किसी ने सच कहा है …..
“सप्ताह में सात वार होते हैं, और आठवां वार है, “परिवार” |
अगर आपका आठवां वार ठीक रहेगा तो, बाकि के सातों वार सुखद रहेंगे |”
हर साल 15 मई के दिन हम सब मिलकर विश्व भर में “विश्व परिवार दिवस ”मनाते हैं | आजकल ज्यादातर लोगों से जब पूछो कि “परिवार” क्या है ! क्या एक- दूसरे के साथ शादी करना और फिर बच्चे पैदा करना, उसका नाम परिवार है ?. क्या कोई नौकरी या धंधा करके घर चलाना परिवार है ?.. क्या बच्चों को सिर्फ अच्छी स्कूल में दाखिला करवाना और अच्छे- अच्छे ट्यूशन रख देना ही परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी होती है ?… क्या माँ-बाप को उसके घर में अनाज और खाना दे देना ही एक पारिवारिक उपाय है ?…
आज के 21 वीं सदी के जमाने में, संघर्ष करते हुए हम अपना एक फ़्लैट खरीद ले तो अपने जीवन को धन्य समझते हैं और उसे ही हम घर बोलते हैं, वास्तव में यह घर नहीं है, यह तो सीमेंट-रेत से बना एक मकान है और उसे घर हमें बनाना पड़ता है, हमारे संस्कारों से, हमारे आदर्शो से, हमारी भावनाओं से और हमारे कर्तव्यो से | यह बात भारतीय संस्कृति की नीव में है और हमें उसी रास्ते चलना है | हमें अपने घर को स्वच्छ रखना है, अपने आंगन को स्वच्छ रखना है, अपने बच्चों को संस्कार देना है, पति-पत्नी के संबंध को विश्वास की डोर से बांधना है, और बड़ो का आदर-सत्कार करना है, तब हमारे मकान को हम सही तरीके का घर बना सकते हैं |
हमारे उपनिषदों ने कहा है कि,
“क्रोशन्त: शिशव: सवारी सदनं पद्कावृतं चागंणम, शय्या दंशवती च रुक्षमशनं धूमेन पूर्ण: सदा
भार्या निष्ठूरभाषिणी प्रभूरपि क्रोधेन पूर्ण: सदा, स्नानंशितलवारिणा हि सततं धिग् धिग् गृहस्थाश्रम”
“यानी, जिस घर में बच्चों के रोने की आवाजे आती हो, घर में चारों ओर पानी फैला पड़ा हो, यदि आंगन कीचड़ से भरा है, अगर बिस्तर में कीड़े हैं , अगर भोजन खुरदरा है, अगर घर में हर जगह धुआं फैला है, अगर पत्नी कठोर भाष्य करने वाली है, स्वामी भी क्रोधी है, और उसके पास, ठंडे पानी से स्नान करने के आलावा कोई दूसरा चारा नहीं है, तो धिक्कार है ऐसे गृहस्थाश्रम को ।“ यहां पर हमारी संस्कृति ने साफ़ शब्दों में हमारे गृहस्थाश्रम कैसा नहीं होना चाहिए उसका वर्णन किया है | भले ही हमारा घर छोटा सा हो, लेकिन उसे घर से मंदिर बनाना हमारे हाथ में हैं |
हमारे वेद-उपनिषदों ने गृहस्थाश्रम को श्रेष्ठ माना है | इतना ही नहीं । ऐसा भी कहा है कि, बगैर गृहस्थी जीवन बिताए व्यक्ति को संसार की समझ नहीं आती | शायद हम सब ने एक बात तो देखी ही होगी कि, हमारे जीतने भी अवतार है, मतलब की भगवान है, जितने भी ऋषि मुनी है वो सभी गृहस्थी थे, उन में से कोई भी अकेले जीवन जीने वाला व्यक्ति नहीं था | वेद कहते हैं कि, जब तक व्यक्ति गृहस्थ जीवन नहीं बिताता तब तक उन्हें जीवन में आने वाली कठिनाइयों ओर मुश्किलों का पता ही नहीं चलता और इसलिए संसार का त्याग करके कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को श्रेष्ठ रूप से समझ नहीं पाता | इसलिए तो परिवार को एक वैदिक एवं सामजिक संस्था कहा गया है, जहां पर व्यक्ति को अपने आदर्शो, संस्कारों और उपायों के जरिये जीवन के हर भाग को उत्कृष्ट बनाने का मौका मिलता है |
आज ऐसा देखने को जरुर मिलता है कि, व्यक्ति सुबह से लेकर शाम एवं देर रात तक अपने धंधा रोजगार के कामो में व्यस्त रहता है, घर आने के बाद उसे अपने बीवी या बच्चे के सामने देखने की भी ताकत नहीं रहती, घर में आते ही टीवी या मोबाइल को लेकर बैठ जाता है और घंटो तक अपना समय बर्बाद करता रहता है, जिनको वह अपनी ख़ुशी मानता है | आज एक ही घर में रहकर आमने -सामने बात करने के बजाय, लोगों को अपने मोबाइल के मैसेज के जरिये बाते करते हुए भी देखा जाता है | आज एक माँ को अपने बच्चे के सर पर दिन में पांच बार हाथ फिराने के बदले, पूरा दिन अपनी ऑफिस, अपना ब्यूटी पार्लर और अपनी किटी पार्टी में व्यस्त भी देखा जाता है I ऐसे अनगिनत घर है जहां पर बूढ़े माँ-बाप का सम्मान तो दूर, पर उनके सामने देखने का भी किसी को समय नहीं है | आज ऐसे लाखों बच्चे अपने देश में है जिसको राम और कृष्ण, नचिकेता और ध्रुव-प्रहलाद का पता ही नहीं है, अगर कुछ पता है तो बस पश्चिमी संस्कृति के तौर तरीकों का, अंग्रेजी कहानियां और कविताओं का | ऐसे बच्चों से हम बड़ो का आदर करने की उम्मीद भी कैसे रख सकते हैं ?…. पैसा कमाना बुरी बात नहीं है, वो तो एक प्राथमिक जरूरत है लेकिन संस्कृति और संस्कार, पैसे से भी ज्यादा कीमती है ।
आज असंख्य घर-परिवार बिखरते नजर आते हैं उनका मूलभूत कारण भी यही है कि ज्यादातर लोग सिर्फ वैभव और विलास को ही श्रेष्ठ मानते हैं। लोगों को ऐसा लगता है कि पैसे से सब कुछ ख़रीदा जा सकता है, लेकिन यह बात गलत है | क्या आप पैसे से प्रमाणिकता और नैतिकता खरीद सकते हैं ?… क्या आप पैसे से चारित्र्य और आदर भाव खरीद सकते हैं ?… हां! पैसे से आप मान-सम्मान जरुर खरीद सकते हैं लेकिन वो भी खोखला होता है, जितने दिन आप के पास पैसे हैं , उतने दिनों तक ही रहेगा |
आज हम विज्ञान और टेक्नोलोजी के जरिये बहुत आगे बढ़ गए हैं। लेकिन यह भी सच है कि संस्कृति और संस्कार में उतने ही पीछे चले गए है | आज 25-50 मंजिल की बड़ी -बड़ी इमारतें तो हो रही है लेकिन लोगों की सोच छोटी हो गई है, आज हजारों मील का अंतर हम कुछ ही घंटो में तय कर सके ऐसा ज़माना आ गया है ।लेकिन एक घर में दो लोगों के बीच का अंतर बढ़ गया है। आज हम मिसाइल और रॉकेट को तो संभाल सकते हैं लेकिन अपने घर में रहे हमारे माँ-बाप को संभालना मुश्किल हो गया है। आज हम विश्व के सामने तो हमारे गीता-वेद-उपनिषद पेश कर रहे हैं और भारतीय संस्कृति का गुणगान गा रहे हैं , लेकिन हमारे घर के बच्चों को वहीं भारतीय संस्कृति सिखाना भूल गए है | हमें शिवाजी और बाजीराव जैसी संतान चाहिए लेकिन हम भूल गए है कि, इसके लिए जिजाबाई और राधाबाई जैसी माँ एवं शहाजी राजे और बालाजी विश्वनाथ जैसे बाप भी चाहिए, जो हमें बनना पड़ेगा | मदर्स डे या फादर्स डे पर अपने माता-पिता की तस्वीर व्हाट्सप्प के स्टेटस में रख देने से कुछ नहीं होगा, जिन्होंने हमें पाल-पोशकर बड़ा किया है, कुछ करने के काबिल बनाया है, वह अपनी बाकी की जिंदगी सुकून से जी सकें और गर्व कह सके कि यह मेरा बेटा है, ऐसा आदर-सम्मान भी देना पड़ेगा | चाहे हम कितने भी व्यस्त हो, हमें हमारे बच्चो को दिन में दो बार पास में बिठाकर, उसके सर पर हाथ फिराते हुए, उसको श्रवण और ध्रुव-प्रहलाद की बाते बतानी पड़ेगी, रामायण और महाभारत के प्रसंग सुनाने पड़ेंगे, रानी लक्ष्मीबाई और वीर भगत सिंह की बाते बतानी पड़ेगी, तभी जाकर हम हमारे बच्चों से संस्कार और शौर्य की उम्मीद रख सकते हैं |
एक अच्छा लैपटॉप और स्मार्ट फोन देने से या तो महीने में 10,000जेब खर्च के लिए दे देने से, बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती | सिर्फ शादी कर लेने से हम पति नहीं बन सकते लेकिन शादी के फेरे लेते समय बोली हुई सप्तपदी का जिंदगी भर पालन करने से एक उत्कृष्ट पति जरुर बन सकते हैं | शादी करने के समय हमें यह लगता है कि यह सब विधि और श्लोक पंडित जी के लिए ही है, लेकिन ऐसा नहीं है, इन सभी बातों को शादी करने वाले पति और पत्नी के लिए कहा जाता है | तो फिर अब हम देखते है कि एक परिवार कैसा होने से, एक गृहस्थाश्रम कैसा होने से हमारे घर के भीतर, हमारे जीवन के भीतर, हमारे संसार के भीतर सुगंध आ जाती है | इसके लिए हमारे उपनिषदों ने कहा है कि,
सानन्द सदनं सताश्च सुधिय: कान्ता मनोहारिणी,
संमिंत्र सघनं स्वयोषिती गति: चाज्ञापरा: धन्यो सेवका: |
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान्नपानं गृहे,
साधो: सङ्गमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रम ||
मतलब की, जिस में घर में आनंद है, जिनके पुत्र बुद्धिमान है, मनोहर पत्नी है, अच्छे मित्र है, धन है, अपनी पत्नी पर प्रेम है, सेवक आज्ञाकारी है, अतिथियों का सत्कार होता है, शिवपूजन होता है, जिस घर मे हर रोज मिष्ठान भोजन बनता है, साधु संतो का संग है ऐसा गृहस्थाश्रम श्रेष्ठ है |
इस श्लोक में स्पष्ट रूप से एक धन्य गृहस्थाश्रम का वर्णन किया गया है I हमें इस श्लोक को पढ़कर हमारे भीतर एक खोज करनी चाहिए कि , क्या मेरा ऐसा गृहस्थाश्रम है ?… क्या मेरे परिवार में मेरी पत्नी अच्छे वचनों को बोलने वाली है और सदा मुझसे प्यार करती है ?…. क्या मेरे बच्चे बुद्धिमान और संस्कारी है ?…. क्या मैं हमेशा अतिथियों का सम्मान करता हूं ?…. क्या मेरे परिवार का कठहरा धर्म का है ?…. क्या मेरे पास अच्छे मित्र और अच्छे सेवक है, जो मेरे हर समय में मेरे पास खड़े होते हैं ?…. क्या मेरे परिवार में बुजुर्गो का आदर होता है ?… अगर यह सब है तो मैं और मेरा परिवार धन्य है और अगर नहीं है तो हमें उस रास्ते पर चलने की और हमारे परिवार को ऐसा बनाने की कोशिश करनी पड़ेगी ।क्योंकि अगर परिवार ठीक है तो हमारे बाकि के सातों वार ठीक हो जाएंगे |
परिवार मतलब सिर्फ दो-चार व्यक्तियों का साथ रहना नहीं होता, यह एक सामाजिक संस्था है, हमारे वेदों में दिया हुआ जीवन जीने का एक वैदिक रास्ता है। हमारी भारतीय संस्कृति का दिया हुआ एक कभी नहीं खत्म होने वाला मार्ग है | इस वैदिक राह को मुझे और आपको ही संभालना पड़ेगा। हमारी नई पीढ़ियों को हमें ही बताना पड़ेगा, तभी जाकर हम हमारी इस आध्यात्मिक विरासत को विश्व के सामने सीना ठोककर दिखा सकेंगे ।
कोरोना महामारी के भयावह समय में भगवान ने हमें अपने परिवार से ज्यादा प्यार करने के लिए और भारतीय संस्कृति के इस कार्य को आराम से करने के लिए समय दिया। घरों में बैठकर टीवी और मोबाइल देखकर या नेगेटिव विचारों को समाज में नहीं फैलाते हुए, हमें इस समय का पूरा सद-उपयोग करना है | हमें अपने परिवार को संभालना है, बच्चों को ज्यादा अच्छे संस्कार प्रदान करने हैं, हमारी शक्ति के अनुसार संस्कृति के साथ देश के लिए भी काम करना है, एकजुट होकर रहना है और सभी को जीवन अच्छे से जीने का हौसला देना है, तभी जाकर “विश्व परिवार दिवस ” मनाने का महत्त्व पूरा होगा | इस कार्य को पूर्ण करने के लिए हम सबको भी संकल्प करना है कि, भारतीय संस्कृति हमारी अपनी संस्कृति है, हमारी अपनी माँ है, जिसे हम विश्व के कोने -कोने तक ले जाने के लिए कटिबद्ध है और इस राह पर चलने के रास्ते पर सबसे पहले हमारा अपना परिवार है |