भगवान ने खुद स्व-मुख से कही गीता में ग्यारहवें अध्याय में अपने एश्वर्य का खजाना अर्जुन के सामने खोल दिया था। पृथ्वी पर किस किस चीज में वो विराजमान है यह बताया था। वैसे तो गीता के कथन के अनुसार हर जिव मात्र उसका अंश है। किंतु जिनमें वह स्वयं आकर बैठे है उन्हीं को हम याद करते है और उन्ही को नमन भी। क्योंकि बिजली तो हर बल्ब में होती है चाहे जीरो का हो या हाई वोल्टेज। जिसका जैसा अस्तित्व वैसा उसका प्रकाश फैलता है। वैसे ही ऐसे संत ऋषि मुनिओं मे भगवान खुद आकर बिराजमान होते है तभी तो सब उनकी बाते मानते है। उनकी दिखाई राह पर चलते है। हमारे देश में ऋषि मुनिओं ने हमेशा से नदियों के तट पर बसे लोगों में ज्यादा काम किया है।
ऋषि यानि भगवान की अंतर भक्ति और बाह्य भक्ति दोनों करने वाले। हमें तो सिर्फ बाह्य भक्ति ही पता है और वो भी केवल कर्म कांड ही। भक्ति की दो पांख है| एक है भाव भक्ति, और दूसरा कृति भक्ति। दोनों पंखों के बगेर पंखी उड़ ही नहीं सकता। इसी कारण हमारी भक्ति का फल हमें नहीं मिल पाता। हमारे जीवन का विकास संभव नहीं हो पाता। हजारों वर्ष भक्ति करने के बावजूद भी कोल्हू के बैल की तरह हम सिर्फ गोल-गोल घूमते ही रहते है और अन्त में हम जहां से चले थे वही आकर रुकते है। हमारे ऋषिओं ने यही तो काम किया है। समाज में जब जब निरर्थक और अर्थ हिन भक्ति का पलड़ा भारी होने लगने लगता है तब-तब भगवान ऐसे ही किसी न किसी रूप में इस धरा पर आ जाते है और बिगड़ी हुई बाजी को फिर से सवार के उसे सही दिशा की और मोड़ लेते है।
ऐसे ही गाधी राजा की पुत्री सत्यवती और ऋचीक ऋषि के पुत्र थे जमदग्नि। ऋचीक ऋषि ने तो सत्यवती और उनकी माता दोनों के लिए अलग-अलग दो धड़े मंत्र शक्ति से बनाए थे। किंतु सत्यवती की माता ने वो बदल दिए। शायद विधाता की यही नियति थी, इसी कारण गाधी राजा के यहा क्षात्र तेज की बजाय ब्राह्मण तेज से भरपूर ऐसे विश्वामित्र पैदा हुए और सत्यवती और ऋचीक जो ऋषि दंपति था उनके यहां क्षात्र तेज से परिपूर्ण ऐसे जमदग्नि पैदा हुए । जन्मातर के गुणों के कारण वो अपना कर्म अपने साथ लेके विकसीत बुद्धि के साथ आए हुए थे। आज भी हम देखते है ऐसे कई बालक जो जन्म के साथ कई विद्याओ में पारगंत होते है। जो अपने कर्मो के हिसाब से मिली हुई होती है।
वैसे तो हर जीव की यही चाह होती है उसे भी कोई बड़े घराने में जन्म मिले। किंतु यह सब कर्मो का खेल है। विधाता ने जो विधि के लेख लिखे है उससे तो स्वयं भगवान राम या कृष्ण भी बच नहीं सकते तो सामान्य जिव का तो क्या कहना। जमदग्नि जन्म से ही अग्नि की माफिक ज्वाला मुखी की तरह थे। जैसे अग्नि का काम है हर चीज को भष्म करना मतलब कुछ भी हो वह हर अच्छी या बुरी कोई वस्तु हो अगर अग्नि में गई तो वह उसकी तरह बन जाती है। उसका अस्तित्व ही नहीं रह पाता। वाई से ही जमदग्नि हमेशा धनुष्य के साथ ही रहते थे किंतु उनका प्रभाव ऐसा था की लोग तुरंत उनकी कही बातों में अपने आप को ढाल लेते थे।
जमदग्नि जन्म से ही धनुर विद्या सश्त्र विद्या में पारंगत थे। उनका असली नाम अन्वर्थक था किंतु वो तामस वृति के होने के कारण उन्हें जमदग्नि यानि अग्नि समान कहा जाने लगा। वैसे भी समाज में नाम को सार्थक करे ऐसे लोग बहुत कम ही होते है। उन्होंने नर्मदा के किनारे बहुत तप किया था। तप यानि लोगों का मानसिक परिवर्तन। समाज में लोगो के मन को सुदृढ़ बनाने का काम। आज जरा-जरा सी बात पर हमारा मन मर जाता है। ऐसा मरा हुआ मन किसी काम के काबिल नहीं रह पाता। मन को अगर मजबूत करना है तो उसे उसका खाना दो यानि वेद और उपनिषद की तेजस्वी बातें। यह उसे हर रोज नहीं चाहिए किंतु हप्ते में एक बार मिले तो भी उसके लिए काफी है। इसी कारण हमारे संत महापुरुषों ने हमें घर में ही सुबह शाम घर पूजा का महत्व बताया। जब की पढ़े लिखे लोग उसे योग या मेडिटेशन कहते है। बात तो एक ही है। मन अगर मजबूत होगा तो किसी भी संकट का वो सामना कर सकेगा। यही काम, और ऐसा ही तप समाज में ऋषियोने किया है।
इक्ष्वाकु कुल की राज कन्या रेणुका खुद भी इतनी ही तेजस्वी और सौन्दर्यवान थी पर उसने बाह्य सुंदरता और वैभव देख किसी राजकुमार से शादी नहीं की किंतु आश्रम में रहने वाले जमदग्नि को अपने पति के रूप में स्वीकार कर महल छोड़ जंगलो में आ गई। रेणुका और जमदग्नि दोनों ही तेजस्वी और बुद्धिमान थे। दोनों ने साथ मिलकर समाज को ऊँचा उठाने के लिए बहुत परिश्रम किया। और एक सात्विक समाज बनाया। उनके पांच बालक थे उनमें से एक यानि का अवतार ऐसे परशुराम थे। जो हमेशा परशु के साथ ही घूमते थे। जिनके बारे में हम सब जानते ही है।
रेणुका और जमदग्नि के बारे में एक दंत कथा है की, रेणुका जंगल से गुजर रही थी तो उन्हें सूर्य के प्रखर ताप के कारण उनके पाव जल गए और वो सुकुमल राजकुमारी वह ताप सहन न कर सकी। तब जमदग्नि ने उनके लिए पृथ्वी पर चलने के लिए और सूर्य के प्रखर ताप और अग्नि से बचने के लिए उनके लिए पैरो में चप्पल और सर पर छाते की शोध की। वो इस धरा पर यह शोध करने वाले उसके फाउन्डर थे, जिन्होंने चप्पल और छाते की शोध की हो। बात दरअसल यह थी की, जब भी वक्त मिलता जमदग्नि धनुर्विद्या से बान चलाते वो बान किस दिशा में और कहा चलाये इस के लिए रेणुका उन्हें निशान बना देती। जमदग्नि बान चलाते और वो लेने के लिए रेणुका जंगलो में जाती तब सूर्य की गर्मी से वह काली हो जाती और उनके पाव जख्मी हो जाते इसका उपाय करने हेतु जमदग्नि ने यह शोध की ताकि वह अपनी पत्नी को सामान्य सुकून दे सके। क्योंकि वो थी तो राजकुमारी। ऐसा था उनका दामपत्य जीवन। जिसमें भी हर पति पत्नी की तरह वाद विवाद होते रहते थे किंतु वे अपने कर्तव्य पथ से कभी च्युत नहीं हुए न ही उन्होंने अपना मार्ग बदला। तभी तो ऐसे ऋषि पति-पत्नियों को हम हमारा आदर्श मानते है।