इश्वरवाद और जड़वाद का झगड़ा अनादी काल से चला आ रहा है। और यह संघर्ष कोई नहीं टाल सकता। जैसे अनादी काल से दिया और बाती का संघर्ष चला आ रहा है। भगवान जो नेक दिल और सोचने के लिए दिमाग दिया है उसका सही इस्तेमाल कर हमें सोचना है हम किस पथ के राही बनना चाहते है। भगवान के प्रति अपनी निष्ठा जतानी है, या हिरण्य कश्यपू का सैनिक कर किस राह पर चलना पसंद करना है, यह बात हमें तय करनी है। शायद उत्क्रांति वाद का तथ्य या नियम इस अवतार में नहीं लागू हो पा रहा है। जहां सालों तक भगवान पृथ्वी पर जन्म नहीं लेते और यहा एक के बाद एक जन्म ले रहे हैं। और वो भी आधा मानव और आधा हिंसक पशु के रूप में। और वो भी हिरन्य कश्यपू जैसे राक्षस को मरने के लिए।
कहानी तो हमें पता ही है, अपने भाई हिरन्याक्ष का विष्णु द्वारा वध की बात सुन के उसने मंदराचल पर्वत पर जाके घोर तप किया और ब्रह्मा से वरदान में तीनो लोक में अजेय और अमर होने का वरदान मांग लिया। मनुष्य या पशु दिन या रात कभी भी उसकी मृत्यु न हो, ऐसा वरदान पा कर वो अभेय हो गया। जब उसकी पत्नी क्याधू सगर्भा हुई तो उसके गर्भ से दूसरा शक्तिशाली असुर पैदा ना हो इस डर से इंद्र ने, उसकी पत्नी का अपहरण कर नारदजी के आश्रम में छोड़ दिया। जहा कथा और भक्ति के श्रवण से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे पर अच्छे संस्कार आए। उसके फल स्वरूप उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त बन गया।
नारदजी के आश्रम से आने के बाद गुस्से में हिरन्य कश्यपू ने अपने ही बेटे को मारने के बहोत से प्रयास किए। यहा तक की अपनी बहन होलिका को उसको गोद में बिठा के अग्नि में बैठ उसे जलाने की भी कोशिश की लेकिन होलिका जल गई और प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ। उस दिन से होलिकादहन हमारी संस्कृति में शुरू हुआ। प्रहलाद को मारने के हर तरह के रास्ते अपना चूका उसका ही पिता उसे मारने के लिए एक स्तंभ गर्म करवा कर उसे भेटने को कहके उसे मरवाना चाहता था लेकिन उसी स्तंभ से नृसिंह भगवान प्रकट होके उसका ही अंत कर दिया।
कहानी बहुत ही रोचक है। क्या उसके पीछे का तथ्य जानते है।
राक्षस के घर पैदा हुए भक्त को बचाने हर वक्त भगवान आते है। वैसे हमारे जीवन में यह कई बार होता है। लेकिन भक्त और हममें फर्क इतना है की, भक्त उसे भजन या दोहे के रुप में ढाल के उसे पूरे संसार को सुनाते है, और हम अगले ही पल उसे भूल जाते है।
भक्त को भगवान् पर सो आणी विश्वास है। और हम सामान्य जनोका विश्वास पल पल में बदल जाता है। प्रकृतिका नियम है, जितना और जैसा भरोसा आप उसपे करते हो उतना पर्सेंट ही उसका परिणाम भी हमें मिलता है। अगर एक किसान अपने खेत में ऊपर वाले पे भरोसा करके बिज जमीन में डालता है। और महेनत करता है तो भगवान भी उसकी महेनत का चार गुना करके उसे वापस देता भी है। तो क्या हम उसपे भरोसा रखके काम करे तो क्या वो उसका उचित फल हमे नहीं दे सकता। लेकिन हम दही तो जमाने रखते है किंतु हर आधे घंटे में चेक करने जाते है जमा या नहीं तो ऐसे दही नहीं जम सकता। वैसे ही भगवान पर विश्वास रखके, अपना काम पूरी इमानदारी से करो और बाकि सब उस पर छोड़ दो तो वक्त आने पर उसका सही परिणाम भी आएया।
बात करे नरसिंह अवतार की। जिसमें आधा शरीर मनुष्य का और आधा हिंसक जानवर का। तो हिरण्य कश्यपू के वरदान के मुताबिक उसे मारने के लिए भगवान को वही स्वांग धारण करना पड़ा। लेकिन तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो, हर मानव में हिंसक पशु छिपा हुआ है। अगर उसे जागृत किया जाए तो वो सामान्य दिखनेवाला इंसान भी हिंसक बन जाता है। यही बात आज के समय में होने वाले हिंसक प्रदर्शनों को देख के लगाई जा सकती है। जब जब अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुंचता है, तब तब सामान्य जन मानस से ही ऐसे नरसिंह आगे आते है और उस राक्षस का वध कर देते है।
जिस हिरण्य कश्यपू के राज्य में जहा खुद को ही भगवान माना जाता था। और उसी की पूजा की जाती थी। यही बात जब उसकी चरम सीमा पर पहुंची। तब जन मानस में उसका आक्रोश बढ़ता गया। किन्तु प्रहलाद जैसे निडर और इस विश्वास वाले नेता को पाकर लोगो में छिपे नरसिह को प्रहलाद की बातो ने और भक्तिने जागृत किया। और उस पर हो रहे, अपने ही पिता द्वारा अत्याचार को, लोगों को विक्षिप्त कर दिया। और जन मानस में से ही नरसिह अवतार बनके उस राक्षस का विनास कर दिया। तत पश्चात भगवान की कृपा से प्रहलाद ने फिर से उस राज्य में की संस्थापना कर फिर से सुनियोजित राज्य बनाया। लोगो को फिर से ईशा भिमुख करके उनका जीवन उत्क्रांत किया। इस प्रकार एक राक्षस के घर जन्म लेने के बावजूद प्रहलाद नारदजी के यहा से मिले गर्भ संस्कार के कारण इश भक्त बना। जिसकी रक्षा के लिए भगवान को खुद अवतार लेके आना पड़ा।