पृथ्वी राज चौहान

(1166-1192)
हिन्दूसम्राट, भारत का शेर, दरियादिल, दल पुंगल (विश्व विजेता), रायपिथौरा, पृथ्वी राज तृतीय – ये सभी नाम वीर और शक्तिशाली सम्राट पृथ्वी राज चौहान के हैं। इन्होंने हेरात एवं गजनी के शासक मोहम्मद गोरी को 17 बार पराजित किया था। पृथ्वी राज भारत के अंतिम हिन्दू राजा थे। कहते हैं पृथ्वी राज ने एक बार अकेले ही बिना शस्त्र के शेर को मार डाला था। इन्होंने दो राज्यों अजमेर और दिल्ली पर शासन किया। अजमेर का राज्य उन्हें उनके पिता से प्राप्त हुआ था और दिल्ली का राज्य उन्हें तोमर वंश के अनंगपाल से प्राप्त हुआ था जो इनके नाना भी थे। उनका राज्य अजमेर, नागौर, सांभर, पाली, जालोर, नाडोल एवं रणथंबौर से लेकर दिल्ली, हांसी, तराइन, भटिंडा और सियालकोट तक विकसित था। जयचंद और पृथ्वी राज मौसेरे भाई थे। जयचंद के बजाए पृथ्वी राज को दिल्ली का राज्य मिलने पर जयचंद पृथ्वी राज से इर्ष्या करने लगा।
भण्डाणक जाति मूल रूप से सतलज के क्षेत्र की थी। गुड़गांव (आज गुरुग्राम), हिसार, अलवर, मथुरा, भरतपुर पर इनका प्रभाव समाप्त करने के लिए पृथ्वी राज ने 1182 में भंडाणकों के साथ युद्ध कर उनको पराजित किया। इसका उल्लेख जिनपाल द्वारा लिखी पुस्तक ‘‘खतर गच्छ की पट्टावली’’ में मिलता है। इन्होंने 1182 में परमार्दिदेव चंदेल पर आक्रमण कर महोबा (उत्तर प्रदेश) को भी जीता।
पृथ्वी राज चौहान का जन्म सन् 1166 में अनहिलवाड़ा या अनहिलपाटन में (उस समय गुजरात की राजधानी) में हुआ था। इनके पिता ने 1169 से 1177 तक अजमेर में शासन किया। इनकी माता का नाम कर्पूरी देवी था। पृथ्वी राज के छोटे भाई का नाम हरिराज और बहन का नाम पृथा था। पिता की मृत्यु के बाद 11 वर्ष के पृथ्वी राज अजमेर के शासक बने। आरंभिक एक वर्ष तक इनकी माता ने ही राज्य संचालन किया। उन्होंने दाहिमा राजपूत कैमास/कदंबवास को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। उसकी जागीर दक्षिणी पूर्वी पंजाब में थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने रिश्तेदार भुवन्नमल को सेनाध्यक्ष बनाया। पृथ्वी राज ने इस एक वर्ष में संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषाएं सीखीं। इन्होंने अजमेर के सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ से शिक्षा ग्रहण की जिसकी स्थापना विग्रहराज ने की थी। आज वही विद्यापीठ ‘‘अढ़ाई दिन के झोंपड़े’’ के नाम से मश्हूर एक मस्जिद है। वे चित्र बनाने एवं संगीत कला में भी पारंगत थे। इनके गुरु श्रीराम से ही इन्होंने शब्द भेदी बाण चलाना सीखा। इनकी सेना में 3 लाख सैनिक, 300 हाथी और विभिन्न घुड़सवार शामिल थे।
पृथ्वी राज का पहला विवाह 11 वर्ष की उम्र में जम्भावति पडिहारी से हुआ। इनके पुत्र का नाम गोविंद था। 22 वर्ष का होने तक उनका हर वर्ष विवाह हुआ। 36 वर्ष की आयु में उन्होंने कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता से विवाह किया।
पृथ्वी राज ने अपने साम्राज्य का विस्तार कन्नौज तक कर लिया था। इनकी बहादुरी और शौर्य के किस्से बच्चे-बच्चे की जुबान पर थे। धीरे-धीरे ये किस्से संयोगिता के कानों तक भी पहुंचे। संयोगिता पृथ्वीराज को मन ही मन अपना दिल दे बैठी और उनसे काव्य पत्रचार करने लगी। इस बात की भनक जब जयचंद को लगी तो उसने राजसूय यज्ञ और स्वयंवर का आयोजन किया। इसमें कई राजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज को नहीं बुलाया। जयचंद ने उनके जैसी मूर्ति अपने दरबार के बाहर द्वारापाल के रूप में खड़ी कर दी थी। वर चुनने के लिए कहने पर संयोगिता ने पृथ्वीराज की मूर्ति को हार पहना दिया। तभी मूर्ति के पीछे छिपे पृथ्वी राज संयोगिता के साथ घोड़े पर सवार होकर अपने राज्य की ओर भाग गए।
इसी बीच अफगानिस्तान का शासक शाहबुद्दीन मोहम्मद गोरी भारत की ओर बढ़ने लगा था और उसने महमूद गजनवी के कमजोर उत्तराधिकारियों को हराकर पश्चिमी पंजाब और भटिंडा का किला हथिया लिया। समाचार मिलते ही पृथ्वी राज भटिंडा पहुंचे और गोरी के कई सैनिकों को अकेले मार डाला। इस युद्ध में गोरी हार गया। 1191 में जब तराईन (हरियाणा में करनाल के पास तरावड़ी) का पहला युद्ध हुआ तो गोरी को 17वीं बार पृथ्वी राज ने धूल चटाई थी। बाद में जयचंद गोरी से मिल गया। 1192 तराईन के मैदान में पृथ्वी राज और मोहम्मद गोरी के बीच भीषण संग्राम हुआ। इस युद्ध में किसी ने पृथ्वी राज की मदद नहीं की। तब जयचंद ने पृथ्वी राज का विश्वास जीतने के लिए अपनी आधी सेना उन्हें दी। मौका पाते ही पृथ्वी राज की सेना में शामिल जयचंद के सैनिकों ने पृथ्वी राज के सभी सैनिकों को मार डाला। इसके बाद मोहम्मद गोरी, पृथ्वी राज और उनके दोस्त ‘‘पृथ्वीराज रासो’’ के रचयिता चंदवरदाई को अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। यहां उसने पृथ्वी राज पर बेतहाशा जुल्म ढाए। कहते हैं, गोरी ने उसे मुस्लिम धर्म अपनाने का दबाव भी बनाया था मगर नाकामयाब रहा। एक बार उसने पृथ्वी राज को आंखें नीची करने को कहा। पृथ्वी राज ने उसे कहा – ‘‘एक राजपूत की आंखें केवल मौत झुका सकती है।’’ इस पर गोरी ने पृथ्वी राज की आंखें गर्म सलाखों से जलवा दीं और उन्हें अंधा कर दिया। यह देख चंदवरदाई की आंखों में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी। पृथ्वीराज की अंतिम इच्छा पूछने पर चंदवर्दाई ने कहा कि वे धनुष कला की प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं। प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। पृथ्वी राज ने कहा कि वे सिर्फ राजा के आदेश पर ही तीर चलाएंगे। तब राजा ने जैसे ही शाबाश कहा, पृथ्वी राज ने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया। इसके बाद चंदवरदाई ने एक दोहा पढ़ा -ः
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।।

इस दोहे को सुनते ही पृथ्वी राज ने शब्द भेदी बाण चलाया जो गोरी की गर्दन में लगा और उसकी मौत हो गई। चंदवरदाई और पृथ्वी राज चौहान ने एक दूसरे पर खंजर से वार करके अपने प्राण त्याग दिए। संयोगिता को ये खबर मिली तो उसने भी जान दे दी।

निःसंदेह पृथ्वी राज चौहान भारत का एक महान सपूत, देश को आक्रांताओं से बचाने वाला, हिन्दु धर्म का रक्षक और सच्चे देश भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर भी जहां तक संभव हो सका देश की रक्षा की। युगाें-युगों तक भारत वर्ष इस बलिदान के लिए पृथ्वी राज चौहान का ट्टणी रहेगा।

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