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मैंने जिस देश का नमक खाया है, मै उसके लिए ही खेलूँगा : मेजर ध्यानचंद

29 ऑगस्ट का दिन, यानी भारत के लिए राष्ट्रिय खेल दिन I  वैसे तो हमारे देश में टेलेंट की कोई कमी नहीं है | आजसे पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्णने उनके बाल गोपाल मलेसियो के बच्चो को गिल्ली डंडा जैसे खेल से अवगत कराया था | साथ में सब की खेल के प्रति रूचि भी बधाई  थी | खेल इंसान को जीवन में छोड़ने और पकड़ने की प्रक्रिया समजाती है | मान लो किसी बच्चे को आपने एक बोल हाथ में पकड़ा दिया और वो बच्चा वो हाथ में थामे बैठ गया, तो उसको कोई मजा नहीं आएगा | लेकिन अगर वही बोल वो फेकता है, वापस लेता है | ऐसे खेल में उसे वक्त का पता भी नहीं चल पता और वो उसमे मशगुल होकर अपनी एनर्जी भी लगता है | इस तरह उसका शारीरिक और मानसिक दोनों चीजो का इस्तेमाल होता है | खेल हमें खेलदिली सिखाता है | हमें जीवन में हार के साथ समजौता करना और उनमे से बाहर निकलना सिखाता है |

हमारे भारतीय इतिहास के ऐसे ही खेलो के बादशाह माने जाने वाले, मेजर ध्यानचंद जी की आज पूण्यतिथि है | और भारत सरकार ने उनके इस दिन को यादगार बनाते हुए आज के दिन को खेल दिन के रुपमे मनाने का तय किया और आज का दिन हम खेल दिन के रूप में मनाते है | जिनका जन्म 29 अगस्त 1905 में भारत के इलाहाबाद में हुआ था | जिन्होंने अपने जीवन में 1000 से ज्यादा अपनी होकी से गोल दागे थे | उनकी होकी स्टिक ऐसे चिपकी रहती थी मानो उसमे किसी ने लोह चुंबक लगा दिया हो | शायद इस वजह से उनकी होकी का बहोत से खेल के बड़े बड़े ब्रेडमैन ने [पोस्ट मार्टम भी किया लेकिन उसमे से कुछ नहीं निकला | तभी लोगो ने उनके  गोल करने के हुन्नर को माना | वे भारत के आजादी पूर्व और बादमे भी उन्हें होकी का कप्तान बनाया गया था | पहलीबार 1937  में जब वो भारतीय होकी के कप्तान थे तबै उन्हें सूबेदार बनाया था | भारत के स्वतंत्रता के बाद उन्हें 1948 में उन्हें वापस होकी का कप्तान बनाया गया | होकी के करन ही उनकी पदोन्नति हुई और उन्हें लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया |    उन्हें 1956 में भारत सरकार ने भारत के प्रतिष्ठित ऐसे पद्मभूषण एवोर्ड से संमानित किया था |

उनके होकी के उनके कौशल्य की वजह से ही उन्हें क्रिकेट के ब्रेडमैन और फुटबाल के पेले की तरह भगवान माना जाता है |

जापान में ओलंपिक के खेल के समय स्टेडियम में 40 हजार दर्शको के बिच उस वक्त के जाने माने विश्व मान्य नेता हिटलर भी मौजूद थे | उनके खेल से प्रभावित होक उन्होंने ध्यानचंद जी को बुला के ब्रिटेन की सेना में ऊँचे पद का ऑफर कर के कहा आप हमारे देश के लिए खेलो | तब उन्होंने हिट्लर की उस ऑफर को ठुकराकर कहा मैंने जिस देश का नामक खाया है उसीके लिए मै खेलूँगा | यही थी उनकी देश भावना और समर्पितता |

ऐसे महान खेलाडी ने अपने जीवन कल में 1921-1956  तक भरतीय सेना के खेला और बाद में 1926 से लेकर 1948 तक भारतीय पुरुष होकी टीम के लिए खेला था | उन्होंने तिन बार1928, 1932, 1936 ऐसे ओलंपिक में भारत को होकी में गोल्ड मेडल दिलवाया था |  उनके खेल की उत्कृष्टता को देख कर बाद में उन्हें राष्ट्रिय पुरस्कार में अर्जुब और द्रोणाचार्य पुरस्कार भी प्रदान किए गए थे | फिलहाल उन्हें भारत रत्न दिए जाने की मांग की जा रही है |

ऐसे महान खेलाडी ने अपने जीवन की आखरी साँस अपने जीवन के 74 साल की उमर्मे ३ दिसम्बर को दिल्ही में ली थी | ऐसे कर्म निष्ठ और देश भक्त और तिरंगे की शान के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन बियाता उन्हें शतश प्रणाम |

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