23. नेलसन मंडेला -भारतरत्न- 1990
(जन्म- 18 जुलाई 1918[रोलिहलाहला मंडेला], मृत्यु- 5 दिसंबर 2013)
अपने परिवार से अलग, अपनी मां से दूर, अपने ही देश में ग़ैरों की तरह कंगालों जैसा जीवन व्यतीत करने वाले, संघर्ष को ही अपना जीवन समझने वाले और अन्तिम सांस तक आज़ादी के लिए जूझने वाले नेलसन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका के ट्रांसकायी स्थित अमटाटा गांव में टाम्बू क़बीले के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम हैनरी था, जो एक सीधे-सादे और अनपढ़ व्यक्ति थे। 1930 में उनके पिता चल बसे और बालक नेलसन क़बीले के मुखिया डेविड के संरक्षण में पलने लगे।
नेलसन मंडेला ने अपने माता-पिता की लीक से हटकर शिक्षा प्राप्त की, वह अफ्रीका विश्वविद्यालय से कला स्नातक बने। उनमें राष्ट्रीय भावना बचपन से ही कूट-कूटकर भर चुकी थी। बड़ों से वह अपने क़बीले की गौरव गाथाएं सुना करते थे। क़बीले का राजा किस प्रकार अपने मन्त्रियों की सलाह लेकर न्याय का शासन चलाता था। हरे-भरे जंगलों से सजे हुए उनके प्यारे देश पर उन्हीं का राज था। सब कुछ अपना ही था। अपनी सेना। अपना क़ानून। अपना जीवन। एकदम स्वतन्त्र। अपनी इस स्वतन्त्रता को बचाने के लिए यहां के पूर्वजों ने बड़ी बहादुरी से जंग लड़ी थी। यूरोप से पहुंचे श्वेत विदेशी आस्तीन के सांप बन गए। इतना सुनते-सुनते युवक मंडेला की भुजाएं फड़क उठती थीं। ज़बर्दस्त जोश से उसकी छाती फूल जाती थी। उसका मन उत्साह और उमंग की भावना से भर जाता था।
सोलह वर्ष की उम्र में क़बीले के रीति-रिवाज के अनुसार वाशी नदी के तट पर विधि-विधान से नेलसन मंडेला को बड़ा मान लिया गया। उन्हें इम्बीजों के क़बीले की पंचायत में शामिल किया गया। जब वह तेईसवें वर्ष में चलने लगे, तो मुखिया डेविड ने नेलसन का विवाह कराने का विचार बनाया। मंडेला के लिए जो लड़की पसन्द की गई, वह काफ़ी स्वस्थ शरीर की थी। शादी के लिए आदान-प्रदान की रस्म, जिसे वहां की स्थानीय भाषा में लो बोला कहा जाता है, वह भी अदा कर दी गई, लेकिन नेलसन को लड़की पसन्द नहीं थी मना करना भी बूते के बाहर था। वह बड़े धर्मसंकट में फंस गए।
एक दिन नेलसन मंडेला अपने बड़े भतीजे मितरारा को साथ लेकर भाग निकले और जोहान्सबर्ग पहुंच गए। वहां उन्होंने क्राउन खदान कम्पनी में नौकरी कर ली। बाद में नेलसन एक और जगह प्रॉपर्टी डीलिंग के कार्यालय में दो पाउंड प्रति माह और कमीशन पर क्लर्क के रूप में काम मिल गया। एक वर्ष बाद वेटिकन, साइडैल्स्की एंड एडिलमैन नामक एक एटार्नी फर्म में काम मिल गया। यह गोरों की फर्म थी। यहां काम करके उन्होंने अच्छी तरह समझ लिया कि गोरे लोग अपने अहंकार को कभी नहीं भूलते। जोहान्सबर्ग में नेलसन का सर्वप्रथम परिचय वाल्टर सिसुलू से हुआ। परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया। सिसुलू ने उनकी प्रतिभा को परख लिया। इसलिए उन्होंने नेलसन को क़ानून पढ़ने की नेक सलाह दी।
1944 में नेलसन मंडेला अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गए। उन्होंने सिसुलू, ओलिवर टाम्बो, ऐंटन लैम्बेदी और अन्य उत्साही नौजवानों के सहयोग से यूथ लीग का गठन किया। उसके नियमों में अफ्रीकियों के उत्थान और आज़ादी पर विशेष बल दिया गया। जब अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन का आयोजन किया गया, उसी समय नेलसन मंडेला को युवा संघ का महासचिव चुन लिया गया। 1948 में एक दु:खद घटना हुई। प्रजातीय अलगाव और रंगभेद नीति का नारा देकर अफ्रीका में अंग्रेज़ सरकार बन गई। शासन प्रणाली गुलामी से भी बदतर थी। यहां के मूल निवासी पहले की तुलना में और भी ज़्यादा गुलाम बन गए, परन्तु एक वर्ष के अन्दर ही नेलसन और उसके साथियों ने सविनय अवज्ञा जैसे आन्दोलन द्वारा अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस को जुझारू और मज़बूत बना दिया।
1950 में मई दिवस के अवसर पर जब अठारह शान्तिप्रिय प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने भून दिया, तो अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूरे देश में ‘काम रोको’ आन्दोलन खड़ा कर दिया। 26 जून, 1950 को सारे देश में विरोध दिवस मनाया गया। इतना ही नहीं, दो वर्ष बाद रंगभेद नीति के अनुचित और अमानवीय नियमों के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ दिया। इस अभियान में लोगों ने अनुशासन और शान्ति के साथ उन जगहों में प्रवेश किया, जो केवल गोरे लोगों के लिए ही थे। इस अभियान में प्रवासी भारतीयों ने भी वहां के लोगों का साथ दिया। इसमें 8,500 गिरफ्तारियां की गईं।
जोहान्सबर्ग में अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के अपराध में नेलसन मंडेला को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस समय उनके पचास कार्यकर्ता भी साथ थे। यह जून, 1952 की घटना है। उन्हें धकेलते हुए मार्शल स्क्वायर ले जाया गया और उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया गया।
इसी बीच मंडेला को अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस की ट्रांसवाल शाखा का अध्यक्ष चुन लिया गया। गोरी सरकार की आंखों में उनकी बढ़ती लोकप्रियता खटक रही थी। अतः 11 दिसम्बर, 1952 को उन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जोहान्सबर्ग से बाहर कहीं नहीं जाएं और न किसी आमसभा में भाग लें तीन वर्ष के प्रतिबन्ध के दौरान भला मंडेला कहां चुप बैठने वाले थे । उन्होंने जोहान्सबर्ग में ही शोषितों और पीड़ितों की ख़ातिर वकालत शुरू कर दी। मंडेला ने उन सभी के मुक़दमों में रंगभेद नीति की धज्जियां उड़ा दीं|
26 जून, 1955 को क्लिप टाउन में, कांग्रेस के साथ मिलकर सभी अफ्रीकी जातियों के लगभग तीन हज़ार लोगों ने आज़ादी का मांगपत्र जारी किया। इस अभियान में क़लम चलाने वाले क्लर्कों, ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं, घर में कामकाज करने वाली गृहिणियों तक का भरपूर समर्थन मिला था। इसका नेतृत्व किया था नेलसन मंडेला ने।
इसके बाद कांग्रेस को जुझारू बनाने के लिए मंडेला ने उसका नए तरीके से गठन किया। श्वेत सरकार ने उनकी आगामी योजना को ध्वस्त करने के लिए 5 सितम्बर, 1956 को प्रातःकाल 156 कार्यकर्ताओं को उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया। उनमें मंडेला और उनके सहयोगी लुटली, ओलिवर, टाम्बो राजद्रोह । गोरी सरकार और वाल्टर सिसुली भी शामिल थे। अभियोग था अपराध सिद्ध न कर सकी और उन्हें छोड़ दिया गया। नेलसन मंडेला का विवाह ट्रांसकायी के मन्त्री कोलम्बस माडिकिजेला की बेटी नोम्जामो रिनी माडिकिजेला के साथ 1958 में हुआ। वह जोहान्सबर्ग में समाज-सेवा के कार्य करती थीं।
गोरी सरकार 31 मई, 1961 को गणतन्त्र दिवस मनाने की तैयारी में थी। मंडेला ने प्रधानमन्त्री डॉ. फ़ेयर फुट को पत्र लिखा और इस बात पर दुख व्यक्त किया कि उनकी हुकूमत में अफ्रीकी कीड़े-मकोड़ों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारने पर मजबूर हैं। इस ख़तरनाक और मानवता विरोधी स्थिति को रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीकियों का राष्ट्रीय संघ बनाया जाए, नहीं तो 29 मई को सारे देश में ‘घर पर बैठो’ अभियान छेड़ दिया जाएगा।
सरकार ने उनकी एक न सुनी और लोगों को गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया। मंडेला भूमिगत हो गए। अभियान फिर भी रुका नहीं। गोरी सरकार की कड़ी चेतावनी के बावजूद हड़ताल कामयाब रही। मंडेला ने सिंह गर्जना की कि सरकार की कुटिल नीतियों को हमारी अहिंसात्मक कार्यवाही के आगे झुकना पड़ेगा। प्रिटोरिया सरकार की बर्बर कार्यवाहियों के कारण जनता में असन्तोष का ज्वालामुखी सुलगने लगा था। छः महीने के भीतर ही 16 दिसम्बर, 1961 को एक विस्फोट हुआ। जिस दिन गोरी सरकार अपना विजय दिवस मना रही थी, सभी सरकारी संस्थानों में एक ज़बर्दस्त कार्यवाही की गई।
‘उमखांटो’ अर्थात ‘देश छोड़ो’ के नारे से आकाश गूंज उठा। जनता के हाथों में घोषणा-पत्र लहरा रहा था। नेलसन मंडेला भूमिगत होकर आन्दोलन चला रहे थे। पुलिस उन्हें छू तक नहीं सकी। 1962 में पैन अफ्रीकी कांग्रेस के मंच पर अचानक प्रकट होकर मंडेला ने घोषणा की कि आज सम्पूर्ण दक्षिण अफ्रीका जातीय संघर्ष फूट के कारण टूट गया है और देशभक्तों के रक्त से सना हुआ है। सारे श्रोताओं में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। मंडेला फिर गायब हो गए और पुलिस हाथ मलती रह गई। भूमिगत रहते हुए मंडेला ने लन्दन और अल्जीरिया का दौरा किया। वहां के नेताओं से भेंट की और 5 अगस्त, 1962 को देश वापस लौट आए। तब किसी मुखबिर की सूचना पर सरकार ने उन्हें पकड़ लिया।
जून, 1964 में उनके मुक़दमे का फ़ैसला सुनाया जाना था। चार दिन पूर्व ही उन्होंने प्रिटोरिया जेल से लन्दन विश्वविद्यालय की क़ानून की परीक्षा दी थी। न्यायालय से जेल तक जाने वाले सभी मार्गों पर जनता अपने प्यारे नेता के सम्मान में सामूहिक स्वर में राष्ट्रगान गा रही थी। जनता के दिलों में उत्साह और भारी जोश था, जो लगातार नारों के रूप में व्यक्त हो रहा था। मंडेला को बन्दी बनाकर रॉबेन द्वीप भेज दिया गया। वहां कारावास के दौरान उनसे पत्थर तुड़वाए गए। समुद्र से काई निकलवाई गई। बहुत अधिक शारीरिक और मानसिक कष्ट दिया गया। दिन-भर कमर तोड़ काम और भोजन के नाम पर कुछ रोटी और सालन, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 1990 में 27 वर्ष बाद उन्हें मुक्त किया गया।
आखिर उनके प्रयासों से अन्ततः दक्षिण अफ्रीका स्वतन्त्र हुआ। गोरी सरकार को अपना मुंह छिपाकर वहां से भागना पड़ा। 10 मई, 1994 को वह अपने देश के राष्ट्रपति चुने गए।
1979 में नेलसन मंडेला को भारत सरकार द्वारा जवाहरलाल नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी पत्नी ने भारत आकर यह पुरस्कार प्राप्त किया। भारतवर्ष ही ऐसा देश है, जिसने सर्वप्रथम उन्हें सम्मानित किया था। 1990 में भारत सरकार ने इस महान स्वतन्त्रता सेनानी को सर्वोच्च उपाधि भारतरत्न से विभूषित करके उसकी सेवाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा की। स्वाधीनता की रक्षा का यह यज्ञ आज भी निरन्तर और अबाध गति से चल रहा है।