लक्ष्मीकांत के बिना अधूरे है प्यारे लाल

हिंदी सिनेमा में ऐसी कई जोड़ियाँ है,जिन्हे देखकर लगता है की ये जोड़ी एक दूसरे के बिना अधूरी है। ऐसी ही एक जोड़ी है महान संगीतकार लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल की,जिन्होंने संगीत की दुनिया में न सिर्फ इतिहास रचा बल्कि इंसानी जीवन में दोस्ती की सही परिभाषा भी बताई। लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल दो व्यक्तियों के नाम है,जो दो अलग परिवेश से आये और एक दूसरे की दोस्ती में ऐसे रमे कि बॉलीवुड में आज भी इस जोड़ी की मिशाल दी जाती है । आज भी दोनों का नाम एक साथ बहुत आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है । संगीत की दुनिया में दोनों की जोड़ी ऐसी बनी की  एक का नाम लो तो अधूरा सा लगता है। लक्ष्मीकांत जी आज हमारे बीच नहीं है और यह कहना गलत नहीं होगा कि लक्ष्मीकांत के बिना प्यारे लाल अधूरे हैं। मशहूर म्यूजिक कम्पोजर लक्ष्मीकांत -प्यारे लाल फिल्म जगत की एक ऐसी दिलचस्प और महान जोड़ी हैं जिन्होंने अपना बचपन काफी कठिनाइयों और आर्थिक तंगी में गुजारा। इसके बावजूद दोनों ने अपनी कड़ी मेहनत से सफलता का वह मीठा स्वाद चखा जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

लक्ष्मीकांत का जन्म दीपावली के दिन 3 नवंबर 1937 को मुंबई में हुआ था, जिसके कारण उनके माता- पिता ने उनका नाम लक्ष्मीकांत रख दिया। वहीं  प्यारे लाल का जन्म 3 सितम्बर 1940 में मुंबई में हुआ था। आर्थिक तंगी की वजह से दोनों को ही स्कूल की पूरी शिक्षा नहीं मिली और घर चलाने के लिए दोनों ने तय किया कि वह संगीत सीखेंगे। इसके बाद लक्ष्मीकांत ने सारंगी बजाना सीखना शुरू कर दिया,तो वहीं  प्यारे लाल वायलन बजाना सीख रहे थे।लक्ष्मीकांत का पूरा नाम लक्ष्मीकांत शांताराम कुदलकर और प्यारे लाल का पूरा नाम प्यारे लाल राम प्रसाद शर्मा हैं। अलग-अलग परिवेश में पले हुए इन दोनों व्यक्तियों की जोड़ी ऐसे जमी की दोनों की जोड़ी बॉलीवुड में लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के नाम से मशहूर हो गई। दोनों की मुलाकात बहुत दिलचस्प थी। दरअसल जब लक्ष्मीकांत महज 10 वर्ष के थे तब उन्हें लता मंगेशकर के एक कॉन्सर्ट रेडियो क्लब में सारंगी बजाने का मौका मिला। उन्होंने उस कॉन्सर्ट में सारंगी से कुछ ऐसा जादू बिखेरा की लता मंगेशकर  कॉन्सर्ट के बाद लक्ष्मीकांत से मिलने को विवश हो गयी। लक्ष्मीकांत से मिलने के बाद लता जी ने लक्ष्मीकांत को सुरील कला केंद्र में संगीत सीखने का न्यौता भी दे दिया। सुरील कला केंद्र मंगेशकर परिवार द्वारा आर्थिक स्थिति से कमजोर लोगों को संगीत की शिक्षा प्रदान कराता था।  इसी सुरील कला केंद्र में एक दिन लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल की मुलाकात हुई और यहीं  नीव पड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल की दोस्ती की। लता मंगेशकर को जब दोनों की आर्थिक स्थिति के बारे में पता चला तब उन्होंने उस समय के दिग्गज कंपोजर नौशाद, एस डी बर्मन और सी रामचंद्र से दोनों को काम दिलाने की सिफारिश की । दोनों की उम्र और आर्थिक स्थिति की समानता ने उन्हें अच्छा दोस्त बना दिया और दोनों एक साथ काफी समय रिकॉर्डिंग स्टूडियो में बिताने लगे। समय के साथ दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो गई  थी कि दोनों एक- दूसरे के लिए काम ढूंढ-ढूंढ कर लाने लगे।धीरे -धीरे दोनों की आर्थिक स्थिति पहले के मुकाबले कुछ सुधर सी गयी थी, मगर प्यारे लाल को लगता था की उन्हें काम के बदले में जितना पैसा मिलता था वह जायज नहीं था। दोनों ने मद्रास जाने का फैसला लिया परन्तु वहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। साल 1950 में दोनों को आनंद जी-कल्याण जी के असिसटेंट के रूप में नौकरी मिल गयी और उन्होंने 13 साल तक उन्हें असिस्ट किया।इसके साथ ही लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल ने  एस डी बर्मन और आर डी बर्मन के लिए भी म्यूजिक अरेंज करने का भी काम किया। इस दौरान उनकी आर डी बर्मन से काफी अच्छी दोस्ती हो गयी।लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल को बॉलीवुड में पहला ब्रेक बतौर म्यूजिक कंपोजर साल 1963 में बाबू भाई मिस्त्री द्वारा निर्देशित फिल्म  ‘पारसमणि’ से मिला।इस फिल्म के सारे गाने को कंपोज किया लक्षीमान्त- प्यारे लाल की जोड़ी ने। महिपाल और गीतांजलि अभिनीत यह फिल्म जब रिलीज हुई तो फिल्म के साथ ही फिल्म के सभी गाने ब्लॉकबस्टर साबित हुए । इस फिल्म का एक गाना जो सबसे ज्यादा मशहूर हुआ और आज भी कई युवाओं की ज़ुबान पर है वह है ‘हँसता हुआ नूरानी चेहरा’। इसके साथ ही लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल की जोड़ी बॉलीवुड की मशहूर म्यूजिक कम्पोजर जोड़ी के रूप में बॉलीवुड में स्थापित हो गई और इसके बाद लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल जी ने मुड़कर पीछे नहीं देखा। फिल्म इंडस्ट्री में उनकी छवि ऐसी बन चुकी थी कि कम बजट में भी उस समय के स्टार प्लेबैक सिंगर भी उनके कम्पोजीशन को गाने के लिए हमेशा तैयार  रहते थे। फिर क्या था दोनों ने दिन-रात खूब मेहनत की और दोनों को इतनी कामयाबी मिली जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। दोनों ने मिलकर एक के बाद एक ब्लॉकबस्टर हिट म्यूजिक की जैसे झड़ी सी लगा दी। वह अपने म्यूजिक के दम पर फिल्म को हिट कराने वाले पहले बॉलीवुड के म्यूजिक डायरेक्टर बन चुके थे।बिना किसी बड़े स्टार कास्ट के भी फिल्मों में उनके द्वारा दिये म्यूजिक कंपोजिशन से फिल्में सुपरहिट होने लगी थी। यह कहना भी गलत नहीं होगा की फिल्म जगत के म्यूजिक टेस्ट को रेट्रो क्लासिकल से मोर्डर्न एरा तक लाने में इस जोड़ी का काफी बड़ा हाथ था। लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल  की जोड़ी लगातार ऐसे कम्पोजीशन तैयार कर रही थी,जो दर्शकों को दिलों को भा रही थी।

लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल के कम्पोजिशन का जादू उस दौर में इस कदर चला कि उस समय के  सुपरस्टार राजेश खन्ना ने अपनी 26 फिल्मों में  म्यूजिक डायरेक्टर के तौर पर लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल को   काम देने की सिफारिश की। दोनों ने मिलकर तकरीबन 300 से ज्यादा  फिल्मों में साथ काम किया। उनके द्वारा कंपोज किये गए कुछ मशहूर गानों में  ‘एक प्यार का नगमा है’, ‘ओ मनचली कहा चली’, ‘सलामत रहे दोस्ताना हमारा’, ‘दर्द ऐ दिल दर्द ऐ जिगर‘, ‘तेरे मेरे बीच में‘ ‘ये गलियाँ ये चौबारा‘ आदि शामिल हैं।इनकी बुलंदियों का अंदाज़ा इस बात से भी लग जाता है कि किशोर कुमार ने 402 गाने इनके लिए प्लेबैक किये वहीँ मोहम्मद रफ़ी ने 379 प्लेबैक किये। आशा भोंसले ने सबसे ज्यादा 494  गानों में उनके लिए प्लेबैक किया। लक्ष्मीकांत- प्यारे लाल अपने म्यूजिक कम्पोजिशंस से दर्शकों के दिलों में अपनी पहचान बना चुके थे इसी बीच साल 1998 में लक्ष्मीकांत को किडनी फेलियर की वजह से मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया और वह डायलिसिस पर थे। जहां  25 मई 1998 को 64 साल की उम्र में  लक्ष्मीकांत ने अंतिम सांस ली।  लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल की दोस्ती ऐसी थी की उनके देहांत के बाद प्यारे लाल ने कुछ गिनी-चुनी फिल्मों में म्यूजिक डायरेक्शन किया मगर नाम वहीं था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। उनके मरने के बाद भी प्यारे लाल ने इस नाम को नहीं छोड़ा जिस से उन्हें बुलंदियाँ मिली। प्यारे लाल ने आखिरी फिल्म फरहा खान द्वारा निर्देशित और बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान अभिनीत  ‘ओम शांति ओम’ में एक गाना कंपोज किया जिसके बोल थे ‘धूम ताना’ ।इस फिल्म के इस गाने के कम्पोजर के नाम से प्यारे लाल ने लक्ष्मीकांत का नाम नहीं हटाया । उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के नाम से ही कम्पोजिशन किया और उनके नाम को अमर रखा। इसके पीछे उन्होंने यही तर्क दिया था की लक्ष्मीकांत के बिना प्यारे लाल कुछ भी नहीं। उनकी यह दोस्ती हर किसी के लिए एक मिसाल है। आज भी लक्ष्मीकांत और प्यारे लाल के कंपोज किये गए गाने दर्शकों के बीच काफी पसंद किये जाते हैं। बॉलीवुड के इतिहास में यह जोड़ी सदैव अमर रहेगी और मनोरंजन जगत में दिए गए इनके संगीत के लिए मनोरंजन जगत सदैव इनका ऋणी रहेगा।

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