भारतीय उद्योगपति रतन टाटा का नाम दुनिया के उन बड़े उद्योगपतियों में से एक है, जिन्होंने देश की उन्नति एवं विकास में अपना अहम योगदान दिया हैं। वह एक उद्योगपति के साथ -साथ निवेशक और टाटा संस के रिटायर्ड अध्यक्ष हैं।
23 दिसंबर, 1937 को एक व्यपारी परिवार में जन्मे रत्न टाटा का पूरा नाम रत्न नवल टाटा है। रत्न टाटा के पिता का नाम नवल टाटा और मां का नाम सोनू टाटा है। लेकिन साल 1948 में जब रत्न छोटे थे,तभी उनके माता -पिता अलग हो गए थे। जिसके बाद रत्न टाटा और उनके छोटे भाई जिमी का पालन -पोषण उनकी दादी एवं टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा की पत्नी नवजबाई टाटा ने की।
रतन टाटा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के ही कैंपियन स्कूल में रहकर पूरी की। लेकिन आठवीं क्लास में उन्होंने मुंबई के ही कैथेड्रल और जॉन स्कूल में दाखिला ले लिया और पढ़ाई पूरी की । इसके बाद रतन टाटा आगे की पढ़ाई के लिए यूएसए चले गए जहां उन्होंने साल 1959 में न्यूयॉर्क के इथाका के कॉर्निल यूनिवर्सिटी से स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के साथ वास्तुकला में अपनी बीएस की डिग्री हासिल की और फिर वे अमेरिका के हार्वर्ड बिजनेस स्कूलसे 1975 में एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम का कोर्स पूरा किया। इसी दौरान साल 1961 में रतन टाटा अपने पारिवारिक बिजनेस टाटा ग्रुप से जुड़े और अपने करियर की शुरुआत की। शुरुआती दिनों में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर कार्य किया। इसके बाद वे टाटा ग्रुप के अन्य कंपनियों के साथ भी जुड़े।
साल 1970में उन्हें राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी (नेल्को) में प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया। उस समय इस कंपनी की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। लेकिन रतन टाटा ने अपनी काबिलियत के दम पर दो साल के अंदर ही नेल्को कंपनी को न सिर्फ नुकसान से उबारा बल्कि 20 फीसदी तक हिस्सेदारी भी बढ़ाई। लेकिन साल 1977 में टाटा को यूनियन की हड़ताल का सामना करना पड़ा, जिसके कारण कंपनी को काफी नुकसान हुआ और कंपनी बंद करनी पड़ी।
साल 1981 में, रतन टाटा इंडस्ट्रीज और समूह की अन्य होल्डिंग कंपनियों के अध्यक्ष बनाए गए। उस समय कम्पनी के बहुत से लोगों ने उन्हें कम अनुभवी बता कर उनका विरोध भी किया, लेकिन रतन टाटा की मेहनत और काबिलियत को देखते हुए जल्द ही सबका मुंह बंद हो गया। साल 1991 में जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा ने ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया और रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी बनाया। रतन टाटा ने इस जिम्मेदारी को बहुत निष्ठा, कड़ी मेहनत और ईमानदारी से संभाला और इसे उचाईयों पर पहुंचाया। रतन के मार्गदर्शन में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने पब्लिक इशू जारी किया और टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया।
1998 का साल रतन टाटा की जिंदगी का महत्वपूर्ण साल रहा इस साल रतन टाटा ने अपनी ड्रीम प्रोजेक्ट और पहली पूर्णतः भारतीय यात्री कार टाटा इंडिका को बाजार में उतारा। लेकिन इस कार को बाजार से उतना अच्छा रेस्पोंस नहीं मिल पाया, जितना रतन टाटा ने सोचा था। इस वजह से टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी, जिसके कारण कंपनी से जुड़े लोगों ने रतन टाटा को इसे बेचने का सुझाव दिया और न चाहते हुए भी रतन टाटा को इस फैसले को स्वीकार करना पड़ा। इसके बाद वो अपनी कंपनी बेचने के लिए अमेरिका की कंपनी फोर्ड के पास गए।रतन टाटा और फोर्ड कंपनी के मालिक बिल फोर्ड की बैठक कई घंटों तक चली। इस दौरान बिल फोर्ड ने रतन टाटा के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया और कहा कि जिस व्यापार के बारे में आपको जानकारी नहीं है उसमें इतना पैसा क्यों लगा दिया। ये कंपनी खरीदकर हम आप पर एहसान कर रहे हैं। बिल फोर्ड के इस वाक्य ने रतन टाटा को अंदर तक झकझोर कर रख दिया।
इसके बाद रतन ने ये डील कैंसिल कर दी और तय किया कि वह इस कम्पनी नहीं बेचेंगे। इसके बाद वह दिन रात कम्पनी को उचाईयों पर पहुंचाने में लग गए। धीरे-धीरे कम्पनी घाटे से उबर कर मुनाफा कमाने लगी। टाटा समूह के अंदर 110 कंपनी आती हैं जिसमे टाटा चाय से लेकर हवाई जहाज तक बिकते है। टाटा रतन ने अपनी कड़ी मेहनत, शालीनता और धैर्य से इन सब को बखूबी संभाला और सफलता की उचाईयों पर पहुंचाया।वहीं फोर्ड घाटे के कारण दिवालिया होने की कगार पर आ गई। इसके बाद रतन टाटा ने फोर्ड की लेंड रोवर और जगुआर खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिनके कारण ही फोर्ड घाटे में गई थी। इस डील को फाइनल करने के लिए विल फोर्ड अपने शेयरहोल्डर्स के साथ डील फाइनल करने भारत आए , तब उन्होंने रतन टाटा से कहा था, “आप हमारी कंपनी खरीद कर हम पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं। यह डील बिल फोर्ड के मुंह पर किसी तमाचे से कम नहीं थी।
इसके बाद 26 मार्च, 2008 को टाटा मोटर्स ने ‘जैगुआर लैंड रोवर‘ और टाटा स्टील ने ‘कोरस ग्रुप‘ का सफलतापूर्वक अधिग्रहण किया, जिससे टाटा समूह की साख भारतीय उद्योग जगत में बहुत बढ़ी। इसके साथ ही रतन टाटा भी व्यापारिक जगत में एक प्रतिष्ठित शख्सियत बन गए। रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक संस्थान बन गया। यही नहीं, दुनिया की सबसे सस्ती यात्री कार – टाटा नैनो भी रतन टाटा के ही सोच का ही परिणाम है। इसमें कोई शक नहीं कि रतन टाटा ने अपनी कड़ी मेहनत से भारतीय उद्योग को सफलता की उचाईयों पर पहुंचाने के साथ-साथ पूरी दुनिया में इसकी छाप भी छोड़ी।
रतन टाटा 28 दिसंबर 2012 को वे टाटा समूह के सभी कार्यकारी जिम्मेदारी से सेवानिवृत्त हो गए है।इसके बाद साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। रतन टाटा सेवानिवृत होने के बाद भी उद्योग जगत में सक्रीय है। उन्होंने हाल ही में भारत के इ-कॉमर्स कंपनी स्नैपडील में अपना व्यक्तिगत निवेश किया है। इसके साथ ही वे टाटा ग्रुप के चैरिटेबल संस्थानों के अध्यक्ष हैं। रतन टाटा ने अपना पूरा जीवन भारतीय उद्योग को बढ़ावा देने में गुजार दिया। वह एक उद्योगपति के साथ ही एक सामाजिक और नेक दिल इंसान के रूप में भी जाने जाते है।
उन्होंने समय समय पर जरूरतमंदों एवं देश में आई आपदाओं के समय देश की काफी मदद भी की है,जिसके लिए दुनियाभर में उनकी सराहना भी की जाती है। रतन टाटा भारतीय एड्स कार्यक्रम समिति के सक्रीय कार्यकर्ता हैं। वह भारत में इसे रोकने की हर संभव कोशिश करते रहे हैं। रतन टाटा प्रधानमंत्री व्यापार और उद्योग समिति के सदस्य होने के साथ ही एशिया के रैंड निगम के सलाहकार समिति में भी शामिल है। इसके अलावा रतन टाटा मित्सुबिशी को–ऑपरेशन की अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समिति के भी सदस्य है और वे अमेरिकन अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप जे.पी. मॉर्गन चेस एंड बुज़ एलन हमिल्टो में भी शामिल है। रतन टाटा की निजी जिंदगी की बात करे तो वह अब तक अविवाहित है, उन्होंने शादी नहीं की है। रतन टाटा ने देश को अपना जो योगदान दिया है इसके लिए हर भारतीय को उनपर गर्व है। रतन टाटा की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आये लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। रतन टाटा को देश में उनके दिए गए योगदानों के लिए भारत सरकार की तरफ से साल 2000 में पदम् भूषण और साल 2008 में पदम् विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साल 2007 में रतन टाटा को टाटा परिवार के देश की प्रगति में योगदान हेतु परोपकार का कार्नेगी मैडल से सम्मानित किया गया साल 2010 में रतन टाटा को सबसे बड़े बिजनेस एशिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा भी रतन टाटा को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।दुनिया के सबसे प्रसिद्द एवं प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक रतन टाटा ने जीवन में हमेशा आगे बढ़ाना सीखा और अपनी कड़ी मेहनत से चुनौतियों को अवसर में बदला। रतन टाटा का जीवन हर किसी के लिए अनुकरणीय है। ऐसा सुना है की कभी उसके सही निर्णयों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया था की, मै सही निर्णय नहीं लेता, पहेले निराने लेता हु और बाद में उसको सही बनाता हूँ I
देश के ऐसे महान व्यक्तित्व को दिल से सलाम ….. !