्तान को ढूंढता हुआ कोलंबस, एक दिन आखिर में हमारे देश पहुंच ही गया । भक्त प्रह्लाद के बारे में भी हमने पढ़ा ही है । प्रह्लाद को हमेशा एक आशा थी कि, कुछ भी हो जाये, वो अपने पिता और उसके राज्य को आसुरी कार्यो से वापिस जरुर लाएगा, और उसने ऐसा कर दिखाया । युवा का जीवन आशाओं से भरा होना चाहिए । यहां पर आशा का मतलब शेख्चल्ली के विचार बिलकुल नहीं है ।

आशा का मतलब है, खुद पर विश्वास, अपने कार्य पर विश्वास और भगवान पर विश्वास । स्वामी विवेकानंद ने एक आशा रखी थी, कि हमारी भगवद गीता, सारे विश्व का मार्गदर्शन करने वाली है । उन्होंने अपना प्रमाणिक प्रयत्न किया, शायद उस समय में किसी ने भगवद गीता के विचारों पर गौर नहीं किया, पर आज सालों के बाद विश्व में भगवद गीता का महत्व अद्भुत है । हमारी युवा पीढ़ी को ऐसे आशावान होने की जरुरत है |

श्लोक का चौथा शब्द है, “द्रधिश्ठो”…. मतलब की दृढ निश्चयी । युवा अपने जीवन में दृढ निश्चय वाला होना जरुरी है । एक बार मन में निश्चय किया कि, यह कार्य करना है, तो जब तक वो कार्य पूर्ण नहीं हो जाता, उसको नींद नहीं आनी चाहिए । सफलता तभी मिलती है, जब कार्य करते हुए मन में दृढ निश्चय हो । हमारे इतिहास में कहा गया है कि, युवा में आकाश को बांधने की और हिमालय को चूर्ण करने की ताकत है । एक बार सोच ले कि, मुझे यह कार्य सिद्ध करना है, तो फिर दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं पाती । हमने एडमन हिलेरी का नाम तो सुना ही है, जिन्होंने हिमालय के एवरेस्ट शिखर का पहली बार सैर किया था । उन्होंने तय कर लिया था कि, मुझे यह शिखर तक जाना ही है, चाहे कुछ भी हो जाये ।

हिलेरी ने एवरेस्ट चढ़ना शुरू किया तो, पहली बार वो एवरेस्ट तक नहीं पहुंच पाए और एवरेस्ट से नीचे की चोटी तक ही पहुंचे , लेकिन फिर भी वो वहां तक पहुंचने वाले दुनिया के पहले इंसान थे । इसलिए जब वो नीचे आए, उनका सम्मान किया गया, एक बड़ा सामारोह रखा गया और उसमें विश्व के कई लोग आए । सब ने अपना-अपना वक्तव्य दिया और सबसे अंत में हिलेरी को कुछ बोलने के लिए कहा गया । हिलेरी खड़े हुए, उन्होंने स्टेज पर पीछे लगा हिमालय और एवरेस्ट का बेक-ड्राप देखा, उसके सामने ऊँगली रख कर सिर्फ एक ही वाक्य बोले…..

“Himalaya, today you have defeated me, but a day will come, । will defeat you.”

मतलब , हिमालय… आज तुमने मुझे हराया है, पर एक दिन जरुर आएगा जब मै तुम्हे हराऊंगा । कोई दंभ नहीं, कोई गुमान नहीं… बस एक ही निश्चय था कि, मुझे एवरेस्ट पर जाना है । फिर उन्होंने दूसरी बार चढ़ना चालू किया और एक दिन ऐसा आया कि, एडमन हिलेरी, विश्व के पहले इन्सान बने जिसने हिमालय के एवेरेस्ट कि सैर कि । यह है दृढ निश्चय का बेहतरीन उदहारण । हमारी युवा पीढ़ी को ऐसे पात्रों से सीख लेकर, अपने जीवन में दृढ निश्चय का आह्वान करना है ।

श्लोक का पांचवा और अंतिम शब्द है, “बलिष्ठ:”….. यानी बलवान । युवा में बलवान होना अति आवश्यक है, उसके लिए शरीर का पुष्ट होना जरुरी है । हमारे शास्त्रों में लिखा है , “शरीर स्वस्थ तो मन स्वस्थ और मन स्वस्थ तो बुद्धि स्वस्थ”। हमारी बुद्धि को स्वस्थ और तेजस्वी बनाने के लिए भी शरीर का स्वस्थ होना जरुरी है । हमारे इतिहास में हम भीम और हनुमान के किस्से बहुत सुनते हैं, लेकिन हम उसको एक कहानी मानकर नजर-अंदाज कर देते हैं । हर युवा में ऐसी ही शक्ति चाहिए और हर युवा ऐसी शक्ति प्राप्त कर सकता है । बलवान का मतलब, किसी के साथ मार-पिट करना बिलकुल नहीं है, पर जरुरत पड़ने पर हम अपनी, अपने समाज की और अपने देश की रक्षा कर सकें इतना बल और ताकत तो होना ही चाहिए ।

तो, यह है युवा की व्याख्या…. विश्व का हर युवा ऐसा ही होना चाहिए, यह देश और संस्कृति की मांग है । इसलिए हर युवा यह निश्चय करें कि मैं कोशिश जरुर करूंगा कि, इस श्लोक में कहे गए शब्दों का पालन, अपने जीवन में करूं । युवा शरीर नहीं लेकिन युवा वृति चाहिए । हमारे देश में अगर हम इतिहास को खंगाले तो, असंख्य पात्र हमें ऐसे मिल जायेंगे, जो ऐसे ही युवा वृति वाले होंगे । हमें इन पात्रों का अध्ययन करना है, और उनके जीवन से हमारे जीवन को समृद्ध बनाने का प्रमाणिक प्रयत्न करना है ।

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