भारतीय सिनेमा को बुलंदियों पर पहुंचाने का श्रेय जिन फिल्मी हस्तियों को जाता हैं, उनमें राजकपूर साहब का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता हैं। राज कपूर आज हमारे बीच नहीं है। 2 जून, 1988 को फिल्म इंडस्ट्री के इस अनमोल रत्न का निधन हो गया था।
लेकिन जाते -जाते इस अभिनेता ने न सिर्फ फिल्म जगत को बुलंदियों के आसमान पर पहुंचाया बल्कि हिंदी सिनेमा को अनगिनत अनमोल फिल्में और रणधीर कपूर, दिवंगत ऋषि कपूर और राजीव कपूर के रूप में वह रत्न दिए,जिन्होंने उनके नाम को आगे बढ़ाया।हिंदी सिनेमा में शोमैन के नाम से मशहूर दिवंगत अभिनेता राज कपूर न सिर्फ एक अभिनेता बल्कि एक सफल निर्माता और निर्देशक भी थे।14 दिसंबर, 1929 को पेशावर (पकिस्तान) में जन्मे राज कपूर ने अभिनेता पिता पृथ्वीराज कपूर के नक्शे कदम पर चलते हुए फिल्मों को ही अपना करियर चुना और आगे चलकर फिल्म जगत में शोमैन, भारतीय सिनेमा का महान् शोमैन, भारतीय सिनेमा का चार्ली चैप्लिन, राज साहब आदि नामों से विख्यात हुए।राज कपूर का पूरा नाम रणबीर राज कपूर था।
साल 1930 में नन्हे से राज कपूर अपने पिता और परिवार के साथ मुंबई आये थे।इस समय तक उनके पिता पृथ्वीराज कपूर भारतीय सिनेमा का बड़ा और चहेता नाम बन चुके थे।मुंबई आने के बाद राजकपूर ने अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत की।कहा जाता है राज कपूर साहब को पढ़ाई में ज्यादा रूचि नहीं थी,लेकिन इसके बावजूद उनके पिता पृथ्वीराज कपूर का मानना था कि उनका बेटा एक दिन उनका नाम रौशन करेगा।उन्होंने राज कपूर को जिंदगी का एक मन्त्र देते हुए कहा-‘बेटा राजू नीचे से शुरुआत करोगे तो एक दिन ऊपर तक जाओगे और हुआ भी यही।दरअसल पृथ्वीराज कपूर चाहते थे कि उनका बेटा राजकपूर फिल्म जगत के हर पहलु हर काम को बारीकी से सीखे।इसके बाद छोटी उम्र में ही राज कपूर ने बॉम्बे स्टूडियो में बेझिझक हेल्पर और क्लैपर बॉय के रूप में काम करना शुरू कर दिया।जल्द ही वह दौर भी आया जब राज कपूर साहब की किस्मत बदली और साल 1935 में आई फिल्म ‘इंकलाब’ में बतौर बाल कलाकार उन्हें अभिनय करने का मौका मिला।इसके बाद साल 1943 में आई फिल्म ‘गौरी’ में राज कपूर को पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ काम करने का मौका मिला।
साल 1946 में राजकपूर की शादी कृष्णा मल्होत्रा से हुई,जिसे उनके परिवार वालों ने उनके लिए पसंद किया था।जिससे उनके पांच बच्चे तीन बेटा रणधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर एवं दो बेटी ऋतु नंदा और रीमा जैन हुई।इस दौरान राज कपूर फिल्म जगत में खुद को अपनी मेहनत की बदौलत स्थापित करने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे थे। साल 1947 में केदार शर्मा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘नीलकमल’ में राज कपूर पहली बार मुख्य भूमिका में नजर आये।इस फिल्म में उनके अपोजिट ख़ूबसूरत अदाकारा मधुबाला नजर आई।साल 1948 में राज कपूर ने प्रोडक्शन स्टूडियो ‘आर के फिल्म्स’ की शुरुआत की और इसके बैनर तले बनी पहली फिल्म थी ‘आग’। इस फिल्म से राजकपूर ने अभिनय के साथ -साथ फिल्म निर्माण एवं निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। इस फिल्म में राज कपूर के साथ नरगिस मुख्य भूमिका में थी,लेकिन दुर्भाग्य से यह फिल्म बुरी तरह असफल रही और इसका असर राज कपूर की छवि पर भी पड़ा।
हालांकि इन सब के बावजूद राजकपूर ने हार नहीं मानी और इसके ठीक एक साल बाद साल 1949 में फिल्म ‘बरसात’ में राजकपूर अभिनेता के साथ-साथ निर्माता-निर्देशक के रूप में भी पुनः उपस्थित हुए।इस फिल्म में उनकी जोड़ी पुनः नरगिस के साथ दिखी।दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म से जुड़े ज्यादातर कलाकार, संगीतकार, गीतकार, टेक्निशयन आदि नए थे।बावजूद इसके बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म लोगों की अपेक्षाओं के विपरीत सफल हुई।चूँकि फिल्म ‘आग’ की असफलता के बाद किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि यह फिल्म हिट भी होगी ,लेकिन इस फिल्म ने सफलता का नया मानदंड तैयार किया और फिल्म के सभी कलाकारों को पहचान दिलाई।’बरसात’ की सफलता के साथ ही राजकपूर की बिगड़ी हुई छवि भी सुधरी।इसके बाद उनके पास कई फिल्मों की लाइन लग गई। हर कोई राजकपूर को अपनी फिल्म में नायक की भूमिका में लेना चाहता था।
साल 1950 में राज कपूर की छह फिल्में प्रदर्शित हुई और सभी सफल रही।साल 1951 में राज कपूर ने फिल्म ‘आवारा’ निर्देशित की जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई।इस फिल्म ने राजकपूर को नायक के रूप में जहां नई पहचान दी।वहीं इस फिल्म ने उन्हें एक अच्छे निर्देशक के रूप में भी पहचान दिलाई। साल 1956 में आई फिल्म ‘जागते रहो’ राजकपूर अभिनीत एक महान फिल्म थी। इस फिल्म को कार्लोरीवेरी अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ‘ग्रैंड प्रीं’ पुरस्कार मिला। उस समय तक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भारतीय फिल्म को इतना बड़ा पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ था। इसके बाद साल 1970 आई फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ राज कपूर की सबसे महत्वकांक्षी फिल्म मानी जाती है,लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही।इसके साथ ही यह फिल्म बतौर मुख्य भूमिका राज कपूर की आखिरी फिल्म थी।इसके बाद वह पहली बार आर॰के॰ फिल्म्स के ही बैनर तले निर्मित ‘कल आज और कल’ में चरित्र अभिनेता के रूप में प्रस्तुत हुए। इसके निर्देशक थे उन्हीं के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर।
साल 1973 में राजकपूर ने पुनः स्वनिर्मित फिल्म ‘बॉबी’ बनाई।इस फिल्म में राज कपूर के छोटे बेटे ऋषि कपूर मुख्य भूमिका में थे।यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही और व्यवसायिक सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।इसी के साथ इस फिल्म ने राजकपूर को इंडस्ट्री का सबसे सफल निर्माता-निर्देशक साबित किया ,जो कभी भी असफलता और कठिनाइयों से नहीं घबराया।एक अभिनेता के तौर पर राजकपूर ने जहां अंदाज, बरसात, सरगम, बूट पोलिश, श्री 420 , आवारा,सरगम आदि शामिल हैं।वहीं एक निर्माता -निर्देशक के तौर पर उनकी प्रमुख फिल्मों में बरसात, आवारा,श्री 420 , बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली आदि शामिल हैं।राजकपूर ने उस दौर में अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली थी।
उन्होंने हिंदी सिनेमा को न सिर्फ अच्छी , यादगार और अनमोल फिल्में दी ,अपितु हिंदी सिनेमा को सफलता के चरमोत्कर्ष पर भी पहुंचाया।इसके साथ ही उन्होंने फिल्मों में प्रेम की नई परिभाषा भी गढ़ी। राजकपूर को उनकी शानदार फिल्मों के लिए 11 फिल्मफेयर पुरस्कार और तीन तीन नेशनल फिल्म अवार्ड से पुरस्कृत किया गया।इसके अलावा फिल्मों में उनके शानदार योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पद्मभूषण और साल 1987 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।दादा साहेब फाल्के अवार्ड सामारोह के दौरान राजकपूर की तबियत बिगड़ गई,जिसके बाद वह लगभग 1 महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे।
2 जून, 1988 को फिल्म जगत के इस महान रत्न का 63 साल की उम्र में निधन हो गया।वह अस्थमा से पीड़ित थे।राजकपूर तो नहीं रहे, लेकिन उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में जो ख्याति प्राप्त की और भारतीय सिनेमा में जो योगदान दिया उसके बाद कपूर खानदान का नाम आज भी आदर और सम्मान के साथ लिया जाता हैं।राज कपूर ने जाते -जाते फिल्म जगत को रणधीर कपूर, दिवंगत ऋषि कपूर और राजीव कपूर के रूप में वह रत्न दिए,जिन्होंने उनके नाम को आगे बढ़ाया।भारतीय सिनेमा में कपूर खानदान का नाम आज भी आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।