पाठकों आज हम बात कर रहे हैं हर स्त्री और पुरुष की जिंदगी के सबसे अहम और महत्वपूर्ण रिश्ते जिसे पति -पत्नी कहते हैं के बारे में आप सब ने हिंदी फिल्म का एक मशहूर गाना ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है’ सुना ही होगा भारतीय संस्कृति में एक भारतीय नारी की नजर में उसके पति की तस्वीर इस गाने पर बिलकुल सटीक बैठती है। सतजुग से लेकर आज कलयुग में भी भारतीय नारी अपने पति को परमेश्वर का दर्जा देती है और उनकी पूजा करती है। लेकिन क्या सिर्फ पति को हर हाल गलत सही में भी पूजना सही है। नहीं । पति पत्नी का रिश्ता बराबरी का होता है, जिसमें दो अपूर्ण मिलकर इस रिश्ते को पूर्ण रूप देते हैं। इस रिश्ते में दोनों को ही एक दूसरे का सम्मान देना चाहिए। दोनों को ही अपने जीवनसाथी को स्वयं से कम नहीं आंकना चाहिए।पति पत्नी का रिश्ता संसार में सबसे पवित्र और निस्वार्थ माना गया है, जो जन्म से नहीं जुड़ता लेकिन जीवन भर साथ देता है।
जब एक युवती किसी की पत्नी बनकर उसके घर जाती है तब उस घर में जो पहला इंसान होता है जिसपर वह आँख बंद कर के भरोसा कर सकती है वो पति ही होता है। पति एक स्त्री को उसके ससुराल जो उसका घर होता है वहा उसे सम्मान दिलाने में मदद करता है वह उस पूल की तरह होता है जो उस स्त्री को अपने परिवार से जोड़ता है उसे प्यार और वह सम्मानीय स्थान दिलाता है जिसकी वह हकदार होती है। पति पत्नी के रिश्ते का महत्व और परिभाषा की व्याख्या हमारे धर्म -ग्रंथों में भी की गई है।रामायण के अनुसार सीता से विवाह कर के भगवान श्रीराम ने सफल वैवाहिक जीवन की नींव रखी। सीता को भगवान राम ने विवाह के बाद उपहार के रुप में वचन दिया कि जिस तरह से दूसरे राजा कई रानियां रखते हैं, कई विवाह करते हैं, वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। हमेशा सीता के प्रति ही निष्ठा रखेंगे।रामायण के अनुसार विवाह के पहले ही दिन एक दिव्य विचार आया। रिश्ते में भरोसे और आस्था का संचार हो गया। सफल गृहस्थी की नींव पड़ गई। श्रीराम ने अपना यह वचन निभाया भी। सीता को ही सारे अधिकार प्राप्त थे। श्रीराम ने उन्हें कभी कमतर नहीं आंका।
रामायण कहती है कि पत्नी से ही सारी अपेक्षाएं करना और पति को सारी मर्यादाओं एवं नियम-कायदों से छूट देना बिल्कुल भी निष्पक्ष और न्यायसंगत नहीं है। पति-पत्नी का संबंध तभी सार्थक है जबकि उनके बीच का प्रेम सदा तरोताजा बना रहे। तभी तो पति-पत्नी को दो शरीर एक प्राण कहा जाता है। दोनों की अपूर्णता जब पूर्णता में बदल जाती है तो अध्यात्म के मार्ग पर बढऩा आसान और आंनदपूर्ण हो जाता है। रामायण में बताया है कि स्त्री में ऐसे कई श्रेष्ठ गुण होते हैं जो पुरुष को अपना लेना चाहिए। प्रेम, सेवा, उदारता, समर्पण और क्षमा की भावना स्त्रियों में ऐसे गुण हैं, जो उन्हें देवी के समान सम्मान और गौरव प्रदान करते हैं।रामायण में जिस प्रकार पतिव्रत की बात हर कहीं की जाती है, उसी प्रकार पत्नीव्रत भी उतना ही आवश्यक और महत्वपूर्ण है। जबकि गहराई से सोचें तो यही बात जाहिर होती है कि पत्नी के लिये पति व्रत का पालन करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा आवश्यक है पति का पत्नी व्रत का पालन करना। दोनों का महत्व समान है। कर्तव्य और अधिकारों की दृष्टि से भी दोनों से एक समान ही हैं।
रामायण के अनुसार जो नियम और कायदे-कानून पत्नी पर लागू होते हैं वही पति पर भी लागू होते हैं। ईमानदारी और निष्पक्ष होकर यदि सोचें तो यही साबित होता है कि स्त्री पुरुष की बजाय अधिक महत्वपूर्ण और सम्मान की हकदार है। यानी रामायण में भी स्त्री और पुरुष के इस रिश्ते को बराबरी का दर्जा दिया गया है।लेकिन स्त्रियों को श्रेष्ठ भी माना है। शायद जब भी हम ईश्वर का नाम लेते हैं तो उसमें पत्नी का नाम पहले आता है जैसे सीता राम, गौरी शंकर ,लक्ष्मी नारायण, सिद्धिविनायक आदि-आदि। गीता में भी कहा गया है कि पति पत्नी के रिश्ते में विश्वास, सम्मान और आपसी तालमेल का होना अति आवश्यक है। रामायण में राम -सीता को एक आदर्श पति पत्नी का दर्जा दिया गया है और अक्सर हम किसी ख़ूबसूरत शादी शुदा जोड़े को देखते हैं,जिन्हे देखकर हमारी दिल ख़ुशी होती है तो हमारे मुंह से अनासाय ही निकल पड़ता है बिलकुल राम सीता की जोड़ी है। राम सीता की जोड़ी का इतना महत्व क्यों है और दोनों को आदर्श क्यों माना गया है। इसका जवाब यह है कि राम और सीता दोनों ही संयम और धैर्य का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे।
अयोध्या में जब राम को 14 वर्ष का वनवास मिला तब सीता ने भी पत्नीधर्म का पालन किया और पति के हर सुख दुःख में साथ देने के वचन को निभाने के लिए राम के साथ वह भी वनवास गई। यहीं नहीं जब महाप्रतापी और महाज्ञानी रावण ने सीता को अगवा कर लिए तब माँ ने राम के प्रति अपने सच्चे प्रेम और विश्वास को टूटने नहीं दिया। उन्होंने रावण को न कभी अपने नजदीक आने दिया और न कभी उसके आगे झुकीं। इस तरह से माँ सीता ने अपने पत्नीधर्म का पालन किया और आदर्श पत्नी के रूप में स्वयं को स्थापित किया। वहीं रावण ने जब मां सीता का हरण कर लिया तो जितनी परेशान मां सीता थी उससे कहीं ज्यादा विचलित भगवान श्री राम थे। पत्नी के सम्मान के लिए उन्होंने राक्षसों के साथ युद्ध कर उनका विनाश किया। अगर चाहते तो हनुमान जी आसानी से मां सीता को वापस ला सकते थे लेकिन पत्नी की रक्षा और सम्मान के प्रति प्रतिबद्ध भगवान श्री राम जी ने अपने पतिव्रता का पालन किया। दोनों ने निःस्वार्थ प्रेम और त्याग की भावना को अपने जीवन में बनाये रखा मेरा पति मेरा देवता है|
पाठकों आज हम बात कर रहे हैं हर स्त्री और पुरुष की जिंदगी के सबसे अहम और महत्वपूर्ण रिश्ते जिसे पति -पत्नी कहते हैं के बारे में आप सब ने हिंदी फिल्म का एक मशहूर गाना ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है’ सुना ही होगा भारतीय संस्कृति में एक भारतीय नारी की नजर में उसके पति की तस्वीर इस गाने पर बिलकुल सटीक बैठती है। सतजुग से लेकर आज कलयुग में भी भारतीय नारी अपने पति को परमेश्वर का दर्जा देती है और उनकी पूजा करती है। लेकिन क्या सिर्फ पति को हर हाल गलत सही में भी पूजना सही है। नहीं । पति पत्नी का रिश्ता बराबरी का होता है, जिसमें दो अपूर्ण मिलकर इस रिश्ते को पूर्ण रूप देते हैं। इस रिश्ते में दोनों को ही एक दूसरे का सम्मान देना चाहिए। दोनों को ही अपने जीवनसाथी को स्वयं से कम नहीं आंकना चाहिए।पति पत्नी का रिश्ता संसार में सबसे पवित्र और निस्वार्थ माना गया है, जो जन्म से नहीं जुड़ता लेकिन जीवन भर साथ देता है।जब एक युवती किसी की पत्नी बनकर उसके घर जाती है तब उस घर में जो पहला इंसान होता है जिसपर वह आँख बंद कर के भरोसा कर सकती है वो पति ही होता है। पति एक स्त्री को उसके ससुराल जो उसका घर होता है वहा उसे सम्मान दिलाने में मदद करता है वह उस पूल की तरह होता है जो उस स्त्री को अपने परिवार से जोड़ता है उसे प्यार और वह सम्मानीय स्थान दिलाता है जिसकी वह हकदार होती है।
पति पत्नी के रिश्ते का महत्व और परिभाषा की व्याख्या हमारे धर्म -ग्रंथों में भी की गई है।रामायण के अनुसार सीता से विवाह कर के भगवान श्रीराम ने सफल वैवाहिक जीवन की नींव रखी। सीता को भगवान राम ने विवाह के बाद उपहार के रुप में वचन दिया कि जिस तरह से दूसरे राजा कई रानियां रखते हैं, कई विवाह करते हैं, वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। हमेशा सीता के प्रति ही निष्ठा रखेंगे।रामायण के अनुसार विवाह के पहले ही दिन एक दिव्य विचार आया। रिश्ते में भरोसे और आस्था का संचार हो गया। सफल गृहस्थी की नींव पड़ गई। श्रीराम ने अपना यह वचन निभाया भी। सीता को ही सारे अधिकार प्राप्त थे। श्रीराम ने उन्हें कभी कमतर नहीं आंका।रामायण कहती है कि पत्नी से ही सारी अपेक्षाएं करना और पति को सारी मर्यादाओं एवं नियम-कायदों से छूट देना बिल्कुल भी निष्पक्ष और न्यायसंगत नहीं है। पति-पत्नी का संबंध तभी सार्थक है जबकि उनके बीच का प्रेम सदा तरोताजा बना रहे। तभी तो पति-पत्नी को दो शरीर एक प्राण कहा जाता है। दोनों की अपूर्णता जब पूर्णता में बदल जाती है तो अध्यात्म के मार्ग पर बढऩा आसान और आंनदपूर्ण हो जाता है।
रामायण में बताया है कि स्त्री में ऐसे कई श्रेष्ठ गुण होते हैं जो पुरुष को अपना लेना चाहिए। प्रेम, सेवा, उदारता, समर्पण और क्षमा की भावना स्त्रियों में ऐसे गुण हैं, जो उन्हें देवी के समान सम्मान और गौरव प्रदान करते हैं।रामायण में जिस प्रकार पतिव्रत की बात हर कहीं की जाती है, उसी प्रकार पत्नीव्रत भी उतना ही आवश्यक और महत्वपूर्ण है। जबकि गहराई से सोचें तो यही बात जाहिर होती है कि पत्नी के लिये पति व्रत का पालन करना जितना जरूरी है उससे ज्यादा आवश्यक है पति का पत्नी व्रत का पालन करना। दोनों का महत्व समान है। कर्तव्य और अधिकारों की दृष्टि से भी दोनों से एक समान ही हैं। रामायण के अनुसार जो नियम और कायदे-कानून पत्नी पर लागू होते हैं वही पति पर भी लागू होते हैं। ईमानदारी और निष्पक्ष होकर यदि सोचें तो यही साबित होता है कि स्त्री पुरुष की बजाय अधिक महत्वपूर्ण और सम्मान की हकदार है। यानी रामायण में भी स्त्री और पुरुष के इस रिश्ते को बराबरी का दर्जा दिया गया है।लेकिन स्त्रियों को श्रेष्ठ भी माना है। शायद जब भी हम ईश्वर का नाम लेते हैं तो उसमें पत्नी का नाम पहले आता है जैसे सीता राम, गौरी शंकर,लक्ष्मी नारायण, सिद्धिविनायक आदि-आदि। गीता में भी कहा गया है कि पति पत्नी के रिश्ते में विश्वास, सम्मान और आपसी तालमेल का होना अति आवश्यक है।
रामायण में राम -सीता को एक आदर्श पति पत्नी का दर्जा दिया गया है और अक्सर हम किसी ख़ूबसूरत शादी शुदा जोड़े को देखते हैं,जिन्हे देखकर हमारी दिल ख़ुशी होती है तो हमारे मुंह से अनासाय ही निकल पड़ता है बिलकुल राम सीता की जोड़ी है। राम सीता की जोड़ी का इतना महत्व क्यों है और दोनों को आदर्श क्यों माना गया है। इसका जवाब यह है कि राम और सीता दोनों ही संयम और धैर्य का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे। अयोध्या में जब राम को 14 वर्ष का वनवास मिला तब सीता ने भी पत्नीधर्म का पालन किया और पति के हर सुख दुःख में साथ देने के वचन को निभाने के लिए राम के साथ वह भी वनवास गई। यहीं नहीं जब महाप्रतापी और महाज्ञानी रावण ने सीता को अगवा कर लिए तब माँ ने राम के प्रति अपने सच्चे प्रेम और विश्वास को टूटने नहीं दिया। उन्होंने रावण को न कभी अपने नजदीक आने दिया और न कभी उसके आगे झुकीं। इस तरह से माँ सीता ने अपने पत्नीधर्म का पालन किया और आदर्श पत्नी के रूप में स्वयं को स्थापित किया। वहीं रावण ने जब मां सीता का हरण कर लिया तो जितनी परेशान मां सीता थी उससे कहीं ज्यादा विचलित भगवान श्री राम थे।
पत्नी के सम्मान के लिए उन्होंने राक्षसों के साथ युद्ध कर उनका विनाश किया। अगर चाहते तो हनुमान जी आसानी से मां सीता को वापस ला सकते थे लेकिन पत्नी की रक्षा और सम्मान के प्रति प्रतिबद्ध भगवान श्री राम जी ने अपने पतिव्रता का पालन किया।इस तरह से राम -सीता के आदर्श पति पत्नी बने। वहीं राम ने राजधर्म निभाने के लिए जब सीता का परित्याग किया तब भी उन्होंने अपने ह्रदय में सीता का स्थान किसी को नहीं दिया और न किसी और के बारे में कभी सोचा। इस तरह से राम -सीता ने एक-दूसरे के लिए अपना-अपना धर्म निभाया और स्वयं को आदर्श पति पत्नी के रूप में स्थापित किये,जिनकी हर कोई आज पूजा करता है।दोनों ने निःस्वार्थ प्रेम और त्याग को पूरे जीवन अपनाये रखा और एक दूसरे अटूट विश्वास रखा जो किसी भी स्थिति में डगमगाया नहीं।
पति-पत्नी को कभी भी एक -दूसरे के अलावा किसी और की तरफ नजर उठाकर नहीं देखना चाहिए।इस सम्बन्ध में एक कहानी भी है, जिसे शायद आप सब ने भी सुना होगा -‘ययाति नामक एक राजा हुआ करता था जो कि दिखने में काफी सुंदर थे। राजा ययाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से विवाह किया था। लेकिन विवाह करने से पहले गुरु शुक्राचार्य ने ययाति से वचन मांगा था कि वो किसी भी अन्य स्त्री से संबंध नहीं बनाएंगे और ययाति ने गुरु शुक्राचार्य के इस वचन को स्वीकार कर लिया था। वहीं शादी के बाद देवयानी के साथ उनकी एक दासी शर्मिष्ठा भी ययाति के साथ उनके राज्य महल आई थी। दरअसल शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थी और देवयानी ने एक वचन के तहत दैत्यराज वृषपर्वा से उनकी पुत्री को दासी के रूप में मांग लिया था।शर्मिष्ठा देवयानी से काफी ईर्ष्या किया करती थी और शर्मिष्ठा की नजर ययाति पर थी। जब देवयानी गर्भवती हुईं तो उस वक्त शर्मिष्ठा ने अपने प्यार के जाल में ययाति को फांस लिया। कुछ समय बाद ये बात गुरु शुक्राचार्य को पता चल गई और गुरु शुक्राचार्य ने गुस्से में आकर ययाति को एक श्राप दे दिया। इस श्राप की वजह से ययाति युवा अवस्था में ही वृद्ध हो गए।’ अर्थात कहने का यह तात्पर्य है कि पति पत्नी के रिश्ते में छल का कोई स्थान नहीं होता है और जो भी यह करता है उसे दुष्कर्म भी भुगतने पड़ते हैं चाहे वह राजा हो या आम नागरिक।
यानी हमारी संस्कृति हमारे धर्म ग्रंथ हमेशा से ही इस रिश्ते में दोनों को एक -दूसरे का सम्मान करना सिखाया गया है। हमारे बड़े बुजुर्ग भी अक्सर कहते हैं कि पति -पत्नी साइकल के दो पहिये की तरह होते है, जिसमें दोनों में बराबर बैलेंस होना जरुरी है अगर एक भी लड़खड़ाया तो पूरी सायकल ही गिर जाती है वैसे ही गृहस्थ जीवन में पति पत्नी का रिश्ता है, जिसमें से किसी एक ने भी गलत किया तो पूरी गृहस्थी उजड़ जाती है। इस रिश्ते में निःस्वार्थ प्यार, अपनापन,विश्वास, साझेदारी और सम्मान का होना अति आवश्यक है लेकिन आज बदलते दौर में सम्मान की जगह लोगों में अहंकार आता जा रहा है। इस रिश्ते में कहीं न कहीं अब बराबरी का अर्थ प्रतिस्पर्था हो गई है और यह रिश्ता अहम ने ले ली है। आज पति पत्नी के रिश्ते की सही मर्यादा कहीं न कहीं खत्म हो रही है और सम्मान का स्थान अभिमान ने ले लिया है। आज ज्यादातर पति पत्नी एक -दूसरे को खुद को ज्यादा समझदार और बड़ा बताने के लिए एक दूसरे के सम्मान को ठेस पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आप सब ने वो कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें एक लकड़हारा पेड़ की जिस डाली पर बैठा होता है उसी को काटता है।
वैसे ही पति पत्नी का रिश्ता है जिसमें दोनों जिस प्रेम की डाली पर बैठे हैं उसे काटने में लगे रहते हैं। लेकिन जरा सोचिये हम इस रिश्ते की अहमियत और मर्यादा खोकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं क्या ऐसे में हम कभी खुश ,सुखी और शांत रह पाएंगे।नहीं न।हम अपनों को रुला कर हंस नहीं सकते। इसलिए इस रिश्ते में कभी भी प्यार और सम्मान की जगह अहंकार और अभिमान को मत आने दीजिये। एक दूसर को प्यार और सम्मान दे और बदले में प्यार और सम्मान पाए।पत्नी पत्नी में मै और तुम नहीं सिर्फ हम होता है इसलिए पति की इज्जत में ही पत्नी की और पत्नी के ही सम्मान में पति का सम्मान होता है। पति -पत्नी एक सिक्के के दो पहलू और एक दूसरे के पूरक होते हैं। एक -दूसरे के सुख दुःख के साथी बनिए अभिमान और अहंकार के नहीं। पति पत्नी का रिश्ता जीवन भर का होता है।यह रिश्ता बहुत ही ख़ास होता है। उनके रिश्ते मे गहराई होनी चाहिये। एक दूसरे की गलतियों को क्षमा करने का सामर्थ्य होना चाहिए। एक दूसरे का सम्मान करना चहिये। आपस मे विचारों की विविधता भले ही हो पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने मे आपसी सामंजस्य होना चाहिए। इसलिए इस रिश्ते को प्यार से सहेज कर रखिये और पेड़ की तरह फूलने -फलने दीजिये जिसकी छाया में दूसरे भी शीतल हो और आपके रिश्ते से सीख लेकर अपने रिश्ते की बगिया भी महकाएं।
इस तरह से राम -सीता के आदर्श पति पत्नी बने। वहीं राम ने राजधर्म निभाने के लिए जब सीता का परित्याग किया तब भी उन्होंने अपने ह्रदय में सीता का स्थान किसी को नहीं दिया और न किसी और के बारे में कभी सोचाc इस तरह से राम -सीता ने एक-दूसरे के लिए अपना-अपना धर्म निभाया और स्वयं को आदर्श पति पत्नी के रूप में स्थापित किये.जिनकी हर कोई आज पूजा करता है।
पति-पत्नी को कभी भी एक -दूसरे के अलावा किसी और की तरफ नजर उठाकर नहीं देखना चाहिए।इस सम्बन्ध में एक कहानी भी है, जिसे शायद आप सब ने भी सुना होगा -‘ययाति नामक एक राजा हुआ करता था जो कि दिखने में काफी सुंदर थे। राजा ययाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से विवाह किया था। लेकिन विवाह करने से पहले गुरु शुक्राचार्य ने ययाति से वचन मांगा था कि वो किसी भी अन्य स्त्री से संबंध नहीं बनाएंगे और ययाति ने गुरु शुक्राचार्य के इस वचन को स्वीकार कर लिया था। वहीं शादी के बाद देवयानी के साथ उनकी एक दासी शर्मिष्ठा भी ययाति के साथ उनके राज्य महल आई थी। दरअसल शर्मिष्ठा दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री थी और देवयानी ने एक वचन के तहत दैत्यराज वृषपर्वा से उनकी पुत्री को दासी के रूप में मांग लिया था।शर्मिष्ठा देवयानी से काफी ईर्ष्या किया करती थी और शर्मिष्ठा की नजर ययाति पर थी। जब देवयानी गर्भवती हुईं तो उस वक्त शर्मिष्ठा ने अपने प्यार के जाल में ययाति को फांस लिया। कुछ समय बाद ये बात गुरु शुक्राचार्य को पता चल गई और गुरु शुक्राचार्य ने गुस्से में आकर ययाति को एक श्राप दे दिया। इस श्राप की वजह से ययाति युवा अवस्था में ही वृद्ध हो गए।’
अर्थात कहने का यह तात्पर्य है कि पति पत्नी के रिश्ते में छल का कोई स्थान नहीं होता है और जो भी यह करता है उसे दुष्कर्म भी भुगतने पड़ते हैं चाहे वह राजा हो या आम नागरिक।
यानी हमारी संस्कृति हमारे धर्म ग्रंथ हमेशा से ही इस रिश्ते में दोनों को एक -दूसरे का सम्मान करना सिखाया गया है। हमारे बड़े बुजुर्ग भी अक्सर कहते हैं कि पति -पत्नी साइकल के दो पहिये की तरह होते है, जिसमें दोनों में बराबर बैलेंस होना जरुरी है अगर एक भी लड़खड़ाया तो पूरी सायकल ही गिर जाती है वैसे ही गृहस्थ जीवन में पति पत्नी का रिश्ता है, जिसमें से किसी एक ने भी गलत किया तो पूरी गृहस्थी उजड़ जाती है। इस रिश्ते में निःस्वार्थ प्यार, अपनापन,विश्वास, साझेदारी और सम्मान का होना अति आवश्यक है लेकिन आज बदलते दौर में सम्मान की जगह लोगों में अहंकार आता जा रहा है। इस रिश्ते में कहीं न कहीं अब बराबरी का अर्थ प्रतिस्पर्था हो गई है और यह रिश्ता अहम ने ले ली है। आज पति पत्नी के रिश्ते की सही मर्यादा कहीं न कहीं खत्म हो रही है और सम्मान का स्थान अभिमान ने ले लिया है। आज ज्यादातर पति पत्नी एक -दूसरे को खुद को ज्यादा समझदार और बड़ा बताने के लिए एक दूसरे के सम्मान को ठेस पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
आप सब ने वो कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें एक लकड़हारा पेड़ की जिस डाली पर बैठा होता है उसी को काटता है। वैसे ही पति पत्नी का रिश्ता है जिसमें दोनों जिस प्रेम की डाली पर बैठे हैं उसे काटने में लगे रहते हैं। लेकिन जरा सोचिये हम इस रिश्ते की अहमियत और मर्यादा खोकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं क्या ऐसे में हम कभी खुश ,सुखी और शांत रह पाएंगे।नहीं न।हम अपनों को रुला कर हंस नहीं सकते। इसलिए इस रिश्ते में कभी भी प्यार और सम्मान की जगह अहंकार और अभिमान को मत आने दीजिये। एक दूसर को प्यार और सम्मान दे और बदले में प्यार और सम्मान पाए।पत्नी पत्नी में मै और तुम नहीं सिर्फ हम होता है इसलिए पति की इज्जत में ही पत्नी की और पत्नी के ही सम्मान में पति का सम्मान होता है। पति -पत्नी एक सिक्के के दो पहलू और एक दूसरे के पूरक होते हैं। एक -दूसरे के सुख दुःख के साथी बनिए अभिमान और अहंकार के नहीं।
पति पत्नी का रिश्ता जीवन भर का होता है।यह रिश्ता बहुत ही ख़ास होता है। उनके रिश्ते मे गहराई होनी चाहिये। एक दूसरे की गलतियों को क्षमा करने का सामर्थ्य होना चाहिए। एक दूसरे का सम्मान करना चहिये। आपस मे विचारों की विविधता भले ही हो पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने मे आपसी सामंजस्य होना चाहिए। इसलिए इस रिश्ते को प्यार से सहेज कर रखिये और पेड़ की तरह फूलने -फलने दीजिये जिसकी छाया में दूसरे भी शीतल हो और आपके रिश्ते से सीख लेकर अपने रिश्ते की बगिया भी महकाएं।