43. भारत रत्‍न डॉ. सी. एन. आर. राव

43. भारत रत्‍न डॉ. सी. एन. आर. राव

(जन्म -30 जून 1934- बेंगलोर) भारत रत्‍न-2014

डॉ. राव न सिर्फ न केवल बेहतरीन रसायनशास्त्री हैं बल्कि उन्होंने देश की वैज्ञानिक नीतियों को बनाने में भी अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने पदार्थ के गुणों और उनकी आणविक संरचना के बीच बुनियादी समझ विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है|भारत के सी वी रमन और पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के बाद तीसरे वैज्ञानिक हैं, जिनके नाम के साथ यह सम्‍मान जुड़ रहा है। सॉलिड स्टेट और मैटेरियल केमिस्ट्री के विशेषज्ञ प्रोफेसर सीएनआर राव देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्‍मानित किया गया है।

विज्ञान के बिना देश का कोई भविष्य नहीं है। उन्होंने कहा,‘‘जब तक भारत विज्ञान में विश्व शक्ति नहीं बनता, मुझे नहीं दिखता कि यह कैसे दुनिया में विश्व शक्ति बनेगा। राव ने ऐसे वैज्ञानिकों का उदाहरण भी दिया जिनके पास भले ही स्नातक की डिग्री नहीं थी लेकिन उन्होंने सीमित संसाधनों में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं जैसे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामावनुजन।

डॉ. चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनका जन्‍म 30 जून 1943 को बंगलुरू के एक कन्‍नड़ परिवार में हुआ था। उनकी बचपन से ही विज्ञान में गहरी रूचि थी। वे नोबेल पुरस्‍कार विजेता वैज्ञानिक सी वी रमन से बहुत प्रभावित थे। अपनी पढाई के दौरान उन्‍होंने अपने अध्‍यापक की मदद से रमन से मिलने में कामयाब हुए। वे उनकी प्रयोगशाला देखकर बहुत प्रभावित हुए और आगे चलकर विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करके दिखाने की प्रेरणा प्राप्‍त की।

राव ने 1951 में मैसूर विश्‍वविद्यालय से स्‍नातक की डिग्री प्राप्‍त की। उसके बाद उन्‍होंने बनारस हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय में एम.एस-सी. में प्रवेश लिया और सन 1953 में उसे शानदार तरीके से उत्‍तीर्ण किया। उसके बाद उन्‍होंने यू.एस.ए. के पुरड्यू विश्‍वविद्यालय में पी.एच.डी. में प्रवेश लिया। वहां पर उन्‍होंने नोबेल विजेता एच.सी. ब्राउन के मार्गदर्शन में स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोपी में शोध कार्य किया, जिसके लिए उन्‍हें 1958 में पी.एच.डी. की डिग्री प्रदान की गयी। डॉ. राव ने अपनी शोध यात्रा 1963 में इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नालॉजी, कानपुर से फैकल्‍टी मेम्‍बर के रूप में शुरू की। सन 1984 में वे इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरू के निदेशक चुने गये। वहां पर उन्‍होंने 1994 तक अपनी सेवाएं दीं।

डॉ. राव का शोधकार्य ‘सॉलिड स्‍टेट केमिस्‍ट्री’ से सम्‍बंधित है। उन्‍होंने स्‍पेक्‍ट्रम विज्ञान के उन्‍नत उपकरणों के माध्‍यम से ठोस पदार्थों की भीतरी संरचनाओं पर कार्य किया। इसके अतिरिक्‍त उन्‍होंने सूक्ष्‍मदर्शी स्‍तर पर ठोसों में होने वाली प्रक्रियाओं को समझा और उनसे सम्‍बंधित रिसर्च पेपर लिखे। उन्होंने पदार्थ के गुणों और उनकी आणविक संरचना के बीच बुनियादी समझ विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है।

डॉ. राव ने अपने शोध कार्यों के लिए इंस्‍टीटयूट में अपनी प्रयोगशाला बनाई और अपने ज्‍यादातर शोध कार्य उसी में सम्‍पन्‍न किये। उनका मानना है कि ”वास्‍तव में विज्ञान का अध्‍ययन और परीक्षण उसके परिणामों से अधिक रोचक है।”

उन्होंने 1,800 से अधिक शोध पत्र और 56 पुस्तकें लिखी हैं। बेंगलुरु में स्थित, राव जवाहरलाल नेहरू सेंवर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च में मानद अध्यक्ष और लिनुस पॉलिंग रिसर्च प्रोफेसर के रूप में काय करते हैं, जिस संस्थान की उन्होंने स्थापना की थी। उनके पास भारतीय विज्ञान संस्थान में मानद प्रोफेसरशिप भी है।
राव को पद्म श्री (1974), पद्म विभूषण (1985), आइंस्टीन गोल्ड मेडल (1996), रॉयल सोसाइटी द्वारा ह्यूजेस मेडल (2000), और भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न (2014) से सम्मानित किया गया है। ). वह दुनिया की कई प्रमुख विज्ञान अकादमियों के सदस्य हैं और उन्हें विश्व स्तर पर 85 विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हुई है।

अनुसंधान से परे, राव ने भारत में वैज्ञानिक शिक्षा और नीति निर्धारण में बहुत योगदान दिया है। उन्होंने 2004-14 के दौरान प्रधान मंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की अध्यक्षता की, इससे पहले उन्होंने 1985-89 तक अपना कार्यकाल पूरा किया था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारतीय विज्ञान अकादमी और इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री का भी नेतृत्व किया है।

भारत रत्न प्रोफेसर सी एन आर राव और उनकी टीम के एक अध्ययन ने ऐसी सटीक परमाणु पुनर्व्यवस्था (प्रेसाइज एटॉमिक रिअरेंजमेंट्स) का पता लगाया है जो परिवर्तित तापमान और दबाव के कारण लेड आयोडाइड पेरोव्स्काइट के प्रत्येक चरण के संक्रमण में होती है और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक गुणों पर उनके परिणामी प्रभाव होते हैं। इस तरह के अध्ययन कुशल नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में सहायता कर सकते हैं।

डॉ0 राव की योग्‍यता को देखते हुए उन्‍हें 1964 में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य नामित किया गया। सन 1967 में उन्‍हें फैराडे सोसाइटी ऑफ इंग्लैंड से मार्लो मेडल प्राप्‍त हुआ। सन 1968 में प्रो0 राव को भटनागर अवार्ड से सम्‍मानित किया गया।

उनकी योग्‍यताओं और देशसेवा के लिए उन्‍हें भारत सरकार ने सन 1974 में पदमश्री और सन 1985 में पदमविभूषण से भी सम्मानित किया। इसके अतिरिक्‍त कर्नाटक सरकार भी उन्‍हें ‘कर्नाटक रत्न’ की उपाधि प्रदान कर चुकी है।

देश-विदेश की 50 से अधिक वैज्ञानिक संस्‍थाओं से मानद सदस्‍य डॉ. राव एक देशप्रेमी वैज्ञानिक हैं। उन्‍हें विदेश के अनेक संस्‍थानों ने बड़े-बड़े प्रलोभन दिये, पर उन्‍होंने उन सबको ठुकराकर भारत में ही रहते हुए देश सेवा का व्रत लिया। वे वास्‍तव में भारत के रत्‍न हैं। उनको ‘भारत रत्‍न’ सम्‍मान प्रदान किये जाने की घोषणा से हर भारतवासी अह्लादित है।

भारतरत्न से सम्मानित प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर सी एन आर राव को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वोन हिप्पल पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। प्रोफेसर राव इस पुरस्कार को पाने वाले पहले एशियाई वैज्ञानिक होंगे। यह पुरस्कार पदार्थ अनुसंधान शोध में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए दिया जा रहा है। वोन हिप्पल पुरस्कार को पदार्थ अनुसंधान के क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है।

राव ने कहा,” मौजूदा सिद्धांतों को सुधारने के बजाय अब भारतीय वैज्ञानिकों को नए अविष्कारों पर ध्यान देना चाहिए।”

राव ने कहा कि भारतीय समाज अभी असफलता की अहमियत नहीं समझता है। भारत में रिसर्च और खोज में रुकावट की सबसे बड़ी वजह है- असफलता का डर। राव ने कहा कि हम भारतीय कमियां ढूंढने में माहिर हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिक भी नई खोजें करने में डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हो पाए तो लोग उनका मजाक बनाएंगे। उन्होंने कहा,”हमारे युवा आगे कैसे बढ़ेंगे अगर हम उन्हें गलतियां करने की इजाजत नहीं देंगे|”

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