हम सब ने एकता कपूर की मशहूर धारावाहिक क्योकि सास भी कभी बहू को देखा या उसके बारे में सुना तो जरुरी है। सास यानी किसी युवती के पति की माँ और बहू यानी उस माँ के बेटी की पत्नी।सास-बहू एक ऐसे रिश्ते का नाम है जिसका नाम आते ही हमारे दिमाग में एक सख्त सास और एक बेचारी बहू की छवि सामने आती है। लेकिन आज बदलते जमाने के साथ इस रिश्ते के मायने भी कहीं न कहीं बदले हैं। हालांकि एक कहावत है कि सास कितनी भी सीधी हो जाये वो हसुआ भर टेढ़ी ही रहती है। इसका कारण यह है कि सास अपने ससुराल में एक बहू के रूप में आती है और जब वह स्वयं सास बनती है तो उनकी प्रवृति बदल जाती है और वह एक माँ से सास बन जाती है वह भूल जाती है कि उसके बेटे से जिस लड़की की शादी हुई है वह उसी के परिवार का हिस्सा है और वह भी इस घर में उसकी तरह बहू बन कर ही आई है इसलिए जितना हक़ उनका है उतना ही उस घर-परिवार पर बहू का भी हक होता है। लेकिन सास बनते ही वह महिला इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पाती उसकी नजर में उसकी बहू उसके परिवार का ही अंग है। वह उस घर में बहू की हिस्सेदारी को साझा नहीं कर पाती उसे लगता है बहू पराई है और उन्हें उनके बेटे से दूर कर देगी सास बनने के बाद महिलाएं अक्सर ऐसी सोच से अपनी ही परविश और संस्कार पर सवाल खड़े कर लेती है। उनका अपनी परवरिश पर से भरोसा डगमगा जाता है और उन्हें लगता है कि अगर मेरी बहू कुछ गलत भी सिखाएगी तो बेटा वही करेगा।
सास को अपने परिवार में अपना वर्चस्व कम होता नजर आने लगता है इसलिए वह कठोर सास का रूप अपना लेती है वह एक बहू से अपेक्षा रखती है कि उसकी बहू उन्हें अपनी माँ की तरह सम्मान दे उनकी सेवा करे लेकिन स्वयं वह अपनी बहू को बेटी के रूप में स्वीकार नहीं कर पाती। एक बेटी शादी होते ही अपना परिवार छोड़कर बहू के रूप में दूसरे परिवार की सदस्य बन जाती है और उसे उस परिवार में उसका दर्जा या स्थान बनाने में उसके पति से ज्यादा उसकी सास का हाथ होता है। क्योकि सास भी कभी उसी घर में बहू बनकर आई होती है और उसे अनुभव होता है एक सास को ही पहले पहल करनी पड़ती है कि जो उसके घर में बहू बनकर आई है वो उसके घर को अपना समझे इसके लिए उस लड़की को प्यार और सम्मान देना पड़ता है तभी जाकर वह उस घर को अपनाती है और इस अपनेपण को स्वीकार कर सीख कर वह भी दूसरो को सम्मान देती है। यानी जैसा बोवोगे वैसा फल पाओगे। सास को लेकर ऐसी धरना थी की सास वहीं जो सांस अटका दे हालांकि बदले समय के साथ इस रिश्ते में भी थोड़ा नयापन और साझेदारी की भावना तो आई है। लेकिन अभी भी यह बदलाव थोड़ा ही है। यानी सास तो सास ही है।
सास बहू का रिश्ता नदी के उन दो किनारों की तरह है जो साथ -साथ चलते तो है मगर मिलते नहीं और इन दोनों के बीच रिश्ता बनाती या जोड़ती नदी कभी तूफ़ान से भरी होती है तो कभी शांत। ठीक वैसे ही सास बहू का रिश्ता है जो एक घर में रहते तो है लेकिन दोनों को विचारधाराओं का मिलना ना मुमकिन सा प्रतीत होता है। और इन दोनों के रिश्ते में भी कभी प्यार तो कभी टकराव अक्सर ही देखने को मिलता है। देश की राजनेत्री मेनका गांधी हो या एक आम महिला, इस रिश्ते में टकराव से जो अछूता रहा हो ऐसी कोई सास-बहू की जोड़ी शायद ही हो। दरअसल बहू के घर में प्रवेश करते ही सास उसे अपना प्रतिद्व्न्दी मान बैठती है और अपना रौब जमाने और हुकुम मनवाने के लिए वह कई बार तानाशाही पर उतर आती है। वहीं दूसरी तरफ घर में आई हुई बहू अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही होती है। वह भी चाहती है कि परिवार में उसे भी अहमियत दी जाए। घर के फैसलों में उससे भी राय मशवरा की जाए। उसे भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह सम्मान दिया जाये। सास अपने तौर तरीके बहू पर थोपना चाहती है। अक्सर बात -बात पर बहू और उसके मायके वालों को ताना देना। अपने बेटे को बहू यानी अपनी पत्नी की मदद न करने देना आदि बाते इस रिश्ते में दूरियों को और बढ़ावा देते हैं।
बहू जब गलत बातों का विरोध करती है तो अक्सर सास कहती है अगर तुम्हारी माँ कहती तो तुम चुप रहती। ऐसा नहीं है कि सभी सास ताना देने वाली ही होती है लेकिन ज्यादातर सास ऐसी ही होती है। जबकि सत्य यह है कि एक नई नवेली बहू अपनी माँ से ज्यादा सम्मान अपनी सास को देती है। अपने मायके में कोई भी युवती कभी कभी माँ से नोंक झोंक कर बैठती है लेकिन जब वह विवाहित होती है तो सास की हर बात चुप रहकर इसलिए सुनती है क्योकि उसके मन में भय होता है कि कहीं उसकी एक छोटी सी भूल के लिए भी उसके माता -पिता का कोई तिरस्कार न कर दे। सास अपने आप को बड़ा और बेटे की माँ होने का अहम दिखने का एक मौका नहीं छोड़ती। शायद इसी वजह से आज घर घर में सास बहू की तकरार देखने को मिलती है। शायद इसी वजह से आज संयुक्त परिवार का चलन खत्म हो रहा है और लोग अपने परिवार के रूप में सिर्फ अपने पति पत्नी और बच्चे को देखते हैं। सास बहू के इन्ही मतभेदों की वजह से घर की शांति भी भंग होती है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। सास बहू के रिश्ते को मधुर बनाने के लिए सास के व्यवहार में उदारता,धैर्य और त्याग का होना अतिआवश्यक है।अपने सभी करीबियों और माता-पिता को छोड़ कर दूसरे घर आई बहू को उस घर से मिलने वाला प्रेम ही जोड़ सकता है।
बहू को सिर्फ काम करने वाली मशीन नहीं बल्कि परिवार का एक सम्मानीय सदस्य माना जाए तो बहू के मन में भी सभी के लिए प्यार और सम्मान की भावना उत्पन्न होती है और वह भी सभी के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती है ।हम बहू के साथ जैसा व्यवहार करेंगे हमें उससे वैसा ही मिलेगा और याद रखे आपके बुढ़ापे में आपके बेटे से ज्यादा एक अच्छी बहू काम आएगी जो आपकी जरूरत के वक्त हमेशा आपके साथ खड़ी रहेगी आपका ध्यान रखेगी आपको मान सम्मान देगी।लेकिन यह तभी सम्भव है जब आप अपने व्यवहार में सौम्यता,धैर्य और त्याग की भावना लाये। अपनी ईगो अहंकार और वर्चस्व कायम करने वाली सोच का त्याग करे। सास-बहू का रिश्ता सबसे अहम और नाजुक होता है और अब आपके हाथ में है आप क्या चाहते है।