भारत के महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के पास दौलताबाद शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित वेरुलगाँव के पास घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है| घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के निकट बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा निर्मित विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं भी हैं। पुराणों के अनुसार घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को 14 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने आक्रमण करके मंदिर को ध्वस्त कर दिया था, उसके बाद 16 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा जी मालोजी राव भोसले जो की शिव भक्त थे उन्होंने मंदिर को फिर से निर्मित करवाया और मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया| फिर 18 वीं शताब्दी में, महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भी घृष्णेश्वर मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया| कुछ जगहों पर घृष्णेश्वर मंदिर को ग्रुमेश्वर और कुसुमेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की खासियत
घृष्णेश्वर मंदिर में मौजूद लाल चट्टान पर अद्भुत विष्णु भगवान की दशावतार मूर्ति यहां आने वाले सभी भक्तो के लिए आकर्षण का केंद्र होती है। मंदिर जिन खम्बो के द्वारा बना है उन सभी खम्बो पर बहुत ही सूंदर और अद्भुत कलाकारी देखने को मिलती है| मंदिर की गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले पुरुषो को शर्ट, बनियान और बेल्ट बाहर ही निकालनी होती है|
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
पौरोणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है देवगिरि नामक पर्वत के पास एक ब्राह्मण परिवार निवास करता था, ब्राह्मण का नाम सुधर्मा और उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था| दोनों पति पत्नी खुशीपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, ब्राह्मण सुधर्मा भगवान शिव का बहुत ही बड़ा भक्त था| ब्राह्मण नियमित रूप से भगवान शिव की पूर्ण विधि-विधान और सच्ची श्रद्धा से पूजा करता था लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति के कोई संतान ना होने का एक बहुत बड़ा दुःख भी था|
संतान ना होने की वजह से ब्राह्मण दंपत्ति को बहुत सारे ताने भी सुनने को मिलते थे, एक बार सभी के तानो से परेशान होकर सुदेहा ने अपने पति से कहा कि सम्पूर्ण पृथ्वी का एक नियम है कि अगर किसी इंसान के कोई संतान नहीं होती है तो उसका वंश समाप्त हो जाता है, संतान ही वंश को आगे बढाती है| लेकिन हम निसंतान है ऐसे में हमारा वंश कैसे आगे बढ़ेगा, आपको हमारा वंश बचाने के लिए कुछ करना चाहिए|
सुदेहा ने आगे कहा की मेरी बहन घुश्मा से विवाह करके आप हमारे वंश को नष्ट होने से बचा सकते है, यह बात सुनकर सुधर्मा ने कहा कि मेरे विवाह करने का सबसे ज्यादा दुःख और परेशानी तुम्हे ही होगी| पत्नी अपनी जिद्द पर अडिग रही और कुछ समय बाद घुश्मा का विवाह सुधर्मा से करा दिया। विवाह के उपरांत सुदेहा ने अपनी छोटी बहन को नियमित रूप से 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूर्ण विधि विधान से पूजा करने और पूजा के बाद उन सभी शिवलिंगों का विसर्जन तालाब में करने के लिए कहा| छोटी बहन नियमित रूप से ऐसा ही करने लगी, फिर घुश्मा ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया, पुत्र प्राप्त होने के बाद घुश्मा का हर जगह सम्मान मिलने लगा, छोटी बहन का सम्मान देख कर बड़ी बहन सुदेहा को अपनी छोटी बहन से ईर्ष्या और जलन होने लगी। पुत्र के जवान होने पर उसका विवाह कर दिया गया, विवाह के बाद सुदेहा ने ईष्यावश एक दिन रात में घुश्मा के पुत्र की हत्या करके उसे उसी तालाब में फेंक दिया, जिसमे घुश्मा रोजाना शिवलिंग का विसर्जन करती थी| सुबह जब बहु कमरे में आई तो कमरे में खून देखकर रोने लगी, यह बात वो अपने सास और ससुर को बताने बाहर आई,दोनों पति पत्नी भगवान शिव की पूजा में लीन थे। बहु की आवाज सुनकर सुदेहा भी दिखावा करते हुए रोने और चिल्लाने लगी, घुश्मा अपनी पूजा को पूर्ण करने के बाद रोजाना की तरह सभी निर्मित शिवलिंग का विसर्जन करने तालाब के पास जाती है, तो तालाब में खड़े अपने पुत्र को देखकर वह बहुत प्रसन्न होती है और भगवान शिव की लीला को जान लेती है|
उसी समय वहां पर पर एक तीव्र ज्योति प्रकट होती है उस तीव्र ज्योति में से साक्षात भगवान शिव प्रकट होते है और घुश्मा को उसकी बड़ी बहन सुदेहा के अपराध को बताते है, भगवान शिव सुदेहा को उसके इस अपराध के लिए मृत्यु दंड देने के लिए कहते है, लेकिन छोटी बहन घुश्मा ने अपनी बड़ी बहन को माफ़ करने की प्रार्थना करते हुए कहती है बड़ी बहन के अपराध करने के कारण ही मुझे आपके दर्शन हो पाएं है, भगवान शिव घुश्मा की बात सुनकर प्रसन्न हो जाते है और उसे वर मांगने के लिए कहते है|
घुश्मा ने भगवान शिव से कहा कि हे भगवान अगर मुझे कुछ देना चाहते है तो आप मेरी तरह अपने सभी भक्तो का कल्याण करने के लिए यहां पर विराजमान हो जाएं, भगवान शिव ने घुश्मा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वही पर शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए, तभी उसे घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा|
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने का उपयुक्त समय
घृष्णेश्वर मंदिर जाने वाले भक्त पूरे साल भगवान शिव के दर्शन करने जाते है| लेकिन अगर आप मंदिर जाने के लिए सबसे उपयुक्त समय सर्च कर रहे है तो जनवरी से मार्च तक और अक्टूबर से दिसंबर तक का समय सबसे उपयुक्त समय माना जाता है क्योंकि इस समय पर ना तो बहुत अधिक ठंड होती है और ना ही बहुत अधिक गर्मी, इसीलिए आप आसानी से यात्रा का लुत्फ़ ले सकते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे जाएं
अगर आप घृष्णेश्वर मंदिर जाने का विचार फ्लाइट से बना रहे है तो आपको फ्लाइट से घृष्णेश्वर के के सबसे पास औरंगाबाद एयरपोर्ट पर पहुंचना होगा, एयरपोर्ट पर पहुँचने के बाद आप बस या कैब की सुविधा से घृष्णेश्वर पहुँच सकते है| लेकिन अगर आप ट्रैन से जाना चाह रहे है तो घृष्णेश्वर का अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है, ट्रैन से जाने पर आपको औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पर पहुंचना होता है,औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से घृष्णेश्वर के लिए आपको टेक्सी की सुविधा मिल जाती है| घृष्णेश्वर जाने के लिए सड़क मार्ग भी बेहतर विकल्प है, औरंगाबाद से आपको घृष्णेश्वर के लिए आसानी से बस या कैब की सुविधा प्राप्त हो जाती है, जिसके द्वारा आप आसानी से घृष्णेश्वर मंदिर पहुँच सकते है|