“समुंद्र में गिरे आंसू को पहचान ले … वो सच्चा मित्र !”

हम सभी के जीवन में कोई न कोई खास मित्र होता है, जिसके साथ हम अपने जीवन की सुख -दुःख की बाते करते हैं।अच्छे-बुरे समय में उसके साथ खड़े रहते हैं। इस मित्रता के रिश्ते और मित्र को खास महसूस करवाने के उद्देश्य से हम सब हर साल फ्रेंडशिप डे मनाते हैं।

फ्रेंडशिप ने से जुड़ा अपने जीवन का एक किस्सा मुझे याद आ रहा है, एक बार एक फ्रेंडशिप डे पर अचानक से मेरा एक कॉलेज में जाना हुआ। जब वहां पहुंचा तो देखा कि सब लड़के-लड़कियां अपने हाथ में 10-20 और किसी के हाथ में तो उससे भी ज्यादा फ्रेंडशिप बेल्ट है | सही में यह ताज्जुब करने वाली बात थी | मेरे दिमाग में यह बात स्पष्ट ही नहीं हो रही थी कि एक व्यक्ति के 40-50 मित्र कैसे हो सकते हैं? लेकिन मुझे लगा कि, शायद ये उम्र का बदलाव है | मैने एक लड़के से पूछा कि, आप के इतने सारे मित्र है, तो फिर आपको तो दुनिया में कोई तकलीफ ही नहीं होगी | उन्होंने उत्तर दिया, “सर, यह सब तो मित्रता का दिखावा है, अगर मुझे कुछ हो जाये ना तो इनमें से कोई पास नहीं आएगा |

यह घटना के बाद मेरे मन में विचार आया कि, मित्र कैसा होना चाहिए ? 10-20 चाहे न हो, चाहे एक ही मित्र हो पर जब वो समुंद्र में गिरे मेरे आंसू को पहचान सकें, ऐसा मित्र होना चाहिए | किसी ने ठीक ही कहा है कि, “मित्र एक ऐसा चोर होता है, जो आंखों से आंसू, चेहरे से परेशानी, दिल से मायूसी, जिन्दगी से दर्द, और अगर उसका बस चले तो, हाथों की लकीरों से मेरी मौत भी चुरा ले” | एक अच्छे दोस्त के होते, व्यक्ति कभी तन्हा नहीं रहता |

इस संबंध में एक कहानी है -एक पिता और पुत्र थे | पुत्र ऐसा था कि उनके कई सारे मित्र थे और हर दिन वो नए -नए मित्र बनाये जा ही रहा था | उसका मानना था कि बहुत सारे मित्र होने से जिंदगी में हम बहुत आगे बढ़ सकते हैं, हर मित्र का उचित उपयोग कर के ऊंचाई की सीढ़ी को चढ़ सकते है| लेकिन उसके पिता का यह मानना था कि, मित्र चाहे एक ही हो पर ऐसा हो जो हमारी हर मुश्किल में काम आए। हर दुख-दर्द को हमारे साथ बांटे और जरुरत पड़ने पर अपने प्राण भी न्योछावर कर दे। पिता हमेशा अपने पुत्र को यह बात समझाता था, पर पुत्र को यह बात पुराने ख्यालातों के लगते थे | वो हमेशा अपने पिता को बोलता था कि, आप की सोच पुरानी है, आप एक पूर्वाग्रह के साथ जी रहे है, आज के ज़माने में तो जितने ज्यादा मित्र हो उतना ही व्यक्ति ज्यादा आगे बढ़ता है |

एक दिन पिता ने ठान लिया कि, कुछ भी हो पर मैं मेरे पुत्र की आंखे जरुर खोलूंगा | बहस करते हुए पिता ने अपने पुत्र को कहा कि, आज रात को हम हमारी मित्रता की परीक्षा करेंगे | पिता ने पहले अपने पुत्र को चांस दिया | बाप-बेटे आधी रात को पुत्र के एक दोस्त के यहां गए और दरवाजा खटखटाया, आवाज दी, बोला कि मैं बड़ी मुश्किल में हूं, दरवाजा खोलो और मेरी मदद करो | अन्दर से उसके मित्र की आवाज आई कि अभी मैं सो रहा हूं, कल सुबह में बात करेंगे | वहां से फिर दूसरे मित्र के पास, फिर तीसरे के पास, ऐसे करके 10 मित्रों के घर गए, किसी ने भी घर नहीं खोला और खोला तो बाहर आकर बोल दिया कि, अभी मै कोई मदद नहीं कर सकता | फिर पिता ने कहा, मेरा एक ही मित्र है, चलो अब उसके घर चलते हैं |

पिता के मित्र के घर पहुंचे और बाहर से ही आवाज दी | दो मिनिट के भीतर ही उसका मित्र एक हाथ में पैसे की गड्डी और दूसरे हाथ में लाठी लेकर बाहर आया | आकर तुरंत बोला, कहो मित्र ! मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं ? बेटे ने उनको पूछा कि हमने तो आपसे कोई पैसे की बात नहीं की, तो आप ये पैसे और लाठी लेकर क्यों आये ?.. उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया कि, बेटा आधी रात को मित्र दरवाजा खटखटाए तो दो ही बात हो सकती है, या तो वो कोई गंभीर मुसीबत में है, जिसमें ढेर सारे पैसे लगेंगे और या तो कोई उसको तंग कर रहा है, ये लाठी उसके साथ लड़ने के लिए है । उस दिन पुत्र समझ गया कि, मेरी सोच बिलकुल गलत थी। इतने सारे मित्र होने के बावजूद भी कोई मेरे लिए दरवाजा भी नहीं खोल रहा था और ये हैं जो अपनी सहायता के साधनों के साथ बाहर निकले । ‘

यह छोटी सी कहानी हमें सीख देती हैं कि मित्रता करने में चाहे धीरे रहें , पर जब किसी के साथ मित्रता कर ले, तब उसे मजबूती से निभाए । लेन-वेन ने कहा है कि, “एक सच्चा दोस्त वो है जो उस वक्त आप के साथ खड़ा है, जब उसे कहीं और होना चाहिए था”| अगर एक पुस्तक ज्ञान की पूंजी है तो एक सच्चा मित्र ज्ञान-सागर (पुस्तकालय) है, जो हमें समय-समय पर जीवन की कठिनाइयों से लड़ने में सहायता प्रदान करते हैं। मित्र वो होता है, जो दूर हो या पास, गरीब हो या अमीर, अपने मित्र को कभी नहीं भूलता |

आज के ज़माने में कई प्रकार की मित्रता है | एक मित्रता फायदे के लिए होती है, जब फायदा दिखाई दे तब मेरा मित्र | दूसरी मित्रता रूचि-आदतों की वजह से होती है। एक बीड़ी पीने वाले की दोस्ती दूसरे बीड़ी पीने वाले से तुरंत हो जाती है | और एक मित्रता, सिद्धांतों के लिए होती है | लेकिन एक मित्रता दैवी होती है, जिसमें एक -दूसरे का कोई स्वार्थ नहीं, कोई फायदा नहीं, फिर भी अच्छे मित्र | एक बार मित्रता कर ली, फिर दुनिया की कोई ताकत उसे तोड़ नहीं सकती | एरिस्टोटल ने कहा है कि, “मित्रता दो शरीरों में रहने वाली एक आत्मा है”| एक सच्चा मित्र तभी हमारे रास्ते पर आकर हमें रोकता है, जब हम कोई गलत रास्ते पर जा रहे हो | मित्रता कोई स्कूल या कॉलेज में पढ़ाई नहीं जा सकती, वो तो बस जीवन की राह में चलते-चलते हो जाती है |

जब “मित्र” शब्द आता है तब हमें हमारे, श्री राम और श्री कृष्ण की याद जरुर आती है | श्री राम के अपने जीवन में सिर्फ दो मित्र थे, एक गूह और दूसरा सुग्रीव | राम के दोनों मित्र ऐसे थे कि, वो दोनों राम के लिए अपनी जान भी देनी पड़े तो दे सकते थे | हम सब ने रामायण देखी और सुनी है और हमने देखा है कि, जब राम को वनवास हुआ तब गूह कैसे उसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार था। जब वन में भरत, राम को मिलने आये तब अपनी जान की चिंता किये बिना, गूह राम के रक्षण के लिए अपनी सेना को लेकर आ जाता है । राम का जो दूसरा मित्र था, सुग्रीव… उन्होंने तो कमाल ही कर दिया है | जब श्री राम अपने जीवन के अंतिम क्षण में सरयू नदी में प्रवेश करते हैं, तब यह समाचार सुनकर सुग्रीव, अपना राज छोड़कर दौड़ा हुआ चला आता है और श्री राम के पीछे वो भी सरयू में प्रवेश कर लेते हैं | आज के ज़माने में तो ऐसा मित्र सोचना भी मुश्किल है |

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता भी विख्यात है | सांदीपनी ऋषि के आश्रम में विद्याभ्यास के दौरान उनकी मित्रता हुई थी | एक प्रसंग है, जब कृष्ण और सुदामा दोनों फल खाने के लिए जंगल में जाते हैं, कृष्ण पेड़ के ऊपर चढ़ते हैं और सुदामा नीचे खड़े होते हैं I पेड़ के ऊपर चार फल थे, कृष्ण के एक फल नीचे फेंका और सुदामा को बोला कि देख तो सही, यह फल खाने योग्य है कि नहीं I सुदामा ने फल खाया, दूसरा फल भी खा लिया, तीसरा फल फेंका वो भी खा लिया, फिर अंतिम फल था, कृष्ण बोले तू तो बहुत अधीर है, तीनों फल खा गया, अब यह चौथा फल मै खा लेता हूं | ऐसा बोल कर श्रीकृष्ण ने फल खाया तो वो इतना कड़वा था कि, मुंह में डाल न सकें | कृष्ण ने बोला, तूने इतने कड़वे तीन फल खा लिए ? सुदामा ने तब कहा कि, मै सब फल इसलिए खा गया कि कड़वे फल मेरे मित्र के मुंह में जाये ही नहीं |

ये सुदामा को श्री कृष्ण ने सालों बाद जब वो द्वारिका आया तब उसके पैर धोये, उसकी सेवा की और बिना बताये बहुत सारा धन-धान्य प्रदान किया | ऐसी होती है मित्रता | महाभारत में दूसरी एक मित्रता भी बहुत प्रख्यात है, दुर्योधन और कर्ण की | कर्ण को पता था कि, दुर्योधन अधर्म के मार्ग पर चलता है, उसका अंत होने वाला है, फिर भी अपने मृत्यु तक वो दुर्योधन के साथ ही रहता है | ऐसी मित्रता, हजारों साल तक याद की जाती है, उसकी मिसालें दी जाती है |

आजकल तो लोग फ्रेंडशिप डे मना रहे हैं लेकिन उन्हें पता ही नहीं होता कि यह दिन क्यों मनाया जाता है | वैसे तो सन 1930 में होल्मार्क्स कार्ड के उत्पादक ने एक-दूसरे को कार्ड और गिफ्ट प्रदान करने के लिए यह दिन तय किया था | लेकिन इसके पीछे एक और कहानी भी है, जो दिलचस्प है | 1935 में अमेरिकन सरकार ने एक आदमी को फांसी की सजा सुनाई थी | जिसको फांसी मिली, उनका एक ख़ास मित्र था और वो अपने मित्र की फांसी को सहन नहीं कर सका | उन्होंने भी अपने मित्र की फांसी के बाद, उनको याद करते हुए आत्महत्या करके अपनी जान दे दी | अमेरिकन सरकार ने उस मित्र की भावना को देखते हुए, उस दिन को फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाना तय किया ऐसा कहा जाता है | वैसे तो फ्रेंडशिप डे, 30 जुलाई को होता है, पर हमारे देश सहित अनेक देश के लोग यह दिन अगस्त महीने के पहले रविवार को मनाते हैं |

अगर हमें फ्रेंडशिप डे को मनाना है तो, सिर्फ बेल्ट बांधकर या गिफ्ट देने से कुछ नहीं होगा I बल्कि हमें भी सोचना पड़ेगा कि, क्या मेरे पास ऐसा कोई एक मित्र है, जो मेरे आंसू को पहचान सके ?…. क्या मैं किसी का ऐसा मित्र बन सका हूं , जिसके लिए मैं अपना सबकुछ खो सकता हूं और रिश्ता निभा सकता हूं ?… क्या ऐसा कोई है, जो मेरी जिन्दगी में हमेशा मुझे साथ देने के लिए तैयार है ? …. अगर ऐसा है तो मेरा फ्रेंडशिप डे मनाना बिलकुल ठीक है, लेकिन अगर ऐसा कोई मित्र नहीं है, तो ऐसा कोई मित्र मिल जाए उसके लिए भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए |

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