परित्रणाय साधूनां विनाशाय च दुस्क्रुताम्।
धर्म संस्थाप्नार्थय संभवामि युगे युगे।। (गीता 4/8)
भगवान ने गीता में खुद यह बात कही है, की इस मेरी बनाई इस धरा पर जब जब असत्य और अंधकार का युग आएगा तब तब मै, उस बादल को छाटने इस भूमि तल पर अवतार लेके आऊंगा और पृथ्वी की रक्षा करूँगा।
अपने इसी वचन को निभाने वाले भगवान ने दश दश अवतार धारण कर इस धरा पर आए और हर बार दुष्प्रभावों का नाश कर फिर से इस रस हिन् धरा को रसवंती बनाने का भगीरथ कार्य किया है।
इन सब के बिच यह बात भी सोचने वाली है की, हर बार भगवान को क्यों आना पड़ता है! अरे एक सामान्य सी बात है अगर कोई साइंटिस्ट कोई प्रयोग करना चाहता है तो, उसे अपनी लेब में उसके अनुकूल वातावरण बनाना पड़ता है। तब जाके वो टेस्टिंग बन पाती है। पूरे भूतल पर एक भारत ही ऐसी भूमि है जहा सभी प्रकार के मौसम अपने नियत समयावधि पर ही होते है। तीनो ऋतुएं अपने समय पर आती है यानि गर्मी, बारिस और ठंड। यहा पर बहती बहोत सी नदिया इस देश को सुजलाम सुफलाम करती है। प्रकृति ने भी अपना पंख यहा फैलाया हुआ है। यहा सभी धर्म और जाती के लोग एक साथ मिल जुल के रहते है। इतना ही नही कोई भी भारतीय पूरी दुनिया में कहा भी रहे वो वहा एक छोटा सा भारत खड़ा कर देता है। क्योंकि भाईचारा, इंसानियत, धर्म, मानवता, खानपान, फेमिली यह सब भारत की रग रग में है। जिसके लिए पूरी दुनिया तरसती रहती है। जो भारत ने पुरे विश्व को शिखाई है। इसी कारण भारत में ही भगवान ने दस अवतार लिए है।
भगवान का पहला अवतार मत्स्य अवतार कहा जाता है। कहते है ब्रह्मांड की उत्पति ब्रह्मा के मुंह से हुई और उनमे से वेदों का ज्ञान भी साथ में निकल गया। उसे उस समय के बहुत ही ताकतवर ऐसे हयग्रीव नामक राक्षस ने चुरा के उसे निगल गया। तब उसे वापस लाने के लिए भगवान को मछली का रूप धारण करना पड़ा। और वह मछली उस वक्त के पहले माने हुए राजा सत्यव्रत मनु के सामने समुद्र में उनके कमंडल में आ गए। और समुद्र के दुसरे विशालकाय जिवो से अपने प्राणों की रक्षा हेतु उन्होंने मनुसे भिक्षा मांगी। मनु उसे अपने साथ घर लाए। धीरे धीरे मछली का कद बढने लगा और इतना बढ़ गया की उसे वापस उस समुद्र में लाके छोड़ना पड़ा। उसे जैसे ही समुद्र में छोड़ा तो उसने मनु से कहा आज से सातवे दिन इस धरा पर प्रलय आएगा और सब कुछ नष्ट हो जाएगा। आप इस भू तल की सभी महत्वपूर्ण चिजो को एक एक कर अपने साथ ले लेना मै आपको बचाने आउंगी।
सात दिन बाद सत्यव्रत मनु सभी जडीबुटीया, बीज, पशु और स्प्त्रशिके साथ नाव में बैठ गए जिसे उस मछली ने खिंच कर उस प्रलय से बचाया। और उस हयग्रीव राक्षस का वध कर वेदों को बचा के ब्रह्मा को वापस दे दिया।
अब अगर सोचा जाए तो वेदों की सारी वाते रूपक के रुपमे कही हुई होती है। जिसे अपनी बुद्धि से उस रूपक का पडदा दूर करने की क्षमता हर किसी में नहीं होती। वैसे तो हम हर जगह अपनी चोंच घुसाते रहते है लेकिन कब कहा कितनी डालनी है उसकी सही समज भी होनी चाहिए।
लेकिन मानव सहज स्वभाव है वो अपना दिमाग उसी में लगाएगा जिसमे उसे फायदा दिखता हो। लेकिन जरूरी नहीं की हर फायदा पैसे में ही हो। अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा परिवार, अछि संगत यह सब किस्मत से मिलता है। वो किस्मत ही हमारे कर्म तय करते है। कहते है जो बात मुझे इश्वर के समीप ले जाने का काम करती है वो हर बात अछि और सच्छी होती है। शायद यही बात हमारे वेद के माध्यम से भगवान हमें समझाने की कोशिश कर रहे है।
जरुरी नहीं है की हर बार भगवान इंसान के रूप में ही हमारे सामने आए। वो कोई भी जीव के संदर्भ से हमारे आसपास आ भी सकते है और रह भी सकते है। बस हमें उन्हें जानने की समझने की बुद्धि विकसित करनी होगी।
वैसे हम कहते भी है ना की अपना काम अगर सही ऊँगली से नहीं निकल पाता है तो, ऊँगली टेढ़ी करके निकल लो। जो सामान्य जीवन में है वो ही भक्ति में है। वो ही बात भगवान को पाने में भी है। उसके लिए कोई रोकेट सायंस की जरूरत नहीं है। अगर आप अपने जीवन में सभी बातों को सही तरीके से हैंडल करना सिख गए तो, भगवान को पाने में भी आपको ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। शायद यही बात समझाने के लिए भगवान ने अपने पहले के अवतार मानव रहित अवतारों में लिए है।