परशुराम अवतार (छठा अवतार)

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमान्श्च् विभीषणः।

कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजिविनः।।  

हमारे पुराणों में कही गई बातों के अनुसार इस विश्व में 7 चिरंजीवी हैं उनमें से एक नाम आता है परशुराम का। जिनको भगवान विष्णु का छ्ठा अवतार भी माना जाता है। त्रेतायुग में इस अवतार की कहानी जैसे हम सब जानते है। ऋचीक और सत्यवती के पुत्र जमदग्नि। सत्यवती की माता की चालाकी की वजह से, सत्यवती के यहा जन्में जमदग्नि ब्राह्मण वंश के होकर भी क्षात्र तेज युक्त गुणों से भरपूर हुए। और उनकी माता गाधी राज के घर क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण गुणों वाला पुत्र यानि वशिष्ठ का जन्म हुआ था। जमदग्नि की पत्नी रेणु का की 5 संतान थी। उसमे से एक सबसे तेज बुद्धिमान, क्षात्र तेज से युक्त ऐसे परशुराम थे। जो वडीलों का आदर करने वाले और माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन न करने वाले ऐसे शुरवीर पुत्र परशुराम थे। जिनका जन्म हिंदू तिथि अनुसार अक्षय तृतीया को हुआ था। आज के भौगोलिक विस्तार से देखा जाए तो, परशुराम का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर के पास मानपुर के जानापाव पर्वत के पास हुआ था। जहा जमदग्नि ऋषि का आश्रम था। उनके पितामह भृगु ऋषि थे। भगवान के इस अवतार में  उनका शस्त्र परशु था। जो उन्हें कैलास गिरिश्रुंग पर स्थित शिवजी की घोर तपश्चर्या के बाद, उन्हें शिवजी से वरदान में यह दिव्यास्त्र प्राप्त हुआ था। जिससे उन्होंने अपने पिताकी हत्या करनेवाले कार्तवीर्य राजा के पुत्र ने वैर भाव से जमदग्नि की हत्या कर उनका आश्रम तहस नहस कर दिया था। चूँकि उस वक्त आश्रम मे परशुराम नहीं थे। वे कार्तवीर्य राजा की  हत्या का प्रायश्चित करने, अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से पर्वत पर तपश्चर्या करने चले गए थे। उनके जाने के बाद, कार्तवीर्य राजा का पुत्र आश्रम में आके अपने पिता के वध का बदला लेने हेतु, वैर भाव से आया और तपश्चर्या में लीन ऐसे जमदग्नि का उसने वध कर दिया। और आश्रम में विनाश कर दिया। तत पश्चात उनकी  माता रेणुका  का संदेश मिलते ही वो वापस आश्रम आए। और उन्होने वस्तु स्थिति देखकर, अपना परशु उठा उन उदंड क्षत्रियों को सबक सिखाया। पाने परशु पर क्षत्रियों के लहू से और इस धरा को 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दी। और धरा पर फिर से शांतिपूर्ण और सोदार्ह्य पूर्ण वातावरण बनाया।

अब इस कथा का आवरण जरा हटा के देखे तो। काल की गणना के अनुसार आज से सात हजार वर्ष पूर्व राम अवतार के भी पहले 1500 वर्ष पूर्व हुआ था। उस काल का भगवान का हथियार परशु राम काल आते आते विकसित होक धनुष हो गया था।  परशुराम को भार्गव राम भी कहा जाता है। क्योंकि वे भृगु ऋषि के वंशज थे। भारत की भूमि में तिन राम प्रचलित है। भार्गव राम, राघव राम, यादव राम। इनमे भार्गव राम यानि परशुराम। जिनका उल्लेख और उपस्थिति राम और कृष्ण दोनों काल में देखने को मिलती है। जिका प्रमाण हमारे पुरानो में भी है। रामचरितमानस मानस में भी है। इस तेजस्वी परशुराम का पराभव राम काल में राम ने किया था।

भगवान अवतार लेके एक विशिष्ट प्रकार की व्यवस्था, संस्कृति और दैवी निष्ठा निर्माण करने का काम करते  है। भगवान परशुराम के पहले उनके दादा ऋचीक और पिता जमदग्नि के बारे में जानेगे तो पता चल जाएगा की यह अनुवांशिक गुण है, जो परंपरा से आए हुए है। जैसे हमने वामन अवतार में देखा था बलि में उसके दादा प्रहलाद के बजाय उनके पर दादा हिरण्य कश्यपू के गुण अनुवांशिक हुए थे।

यहां ऋचीत भार्गव वंश के थे। जिनकी तमन्ना टीत्कालीन समाज में ब्राह्मणों की  दयनीय स्थिति को लेके चिंतित थे। वे ब्राह्मनों को वापस उसका हक्क उसका सही स्थान दिलाने के प्रयास में थे। और इसी तहत उनकी शादी क्षत्रिय राजा गाधी राजा की पुत्री सत्यवती के साथ हुई। दो कुलो का गुणानुवाद उनमे देखने को मिलता है।

परशुराम ने अपनी शस्त्र विद्या अपने शिष्यों भीष्म, द्रोण और कर्ण को भी सिखाई थी। उनमें एक खास बात यह भी थी की उनके पास जो भी होता वो समय समय पर  सबको दान कर देते थे। उन्होंने आजीवन एक पत्नी व्रत धारण किया था। उन्होंने उस काल में अत्री पत्नी अनसूया, अगस्त्यमुनि की पत्नी  लोपमुद्रा और अपने प्रिय शिष्य अकृतवट के सहयोग से समाज में विराट नारी जाग्रति अभियान चलाया था। उसका संचालन भी उन्होंने किया है।

उन्होंने कृष्ण काल में भी जब जरासंघ का मथुरा पर वारंवार आक्रमण करता था। तब बलराम और कृष्ण ने उन्हीं से परामर्श करके मथुरा छोड़ के द्वारिका बसने का उद्देश्य बनाया था। उन्होंने कृष्ण को वरदान दिया था की उन्हें कोई पराभूत नहीं कर सकता। इस प्रकार परशुराम अवतार का प्रतिबिंब कृष्ण काल तक देखने को मिलता है। भारत की धरा के किनारे जहां जहां समुद्र दिखाई पड़ता है वहां वहां उन्होंने अपने धनुष्य से समुद्र को 400 400 मिल पीछे हटवा दिया था। ऐसा इतिहास में प्रमाणित है। इस कारण केरल, कोकण गोवा गुजरात मध्य प्रदेश सभी जगह उनके गोत्र का उच्चारण और पूजा की जाती है।

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