आध्यात्मिक विभूति आनंदमयी मां कहा करती थीं कि, मन को वश में करने का उपाय यह है कि हम शरीर और संसार की जगह आत्मा को जानने का प्रयास करें। मन को पवित्र एवं उत्कृष्ट विचारों के चिंतन में लगाए रखें। इसके लिए नेत्रें, कानों और जि“वा का संयम आवश्यक है। न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न बुरा उच्चारित करें। यदि दूषित दृश्य देखोगे और अश्लील वार्ता सुनोगे, तो मन स्वतः दूषित हो उठेगा। आर्य संन्यासी, महात्मा आनंद स्वामी सरस्वती तो यह भी कहा करते थे कि मन उसी का पवित्र रह सकता है। जो पवित्र वातावरण में रहता है। इतना ही नहीं। जो व्यक्ति ईमानदारी और परिश्रम से अर्जित धन से प्राप्त सात्विक भोजन ग्रहण करता है, वही मन को वश में रखने में समर्थ हो सकता है।
आध्यात्मिक ज्ञान में दृढ़ताः यह कहा जाता है_ तत्त्व विस्मराणात भकीवत अर्थात ‘जब मनुष्य भूल जाता है कि क्या सही है और क्या गलत है तो वे जानवरों की तरह हो जाते हैं।‘ इस प्रकार, आध्यात्मिक सिद्धांतों के प्रति जागरूकता में दृढ़ रहने से व्यक्ति पुण्य मार्गी बनता है। आध्यात्मिकता, कई अलग मान्यताओं और पद्धतियों के लिए प्रयुक्त शब्द है, यद्यपि यह उन लोगों के साथ विश्वासों को साझा नहीं करती है जो इसे नहीं मानते और ईश्वर प्राप्ति के दूसरे तरीके अपनाते हैं। अथवा वे अनिवार्यतः आत्मा के अस्तित्व में विश्वास या अविश्वास नहीं करते है।
आध्यात्मिकता की एक सामान्य परिभाषा यह हो सकती है कि यह ईश्वरीय उद्दीपन की अनुभूति प्राप्त करने का एक दृष्टिकोण है, जो धर्म से अलग है। आध्यात्मिकता को, ऐसी परिस्थितियों में अक्सर धर्म की अवधारणा के विरोध में रखा जाता है, जहां धर्म को संहिताबद्ध, प्रामाणिक, कठोर, दमनकारी, या स्थिर के रूप में ग्रहण किया जाता है, जबकि अध्यात्म एक विरोधी स्वर है, जो आम बोलचाल की भाषा में स्वयं आविष्कृत प्रथाओं या विश्वासों को दर्शाता है, अथवा उन प्रथाओं और विश्वासों को, जिन्हें बिना किसी औपचारिक निर्देशन के विकसित किया गया है। इसे एक अभौतिक वास्तविकता के अभिगम के रूप में बताया जाता है_ एक आंतरिक मार्ग जो एक व्यक्ति को उसके अस्तित्व के सार की खोज में सक्षम बनाता है_ या फिर ‘गहनतम मूल्य और अर्थ जिसके साथ लोग जीते हैं। आध्यात्मिक व्यवहार, जिसमें ध्यान, प्रार्थना और चिंतन शामिल हैं। एक व्यक्ति के आतंरिक जीवन के विकास के लिए अति आवश्यक है_ ऐसे व्यवहार अक्सर एक बृहद सत्य से जुड़ने की अनुभूति में फलित होती है। जिससे अन्य व्यक्तियों या मानव समुदाय के साथ जुड़े एक व्यापक स्व की उत्पत्ति होती है_ प्रकृति या ब्रह्मांड के साथ_ या दैवीय प्रभुता के साथ। आध्यात्मिकता को जीवन में अक्सर प्रेरणा अथवा दिशानिर्देश के एक स्रोत के रूप में अनुभव किया जाता है। इसमें, सारहीन वास्तविकताओं में विश्वास या अंतस्थ के अनुभव या संसार की ज्ञानातीत प्रकृति शामिल हो सकती है।
धैर्यः धैर्य ऐसी शक्ति है, जो मानव के आत्मा को सबल बनाती है। जीवन में धैर्य का होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। किसी कार्य के प्रारंभ से लेकर प्रतिफल प्राप्त होने तक धीरज रखना जरूरी है जो धैर्यवान होते हैं। उन्हें वह सबकुछ हासिल होता है। मनुष्य के कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की सहनशीलता उसे उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्तियों से बचाती है। जो कुछ भी होता है, वह समय के अनुकूल ही होता है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है।
वस्तुतः धैर्य नकारात्मकता से पूर्व सहनशीलता का परिचायक है यह व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता को दर्शाती है। अतः हमें शान्त भाव से अपना काम करना चाहिए और धैर्यपूर्वक परिणाम का इंतजार करना चाहिए। प्रतिकूल समय में मन की शांति के लिए योग एवम् ध्यान का अभ्यास करना चाहिए साथ ही थोड़ा सा समय प्रार्थना के लिए निकालना चाहिए। प्रयास से सब सरल हो जाता है। हर सफल व्यक्ति के दिनचर्या के कुछ लक्ष्य होते हैं जो उसके अभ्यास के कारण बनते हैं।
धैर्यवान होने का अर्थ सरलता के साथ कदम उठाना और परिणाम का प्रतीक्षा करना है। जिन्दगी के किताब में धैर्य का कवर होना जरूरी है। क्योंकि वही हर पन्ने को बांधकर रखता है। धैर्य रखना बहुत कठिन है, परन्तु प्रयास से सब सरल हो जाता है। इसे कभी टूटने मत दें। हर असफलता में कुछ अच्छाई छिपी होती है। जो तत्काल समझ में नहीं आती। समय बीतने के साथ वह प्रत्यक्ष हो जाता है। मनुष्य के जीवन में कर्म महत्त्वपूर्ण है अगर आपके कर्म अच्छे होंगे तो उसके परिणाम भी अच्छे होगा। हमें पूरी श्रद्धा एवम् धैर्य के साथ कर्म में लिप्त और प्रयत्नशील रहना चाहिए। समय अपने गति से चलता है लेकिन जीवन में धैर्य का होना बहुत जरूरी है। हम समय को अपने अनुसार नहीं चला सकते। भाग्य अर्थात् प्रारब्ध! जिसे हम जन्म के साथ लेकर इस संसार में आते हैं। किसको क्या मिला है और क्या मिलेगा ये किस्मत की बात है।
संत कबीर कहते हैं ‘कारज धीरे होत है काहे होत अधीर। समय आय तरूवर फलै कौतुक सींचौ नीर।।’ अर्थात सब काम धीरे-धीरे और समय आने पर ही संपन्न होता है। माली के सौ घड़ा पानी से सींचने पर भी फल ऋतु के आने पर ही लगते हैं। बीज रूपान्तरित होकर वृक्ष बनता है और उसमें फल फूल लगते हैं। इसी में उसकी सार्थकता है। पर इस पूरी प्रक्रिया में माली का कोई वश नहीं चलता, उसका सिर्फ योगदान होता है। माली का कर्त्तव्य है_ अपने कर्म को करते रहना और धैर्यपूर्वक फल-फूल लगने का इंतजार करना। धैर्य की परीक्षा प्रतिकूल परिस्थितियों में होती है। कई बार ऐसा भी होता है कि माली बीज बोता है, पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता। अगर अंकुरित हुआ भी तो पेड़ के रूप में विकसित नहीं हो पाता। अगर वृक्ष बन भी गया तो उसमें फल-फूल नहीं आते। जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमें किसी कार्य विशेष का अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है। हर कोई बागवान बनना चाहता है। बाग में सुन्दर, सुगंधित फूलों के पौधे हों, स्वादिष्ट फलों के वृक्ष हों, यह सोचना गलत नहीं है। परन्तु वास्तव में ऐसा ही हो इसके लिए एक कुशल माली बनना पड़ेगा।
धैर्यवान होने का अर्थ सरलता के साथ कार्य करना और परिणाम आने का इंतजार करना है। किसी भी काम को करने में जल्दबाजी ना करें! उतावलापन का आशय जल्द से जल्द परिणाम पाने की कोशिश करना है। प्रत्येक मनुष्य को धैर्य के साथ ही किसी भी काम को पूरा करना चाहिए। किसी भी काम में जल्दबाजी करना सही नहीं होता है। जल्दबाजी के चक्कर में नुकसान उठाना पड़ सकता है।