29. जे. आर. डी. टाटा -भारतरत्न 1992
(जन्म-29 जुलाई 1904 पेरिस -मृत्यु- 29 नवंबर 1993 जिनेवा)
भारत के सुप्रसिद्ध उद्योगपति टाटा परिवार में जन्मे जे.आर.डी. यानी जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा जन्मजात उद्योगपति थे। जहां तक उनकी प्रतिभा, क्षमता, कर्मठता, रुचि तथा प्रशिक्षण का सम्बन्ध है, वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। हवाई जहाज़ उड़ाने, योजनाएं तैयार करने, प्रबन्ध कार्यों को सरल बनाने तथा औद्योगिक सम्बन्धों का विकास करने में उनकी गहरी रुचि थी।
शिक्षा, जनसंख्या नियन्त्रण, परमाणु ऊर्जा के विकास में जीवन-भर उन्होंने अपना भरपूर योगदान दिया। वह चाहते थे कि देश के अधिक से अधिक लोगों को ऐसे कार्यों से लाभ पहुंचाया जाए। अपनी कोशिशों से उन्होंने एक ऐसे नए इतिहास की रचना की, जो भारत के औद्योगिक विकास में निहित है। जे. आर. डी. टाटा के नाम से विख्यात इस हस्ती को भारत में नागरिक उड्डयन का अग्रदूत कहा जाता है।
जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा का जन्म 29 जुलाई, 1904 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुआ था। उनके पिता का नाम रतनजी दादाभाई टाटा और मां का नाम सूनी था। वह फ्रांसीसी महिला थीं। जहांगीर रतनजी दादाभाई की आरम्भिक शिक्षा फ्रांस तथा बम्बई में हुई थी। वह अंग्रेज़ी की अपेक्षा फ्रेंच भाषा ज़्यादा अच्छी तरह बोलते थे। युवावस्था में एक वर्ष तक वह फ्रांस की सेना में भी रहे। बाद में पिता ने 1924 में बम्बई बुला लिया। यहां आकर उन्होंने टाटा उद्योग में काम करना शुरू किया और मि. पीटर्सन की देखरेख में उद्योगों का प्रबन्धन कार्य सीखा। पीटर्सन एक आई.सी.एस. अधिकारी थे। उन्होंने सिविल सर्विस छोड़कर टाटा उद्योग को अपनी सेवाएं देना उचित समझा।
जे. आर. डी. टाटा का विवाह थेल्मा नाम की एक सुयोग्य तरुणी से 15 दिसम्बर 1930 में हुआ। अविभाजित भारत में वह पहले नागरिक थे, जिन्हें हवाईजहाज़ चलाने का लाइसेंस दिया गया। उन्होंने अपना विमान भी ख़रीद लिया और करतब दिखाना भी सीखा। टाटा ने 3 मई, 1930 को कराची से इंग्लैंड के लिए उड़ान भरकर पहली विजय प्राप्त की। 1940 के शुरू में जे. आर. डी. की जवाहलाल नेहरू से अच्छी पहचान हो गई थी। भारत के औद्योगिक विकास का एक सपना पं. नेहरू ने भी देखा था । जे. आर. डी. की सक्रियता ने उनके विचार को बल दिया|
1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू होने से पूर्व जे. आर. डी. कांग्रेस की बैठकों में शामिल हुए थे, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के बजाय उन्होंने देश की प्रगति के लिए उद्योग-धन्धों का विकास करन के विकल्प को चुना। वह अपनी लगन के पक्के थे, इसीलिए भारत की औद्योगिक उन्नति के लिए सदैव सक्रिय रहे। एयर इंडिया के जन्मदाता भी वही थे। इसकी स्थापना 8 मार्च, 1948 को की गई थी। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में टाटा उद्योग समूह की जितनी उन्नति हुई, उसका श्रेय जे.आर.डी. टाटा को ही जाता है। वह औद्योगिक प्रबन्धन को व्यवस्थित रूप देना चाहते थे। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने टाटा मैनेजमेंट ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की थी, जो अपनी तरह का एक सर्वश्रेष्ठ संस्थान है।
पंडित नेहरू तथा टाटा के विचारों में काफ़ी समानता थी। दोनों ही कुलीन घराने में पैदा हुए थे तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा भी विदेशों में हुई थी। दोनों के मध्य आत्मीयता से भरा पत्र-व्यवहार भी होता रहता था, जिसमें देश की उन्नति की बातें भी रहा करती थीं।
पं. नेहरू ने कई बार सरकारी तन्त्र में रतन टाटा की योग्यता के अनुसार पद देना चाहा, किन्तु बीच-बीच में कुछ ऐसी बातें होती रहीं, जिनकी वजह से वह ऐसे पदों को स्वीकार करने से बचते रहे। वह तिरपन वर्षों तक टाटा उद्योग समूह के अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने योग्य प्रशासक के रूप में कामगारों का भला करने वाले तथा हर पल देश की उन्नति के बारे में सोचने वाले कर्मयोगी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। वह उद्योगों में ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के पक्षधर भी थे और चाहते थे कि उद्योगों में कार्यरत कर्मचारी वर्ग के भीतर ऐसे भाव पनपने चाहिए कि वे स्वयं को मात्र वेतनभोगी न मानकर सम्बन्धित उद्योग का एक ज़िम्मेदार भागीदार माने। उनके इस विश्वास के कारण ही देश में टाटा उद्योग समूह व्यवस्थित उद्योगों की पहचान बन गया।
जे.आर.डी. टाटा ने खुलकर कभी यह नहीं कहा कि वह गांधीवादी हैं, लेकिन गौर से विचार किया जाए तो ज्ञात होता है कि गांधी के आदर्शों के काफ़ी निकट थे। वह सादा जीवन व्यतीत करते थे तथा कभी-कभी अपने कपड़े स्वयं ही धो लेते थे। ऐसा सरल जीवन जीने में उनकी पत्नी को भी कभी संकोच नहीं होता था। उन्होंने महिलाओं एवं उनके बच्चों की मदद के लिए जे. आर. डी. तथा थेल्मा जे. टाटा ट्रस्ट की स्थापना की।
जे. आर. डी. टाटा लोगों के बीच घुलना-मिलना पसन्द करते थे। टाटा उद्योगों में कार्यरत अधिकारियों तथा कर्मचारियों के साथ उनका स्नेह से भरा और दोस्ताना व्यवहार रहता था । विशेष समारोहों अथवा अवसरों पर वह स्वयं उनके साथ बैठते थे तथा प्रसन्नता से उनका उत्साह बढ़ाया करते थे । एक बार उनसे पूछा गया कि क्या आप धार्मिक हैं या अध्यात्मवादी ? इस प्रश्न का सीधा उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि वह ऐसे योजनाबद्ध धर्म को तो पसन्द नहीं करते, जो लोगों के बीच दीवारें खड़ी करता है, किन्तु वह अधिकांश धर्मों की मूल अच्छाइयों में अवश्य विश्वास करते हैं तथा जीवन में अच्छाई की शक्ति को भी स्वीकार करते हैं।
एक बार उनसे पूछा गया कि क्या वह पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। इसका रोचक-सा उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था कि वह आत्मा की अमरता पर विश्वास करते हैं तथा यह चाहते हैं कि यदि उनका पुनर्जन्म हो, तो वह भारत में इतनी क्षमता और शक्ति लेकर उत्पन्न हों कि अपने देश और यहां के लोगों की भरपूर मदद कर सकें।
सफलता के शिखर पर पहुंचकर अक्सर लोग अपने-आप को एकाकी समझने लगते हैं और ऐसा एकाकीपन कभी-कभी बड़ा उबाऊ हो जाता है। जे.आर.डी. के साथ ऐसा नहीं था। इस बारे में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था कि वह ऐसा इसलिए नहीं समझते, क्योंकि उनके पास योग्य कर्मचारियों का पूरा समूह है, जो उनके दायित्वों में हाथ बटाता है । उन्होंने कहा कि यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह ऐसे लोगों को कोई प्रेरणा देते हैं, किन्तु तथ्य यह है कि वह स्वयं उनसे प्रेरणा अवश्य प्राप्त करते हैं। किसी महापुरुष के ये विचार प्रकट करते हैं कि वह कितने सरल तथा अभिमान से दूर थे।
आम जनता की चिन्ता करने वाले ऐसे पुरुष किसी देश के भाग्य विधाता ही होते हैं। टाटा अपने देश को कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भरपूर प्रयत्न करते रहते थे। उन्होंने लम्बी उम्र पाई थी। नवासी वर्ष की उम्र तक वह देश में विभिन्न उद्योगों का विकास करने में जुटे रहे। देश के लिए उनके महान योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 25 जनवरी, 1992 को उन्हें भारतरत्न जैसे सर्वोच्च अलंकरण से विभूषित किया। 1993 में वह जेनेवा गए हुए थे, जहां हृदय एवं श्वास गति रुक जाने से 29 नवम्बर को उनका निधन हो गया ।