क्षमा या सहनशीलताः यह प्रतिशोध की आवश्यकता महसूस किए बिना, दूसरों के अपराधों को सहन करने की क्षमता है। क्षमा के माध्यम से, व्यक्ति दूसरों के कारण हुए भावनात्मक घावों को ठीक करता है जो अन्यथा मन को विचलित और परेशान कर सकते हैं। क्षमा मांगना और किसी को क्षमा कर देना व्यक्तित्व का सबसे अच्छा गुण है, क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। माफ करने वाले व्यक्ति की तारीफ सभी करते हैं जिसके कारण उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल जाती हैं। अगर इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी मांग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है।
क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात‘ जैसी पंक्तियां यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए। वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है कि क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत सरल हो। वह लिखते हैं कि सहनशीलता, क्षमा दया को तभी पूजता जग है, बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है। क्षमा को सभी धर्माे और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन किया जाता है।
मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। मनोविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एसपी सिंह ने कहा कि क्षमा का मनुष्य के व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है। यदि आदमी गलती कर दे और उसके लिए माफी नहीं मांगे तो इसका मतलब यह हुआ कि उसके व्यक्तित्व में अहम संबंधी विकार है। उनका कहना है कि यदि कोई आदमी माफी मांगने पर भी किसी को माफ न करे तो उसके व्यक्तित्व में भी अहम संबंधी विकार होता है। माफी मांगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं। सर्वप्रथम हमें अपनी गलतियों पर पर्दा ना डाल कर, खुद से भी और दूसरों से भी क्षमा मांगना चाहिए और दुसरों की छोटी-मोटी गलतियों को नजरंदाज कर अपने सहनशक्ति को विकसित करना चाहिए। जबतक कोई बड़ी बात ना हो, उसपर प्रतिरोध करना गलत भी हो सकता है। याद रहे कि क्षमा निर्बलों का गुण और वीरों का आभूषण है।
क्षमा की महत्ता पर महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा ही शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है वो वह सबकुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब ने भी कहा है- कुछ इस तरह हमने जिंदगी को आसान कर लिया। किसी से माफी मांग ली किसी को माफ कर दिया। मनुष्य में गुण और दोष दोनों ही होते हैं। बुरी आदतों को आत्म अनुशासन और अभ्यास से दूर कर अच्छी आदतों के साथ जीवन व्यतीत किया जा सकता है। जिस मनुष्य के भीतर क्षमा भाव विकसित हो जाता है, वह व्यक्ति यशस्वी हो जाता है।
गलतियां सभी से होती हैं और बाद में पछताना भी सभी को पड़ता है। अगर हमसे गलतियां होती हैं तो माफी मांगना भी आना चाहिए। और दूसरों की गलतियों को माफ करने का साहस भी होना चाहिए। क्षमा मांगने के लिए व्यक्ति को साहस जुटाना पड़ता है और एक साहसी व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है। जब कोई व्यक्ति किसी को माफ कर देता है तो वह बीते समय को तो नहीं बदल सकता है। परन्तु ऐसा करके वह आने वाले कल को सुधार सकता है।
अगर कोई बार-बार गलती करें और अगर आपके क्षमा भाव को कमजोरी समझ ले तो उसे दंडित करना भी आवशयक हो जाता है। खासकर तब जब उसकी गलतियों का परिणाम सिर्फ आपको नहीं, समाज को भी भुगतना पड़ता हो। श्री कृष्ण ने इस प्रश्न का भी निदान कर हमें दिखाया है। उन्होंने शिशुपाल के निन्यानवे गलतियों को क्षमा कर दिया। उन्होंने उसे पूर्व में ही यह सचेत कर दिया था कि अगर सौवीं गलती करोगे तो दंड भुगतना होगा। और सौंवी गलती करते ही उसे दंडित किया गया।
पूजन प्रक्रिया में क्षमा मांगने का नियम है। दैनिक जीवन में जाने अनजाने अनेक गलतियां होती रहती हैं। पूजा में क्षमा प्रार्थना का संदेश यही है कि दैनिक जीवन में हमसे जब भी कोई अपराध हो जाय, तो हमें तुरंत ही क्षमा मांग लेनी चाहिए। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में लिखा है ‘दो तरह के मुखर् होते हैं, एक वे जो अपने कृत्यों को अपराध के रूप में नहीं देखते। और दूसरे वे जो दूसरों के अपराध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नहीं करते’।
बाइबिल में प्रभु ईशु के शब्दों में उल्लेख किया गया है ‘हे पिता इन्हें क्षमा कर देना। क्योंकि इन्हें नहीं पता ये क्या करने जा रहे हैं’। इस्लामिक ग्रन्थ कुरआन शरीफ में उल्लेिखत है ‘जो धैर्य रखे और माफ कर दे य तो यह उसके लिए बहुत हिम्मत का काम है’। गुरु ग्रन्थ साहिब का वचन है क्षमाशील को न ही रोग सताता है और न यमराज डराता है। क्षमा मांगने और क्षमा करने से वास्तव में खुद का ही भला होता है क्योंकि यह एक सकारात्मक पहलू है। क्षमा का भाव मनुष्य के भीतर से अहंकार के भाव को नष्ट कर देता है। किसी ने कितना सुन्दर वर्णन किया है कि ‘क्षमा वो खुशबू है जो एक फूल उन्हीं हाथों में छोड़ जाता है, जिन हाथों ने उसे तोड़ा है’।
दोष-खोज से संयमः सारा संसार और उसमें जो कुछ भी है वह अच्छे और बुरे गुणों का मिश्रण है। दूसरों के दोषों पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा मन दूषित होता है, जबकि उनके गुणों पर ध्यान केंद्रित करने से वह शुद्ध होता है। साधु व्यक्ति का स्वभाव है कि वह अपने दोषों को देखे और दूसरों के गुणों को देखे। गलती खोजने की आदत सिर्फ आपको तुच्छ बनाती है। आपको अपनी खुशी के लिए नकारात्मक प्रभाव से बचना होगा। आप अपनी आशा को कम मत कीजिए, चाहे काले बादल आपके ऊपर क्यों न मंडरा रहे हों।
चाणक्य के नीतिशास्त्र के अनुसार मनुष्यों को दूसरों के दोष ढूंढने में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए। इससे खुद में सुधार की उम्मीदें खत्म हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि मनुष्य अपने जीवन का ज्यादातर समय दूसरों की कमियां या दोष ढूंढने में खराब कर देते हैं। ऐसा करने की वजह से मनुष्य अपने अंदर कोई सुधार नहीं कर पाता है। चाणक्य नीति के अनुसार, जो लोग दूसरों के दोष ढूंढने का काम करते हैं, उन्हें अपने अंदर कोई कमी नहीं दिखाई देती है। यही वजह है कि उनके अंदर जो सुधार होने चाहिए, वह नहीं हो पाते हैं।
यदि असल जिंदगी की भी बात की जाए तो हम ऐसे कई लोगों के बारे में जानते होंगे जो अपनी कमियों में सुधार करने के बजाए दूसरों की कमियां निकालते रहते हैं। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है हम में से कई लोग ऐसे होते हैं। लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या की बात यही है कि ऐसे लोगों को अपने अंदर किसी तरह की कोई कमी नजर ही नहीं आती है। दूसरों में दोष ढूंढने वाले लोग खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। ऐसा करने वाले लोगों की प्रवृत्ति ऐसी ही बन जाती है कि वे सिर्फ दूसरों की कमियां निकालते हैं। एक समय के बाद ऐसे लोगों से सभी लोग दूरियां बनाने लगते हैं।
क्रोध का अभावः क्रोध का प्रकट होना भौतिक मन का दोष है। यह तब होता है जब सुख की इच्छाएं बाधित हो जाती हैं और चीजें वैसी नहीं होती जैसी किसी ने कल्पना की थी। वैराग्य और ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण से व्यक्ति क्रोध पर विजय प्राप्त करता है।
क्रोध दो तरह का होता है, एक तो बच्चे के गलती करने पर जो डांट उसे मां-बाप से पड़े उसे हम नार्मल और किसी हद तक जायज कह लेते हैं। दूसरा जो व्यक्ति के अंदर छिपे अहंकार को उजागर करता है। ऐसे क्रोध करने वाला व्यक्ति जहां खुद के लिए मुसीबत मोल लेते हैं वहीं अपने आस-पास रहने वाले लोगों के लिए भी कई तरह की मुश्किलें पैदा करते हैं।
आमतौर पर व्यक्ति को क्रोध तभी आता है जब उसे उसके मन के मुताबिक कुछ न मिले। ऐसे में इंसान चिड़ा-चिड़ा और बात-बात पर क्रोध करने वाला बन जाता है। कई बार खराब सेहत के चलते भी व्यक्ति क्रोध में या फिर परेशान रहता है। तो इस तरह हर व्यक्ति के पास खुद के क्रोध का एक खास कारण होता है। क्रोध करने से शरीर पर असर डालता है।
क्रोध आने पर मस्तिष्क में ऐसे रासायनिक तत्व बनते हैं और जो लोग ज्यादा क्रोध करते हैं उनमें ब्रेन स्ट्रोक के चांस भी ज्यादा होते हैं। जब हम किसी बात को लेकर बहुत जल्द रिएक्ट करने लगते हैं तो धीरे-धीरे शरीर में रक्त का प्रभाव तेजी से होने लगता है। जो आगे चलकर हाई बी-पी- की बीमारी को जन्म देता है। इससे दिमाग पर जरूरत से ज्यादा जोर डालने से व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति कमजोर होती है। जिसके चलते वह जीवन में दूसरों से पीछे रह जाता है। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने से तनाव और डिप्रेशन के शिकार होते हैं। जिसके चलते खुश रहने की बजाय उदास और मायूस रहने लगते हैं या फिर अपना गुस्सा हमेशा दूसरों पर निकालने की सोच रखते हैं। ज्यादा गुस्सा करने से आपकी पाचन शक्ति कमजोर होती है।
शोध में भी यह पाया गया है कि जो लोग ज्यादा गुस्सा करते हैं या फिर मन में नेगेटिव बातें रखते हैं उन्हें दूसरों के मुकाबले खाना 3 से 4 घंटे बाद पचता है। जो बच्चे ज्यादा गुस्सा करते हैं, उसका असर सीधा उनकी ग्रोथ पर पड़ता है। हमेशा चिड़चिड़ा रहने की वजह से बच्चा प्रॉपर हाइट नहीं ग्रो कर पाता। स्वस्थ जीवन के लिए साउंड स्लीप बहुत जरूरी है। मगर जो लोग ज्यादा गुस्सा करते हैं, उनके दिमाग की कोशिकाएं इतनी स्ट्रेस में आ जाती हैं कि उनके लिए चैन की नींद ले पाना मुश्किल काम हो जाता है।
जो लोग फोन पर घंटो चिल्ला-चिल्लाकर दूसरों से बात करते हैं, उनके दिमाग की नसों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मोबाईल फोन की खतरनाक तरंगे दिमाग की नसों को सुन्न करने का काम करती हैं। जिस वजह से व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति कमजोर होती है।