47. प्रणब मुखर्जी
(11 दिसंबर 1935 – 31 अगस्त 2020) भारत रत्न- 2019
प्रणब दा के जीवन में 13 का अलग ही रोल रहा है| वे भारत के 13वें राष्ट्रीय बने थे. दिल्ली में उनके पास जो बंगला था उसका नंबर 13 था| प्रणब मुखर्जी की शादी की सालगिरह भी 13 तारीख को होती है| 13 अंक उनके जीवन में बहुत महत्व रखता था| 11 दिसंबर 1935 को बंगाल के बीरभूम इलाके के मिराटी में जन्मे प्रणब मुखर्जी के बचपन का नाम पोल्टू था| प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले के मिराती नामक गांव में श्री कामदा किंकर मुखर्जी और श्रीमति राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर में हुआ। उनके पिता श्री कामदा किंकर मुखर्जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सदस्य भी रहे। साल 1952 से 1964 तक प्रणब के पिता कामदा पश्चिम बंगाल विधानपरिषद के सदस्य भी रहे। प्रणब मुखर्जी ने वीरभूमि जिले के सुरी विद्यासागर कॉलेज से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर (M.A) और विधि (L.L.B) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
प्रणब मुखर्जी 13 जुलाई, 1957 को सुब्रा मुखर्जी के साथ परिणय सूत्र में बंधे, जो बांग्लादेश में स्थित नरायल की रहने वाले थीं और 10 वर्ष की उम्र में अपने परिवार के साथ तत्कालीन कोलकाता जो अब कलकत्ता के नाम से जाना जाता है, आई थीं। इन दोनों के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। पुत्रों का नाम है अभिषेक मुखर्जी और अभिजीत मुखर्जी । पुत्री का नाम है शर्मिष्ठा मुखर्जी । प्रणब मुखर्जी को राजनीतिक हलके में प्यार से लोग प्रणब दा के नाम से बुलाते हैं। प्रणब दा सक्रीय राजनीति में रहते हुए भी हर साल दुर्गा पूजा के अवसर पर अपने गांव मिराती जरूर जाते रहे हैं। उन्हें पाइप पीना, डायरी लिखना, खूब किताबे पढना, बागवानी करना और संगीत सुनना बेहद पसंद है।
प्रणब मुखर्जी का राजनीति में आने से पहले का जीवन में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद प्रणब मुखर्जी कलकत्ते में ही पोस्ट एंड टेलिग्राफ विभाग में डेप्युटी अकाउंटेंट जनरल के पद पर नियुक्त थे। वह इस विभाग में अपर डिविजन क्लर्क थे। प्रणब दा ने 1963 में पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में स्थित विद्यानगर कॉलेज में कुछ समय के लिए राजनीति शास्त्र भी पढ़ाया। उन्होंने कुछ समय के लिए ‘देशेर डाक’ नामक समाचार पत्र में पत्रकार की भूमिका भी निभाई।
प्रणब मुखर्जी का राजनीति से पहला वास्ता तब पड़ा जब उन्होंने 1969 में मिदनापुर उपचुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदावर के तौर पर खड़े वीके कृष्ण मेनन के लिए चुनाव प्रचार किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस उपचुनाव में प्रणब मुखर्जी के चुनावी रणनीतिक कौशल से बहुत ज्यादा प्रभावित हुईं और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का सदस्य बना दिया। इसी साल जुलाई में प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस ने राज्यसभा भेज दिया। और इस तरह प्रणब मुखर्जी का राजनीति में औपचारिक रूप से प्रवेश हुआ।
प्रणब दा साल 1969 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर पहली बार उच्च सदन यानी राज्यसभा पहुंचे। फरवरी 1973 से जनवरी 1974 तक वह ‘इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट मिनिस्टर’ रहे। जनवरी 1974 से अक्टूबर 1974 तक वह ‘शिपिंग एंड ट्रांस्पोर्ट मिनिस्टर’ रहे। अक्टूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वह ‘वित्त राज्य मंत्री’ रहे। जुलाई 1975 में वह दूसरी बार राज्यसभा के लिए चयनित हुए। दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक वह ‘रेवेन्यू एंड बैंकिंग मंत्रालय’ में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के तौर पर जुड़े रहे। साल 1978 से 1980 तक वह राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के उप नेता रहे।
प्रणब दा 27 जनवरी 1978 से 18 जनवरी 1986 और 10 अगस्त 1997 से 25 जून 2012 तक कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य रहे। वह 1978 से 1979 तक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमिटी के ट्रेजरर। साल 1978 से 1986 तक वह अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमिटी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य रहे। जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वह ‘स्टील एंड माइंस एंड कॉमर्स’ मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री रहे। साल 1980 से 1985 तक वह राज्यसभा में सदन के नेता रहे। अगस्त 1981 में वह तीसरी बार राज्यसभा सदस्य बने। वह 1984, 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की कैम्पेन कमिटी के चेयरमैन रहे।
साल 1985 और अगस्त 2000 से जून 2010 तक प्रणब मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने जून 1991 से 196 तक तब के ‘योजना आयोग’ जो अब ‘नीति आयोग’ के नाम से जाना जाता है के डेप्युटी चेयरमैन रहे। वह 1993 में चौथी बार राज्यसभा के सदस्य बने। फरवरी 1995 से मई 1996 तक वह भारत के विदेशी मंत्री रहे। साल 1996 से 2004 तक वह राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रहे। साल 1999 में वह पांचवीं बार राज्यसभा के लिए चुने गए। प्रणब दा साल 2004 में पहली बार पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय सीट से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे और जून 2012 तक सदन के नेता रहे। वह 23 मई 2004 से 24 अक्टूबर 2006 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
महापुरुषों का जीवन सदा प्रेरणादायी, आदर्श आचरण से मंडित होता है। समाज वस्तुतः किन्ही ऐसे महानुभावों के पथ-प्रदर्शन में ही सुख एवं समृद्धि को प्राप्त होता है, जो समष्टि से ऊपर उठकर समष्टि के हित सम्पादन में रत होते हैं। स्वार्थी तो सभी होते हैं परन्तु इतिहास उन महापुरुषों को याद करता है, जो परमार्थ में आकंठ डूबे होते हैं तथा सच्चरित्र की मिसाल बनते हैं।
प्रणव मुखर्जी का राष्ट्रपति पद पद सुशोभित होना और फिर भारत रत्न से सम्मानित होना, भारतीय इतिहास का रोचक एवं महत्वपूर्ण प्रसंग । चार दशक से अधिक राजनीति में सक्रिय रहने वाले बंगाली मोशाय ने अपने सदव्यवहार, सहिष्णुता बन्धुत्व एवं विद्वता से सभी का मन जीता है। क्या यह विलक्षण बात नहीं है कि विपक्ष के दिग्गजों ने भी प्रणव बाबू की भूरि-भूरि प्रशंसा की है तथा पार्टी लाइन से बाहर निकलकर उन्हें अपना वोट भी दिया है। भारतीय राजनीति को दिशा देने वाले प्रणव किसी भी विभाग में रहे हों, उन्होंने प्राणपन से अपने पद की गरिमा को बनाए रखा है। अब राष्ट्रपति बनकर उनका अपना कद तो बढ़ा ही है, देश का स्वाभिमान भी गौरवान्वित हुआ है।
राष्ट्रपति संविधान का उच्चतम गौरव है। भारत का प्रथम नागरिक …… संविधान का संरक्षण… दायित्व बहुत बड़ा है। इनका जीवनवृत्त प्रेरणा का अक्षय स्रोत है।
प्रणब दा 25 अक्टूबर 2006 से 23 मई 2009 तक भारत के विदेश मंत्री रहे। 24 जनवरी 2009 से मई 2012 तक वह देश के वित्त मंत्री भी रहे। 20 मई 2009 को वह जंगीपुर संसदीय सीट से ही 15वीं लोकसभा के लिए दूसरी बार चुने गए। प्रणब दा ने 25 जून 2012 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और 2012 से 2017 तक भारत के 13वीं राष्ट्रपति रहे। इस प्रकार राष्ट्रपति बनने के साथ ही प्रणब दा का लगभग 45 वर्ष लंबे राजनीतिक करियर पर विराम लगा। वर्तमान में वह देश के विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में अतिथि शिक्षक के रूप में जाते हैं और छात्रों से रूबरू होते हैं।