सनातन धर्म के अनुसार इस धरा की पहली संतान अर्थात प्रथम पुरुष यानि “मनु” महाराज थे। शायद इसीलिए उनकी संतानोत्पत्ति को मानव कहा जाता है। इसी कहानी को दूसरी भाषा में आदम और ईवा कहते है। यानि इस धरती पर भगवान द्वारा बनाए गए पहले स्त्री और पुरुष। जैसे धरती का प्रलय एक मन्वंतर के बाद होता है। वैसे आज से हजारों साल पहले भी आज के जैसी ही स्थिति थी। अभी भागवद के कथन अनुसार वैवस्यत मन्वंतर चल रहा है। उस वक्त चाक्षुस मन्वंतर के आखिरी दिन चल रहे थे। कुदरत कोपायमान थी। सभी ऋतुएं बिन मौसम के ही चल रही थी। शायद निसर्ग को भी लगने लगा था की, प्रभु ने कितनी महेनत करके मानव और पशु पक्षीओं की रचना की, इतनी सुंदर सृष्टि बनाई लेकिन मानव कृतघ्नी बन गया है। यानि वो दूसरों के उपकारो को भूलने लगा है। यहाँ तक की भगवान को भी छलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। उससे भी सौदे बाजी करने लगा है। मुझे यह 1 लाख की लोटरी लगा दो मैं तुझे 10 रूपये का प्रसाद चढाऊंगा। वो इतनी बात अपने दिमाग में नहीं ला सकता है की जो भगवान उसे 1 लाख की लोटरी लगा सकता है वो उसके 10 रूपये के प्रसाद का भूखा है। किंतु इंसान जहां अपनी सोच ही खो बैठता है और सिर्फ फायदा ही सभी जगह देखने लगता है तब यही परिस्थिती बन जाती है।
निसर्ग और भगवान अविरंत महेनत कर सब ठीक करने की कोशिश में लगे रहते है, और इंसान है की, उसी भगवान से मिली शक्ति, बुद्धि अपने या दूसरों के काम आय ये सोचना तो दूर उसका विनाश कैसे हो उसी में लगा है। और शक्ति के जोर पर भगवान कहा है? अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा 0करने में जुटा हुआ है। जब सब्र का बांध टूट जाता है तब अगर इंसान भी अपने आप से बेकाबू हो जाता है, तो जब कुदरत का सब्र का बांध अगर टूट जाये तो विनाश ही होता है। ऐसे में भगवान और निसर्ग उसकी धरोहर को संजो के रखनेवाला कोन है उसीकी खोज में रहते है और जब ऐसे बंदे मिल जाए तो फिर अपना सब कुछ उसके हवाले क्र देते है। उस वक्त वो बंदा था “मनु “। जिसको भगवान ये जिम्मेदारी सौंपी थी। पृथ्वी की धरोहर बचाने प्रलय और मत्स्यिकी बात हमने सुनी है। लेकिन उसके बाद भी जब नए सिरे से उन्होंने शुरुआत की तब भी उस वक्त के आधुनिक राक्षस उनके कार्य में हड्डिया डालने आ गए थे।
जब भी समाज में कोई अच्छा काम शुरू होता है तो इंसान अकेला ही होता है। धीरे-धीरे उसमें कारवा जुड़ता जाता है। वैसे ही मनु महाराज ने जब शुरुआत की तो वो अकेले ही थे, उनका साथ कोई नहीं दे रहा था। वो घर-घर लोगों के पास जाते उन्हें जीने का तरीका सिखाते। भगवान को याद क्यों करना है, क्यों उसका शुक्रिया अदा करना है? यह सारी बाते समझाते। जब कोई इंसान सच्चे मन से भगवद कार्य करता है, ब्रह्म का काम करने लगता है तब वो भी उसकी सहायतार्थ अनुरूप वातावरण बनाने लगता है। धीरे-धीरे लोग उनकी बात मानने लगे \ भगवान का शुक्रिया अदा करने लगे। लोगों के जीवन सात्विक होने लगे और दुष-विचार उनसे दूर जाने लगे। लेकिन समाज के ठेकेदारों को यह बात कहा हजम होने वाली थी। उन्होंने देखा समाज में सात्विकता बढने लगेगी तो उनको पूछेगा कोण? उनकी इज्जत करेगा कोण? अगर यह प्रस्थापित करना है तो मनु महाराज का वर्चस्व समाज में कम करना पड़ेगा। सीधे रास्ते से वो हरा नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने अलग रास्ता अपनाया। क्योंकि जनमानस में मनु महाराज की छबी को धुंधली करना इतना आसान नहीं था।
मनु महाराज जब भी गंगा किनारे बसे लोगों को समझाने जाते थक हार के जब वो नदी किनारे एक वृक्ष के निचे बैठे आराम करने बैठे तब एक त्रैलोक्य सुंदरी उनके पास आई और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। मनु महाराज को भी लगा लोगों के बीच जाना है अगर कोई साथ हो तो आसानी भी रहेगी और थकावट भी कम होगी। काम भी बट जायेगा। उस सुंदरी का नाम था मनाली। शायद यह विश्व का पहला विवाह था। मनु महाराज और मनाली का। उनका दाम्पत्य जीवन सुंदर चल रहा था। उनके खेत के लिए एक सुंदर ऐसा बैल था। कहते है उसके श्वाशों श्वास से भी सद्विचार निकलते थे। और पत्नी भी उनके अनुरूप धर्म कार्य में लगी हुई थी। वे दोनों समाज के उद्विग्न लोगों के पास जाते उन्हें समझाते और उन्हें धर्म, वेद की बाते समझाते और मनुष्य के धर्म और उसके आचरण के बारे में समझाते। आज अपने घर में आप अपने सोफे की दिशा भी अपनी मर्जी से नहीं बदल सकते वह समाज में इतने लोगों को इतनी कठिन बाते समझाना कितना कठिन है यह समझ सकते है। आप अपने टिन एज बच्चे का हेयर स्टाइल को चेंज करके देख लो पता चल जायेगा उसमे कितनी महेनत लगती है। ये समाज के लोगो को अच्छी बाते समझाने और उन्हें बदलने की बात थी। यही सच्चा धर्म का काम है। जो आज कल खुद को धर्माचार्य मामने वाले आश्रम में बैठे बैठे करना चाहते है जो कभी नहीं हो सकता। हमारे ऋषि मुनिओ ने यह कभी नहीं किया है। दुसरो को बदलने के लिए पहले खुद को बहुत कुछ त्यागना पड़ता है।
समाज के ठेकेदारो ने जब ऐसा प्रभाव मनु महाराज का देखा तो उन्हें मत्सर हो गया। जिसके चलते उन्होंने मनु महाराज को बुलाया और कहा हम भी समाज की भलाई के लिए एक यज्ञ करना चाहते है उसके यजमान आप बनिए। समाज की भलाई के लिए उन्होंने हामी भर दी। आखिर वो तो समाज का भला ही तो चाहते थे। उन्होंने उनके साथ मिलकर यज्ञ शुरू किया। लेकिन वो चालाक लोगों ने यज्ञ में बलि के बहाने उनके प्रिय ऐसे बैल की बलि चढ़ा दी। उन्होंने समाज की भलाई की खातिर उसकी बलि चढ़ा दी। इतने से उन लोगो की संतुष्टि नहीं हुई। तब उन्होंने कहा अब यज्ञ का आखिरी हवन है और इसमें आपके प्रिय पात्र की बलि चढ़ानी है, और उन्होंने सब की खातिर अपनी प्रिय पत्नी मनाली की यज्ञ में बलि चढ़ा दी।
लेकिन बलि देते वक्त कुदरत से भी यह सहन नहीं हुआ, और यज्ञ में जितने भी बर्तन वगेरे थे वो इतनी जोर से धरा हिलने की वजह से, आवाज करने लगे की और तब से यज्ञ में बलि देते वक्त जो जोर से थाली या घंटा बजता है उसकी प्रथा आ गई। लेकिन यहाँ नजारा तो कुछ और था। और उसके बाद कुदरत का सब्र का बांध टूट गया। उसे लगा यह सब इंसान अब इस धरा पर बोज बन गए है और अंत मे प्रलय हो गया। और धरती को बचाने के लिए जो भी जरुरी बाते थी वो लेके मनु महाराज नाव में बैठ गए जिसे मछली ने तुफानो से खिंच के समुदर से निकाल के इक नई धरा पे लेक कड़ी कर दी। और एक नए युग की शुरुआत मनु महाराज ने कर दी। उन्होंने जो भी बाते लोगो को समाजाइ थी उसे मनुस्मृति के नाम से जाना जाता है। मनु की संतानों को मानव के नामसे। जिन्होंने मानव जाती को बचाने के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया ऐसे आदि मानव मनु महाराज को सतश: प्रणाम।