कृतज्ञता या आभार जिसे अंग्रेजी में Gratitude कहते हैं। कहने के लिए यह एक छोटा सा शब्द है। लेकिन असल में मानव के जीवन में हर दिन प्रयोग होने वाला यह शब्द सिर्फ एक शब्द नहीं एक अनुभूति है, जो हमारे भीतर एक निर्मल और अद्वितीय प्रेम का एहसास कराता है। कृतज्ञता किसी भी मानव के जीवन के लिए आज की शांति है और यह सही मायने में कल के लिए दृष्टि निर्मित करती है। जोहन्नेस गार्टनर ने कहा है कि फ्कृतज्ञता के विषय में कहना सुसभ्य और सुखकर है, कृतज्ञता को व्यवस्थापित करना उदार और श्रेष्ठ है, लेकिन कृतज्ञता को जीवन में उतारना स्वर्ग का स्पर्श करना है।य् कृतज्ञता एक ऐसा गुण है कि हर मनुष्य के लिए इस गुण को अपने जीवन में उतारना जरूरी है। कृतज्ञता कई प्रकार की और कई व्यक्तियों के लिए अलग-अलग हो सकती है, जैसे कि माँ-बाप के प्रति कृतज्ञता, गुरु या शिक्षक के प्रति कृतज्ञता, दोस्तों के प्रति कृतज्ञता, समाज के प्रति और धर्म के प्रति कृतज्ञता। यह सब कृतज्ञता में सबसे ज्यादा जरूरी है, भगवान के प्रति कृतज्ञता। कृतज्ञता का अर्थ है, अपने पर हुए आशीर्वाद को गिनना, सरल सुखों की अनुभूति करना और जो कुछ भी हमें मिला है उसे हँसते हुए स्वीकार करना।
आज हमारे पास समस्या यह है कि हर मनुष्य को अपने कर्म और औकात से ज्यादा ही चाहिए और इसलिए वह कभी भी सुख की अनुभूति नहीं कर सकता। कृतज्ञता का भाव तो जीवन से निकलता ही जा रहा है। हम हमारे बच्चों को सिखाते है कि, कोई हमें पेन्सिल या कोई गिफ्रट दे तो उसे थैंक्यू (Thank You) बोलो, पर क्या हम अपने पर किये हुए उपकार के लिए किसी को जींदा लवन कहते है? जब मिली हुई चीजों पर जिंदा लवनय् बोलना शुरू कर देते हैं तो, आगे की रास्ते सुगम हो जाते हैं। विश्व के महान तत्वचिंतक और स्वाध्याय कार्य के प्रणेता, पं-पु-पांडुरंग शास्त्री ने कहा है कि, भगवान के प्रति कृतज्ञता, मनुष्य जीवन में बेहद जरूरी है और इसलिए ही उन्होंने त्रिकाल संध्या का मंत्र दिया है, जिसके द्वारा लोग दिन में तीन मुख्य समय पर भगवान को याद करके उसके प्रति अपनी कृतज्ञता को व्यक्त करते हैं। वो कहते है कि, सुबह में उठते ही हमें कल की सब बातें याद आ जाती हैं, हमारी पत्नी, हमारा परिवार, हमारा नौकरी-धंधा— सब कुछ, मतलब कि उठने के बाद तुरंत ही भगवान हमको स्मृति दान देते हैं। आप एक क्षण के लिए सोच सकते हैं कि अगर एक दिन सुबह में उठते ही हमने अगर पत्नी को पूछ लिया कि, आप कौन हो?— अगर एक दिन हमें अपनी स्मरण शक्ति वापस नहीं मिली तो?— कितना भी प्यार हो, हमारा स्थान मेंटल हॉस्पिटल में होगा। इसलिए सुबह उठते ही सबसे पहले भगवान को याद करके उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी है।
भगवान का दूसरा सब से बड़ा जो दान है, वो है शक्ति दान। हम दिनभर खाते ही रहते है, कई बार तो ऐसी चीजे खाते है कि जिसका पाचन होने में दम निकल जाता है, फिर भी हर चीज का पाचन हमारे अन्दर आसानी से होता है और हमें शक्ति मिलती है। सोचो की, अगर भगवान ने हमारे पेट के बाहर एक हेंडल लगाया होता और कहा होता कि, खाना खाने के बाद इस हेंडल को घुमाते रहो, फिर पाचन क्रिया चालू होगी, और जब पाचन क्रिया खत्म हो जाएगी फिर शक्तिप्रदान होगी। अगर ऐसा हो गया तो, हमारा सारा दिन वह हैंडल चलाने में ही चला जाता, लेकिन भगवान ने ऐसा नहीं किया, हमारे शरीर के भीतर एक मैकेनिजम रख दिया, जो अपने आप चलता है और पाचन क्रिया हो जाती है। हमें यह जानकर ताज्जुब होगा कि मनुष्य शरीर में 60,000 उपसमैं का वायरिंग होता है और लीवर में 200 प्रकार के रसायनिक होते हैं, जो यह सब काम अपने-आप करके हमको जीवित रखते हैं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के मुताबिक, एक मृत शरीर को बनाने का खर्च, करीब 5 ट्रिलियन डॉलर का है, जो अंक भारत देश के वार्षिक बजट से काफी ज्यादा है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी शरीर तो मृत होता है। सोचो कि भगवान ने हमें कितना अमूल्य शरीर दिया है। हमारे जीवन में भगवान का तीसरा दान है, फ्शांतिदानय्। हम दिनभर काम करते हैं, कितनी थकान होती है, आज के जमाने में कितना स्ट्रेस होता है, दुनिया भर की परेशानियां होती हैं, फिर भी रात को हमें नींद आती है और हम सो जाते हैं, जिससे हमारी सारी थकान दूर हो जाती है। हमें सोने के समय कुछ भी याद नहीं होता और शांति मिल जाती है। अगर हम पेन-डायरी लेकर लिखने बैठें तो, इतने अनगिनत उपकार भगवान के हमारे ऊपर है, जिन्हें हम लिखते-लिखते थक जाएं पर उपकार खत्म नहीं होंगे। हमारे शास्त्रें में कहा गया है कि सब पापों का प्रायश्चित है, पर कृतघ्नी (उपकार भूलने वाला) का कोई प्रायश्चित नहीं है। और इसलिए हमें हमारे जीवन में प्रदान की हुई हर चीज के लिए भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी है।
हमने थॉमस अल्वा एडिसन का नाम तो सुना ही है, जिन्होंने बल्ब का उपहार देकर हमारी दुनिया को रोशनी से भर दिया। जब एडिसन अपनी खोज के कार्य में व्यस्त थे, तब एक दिन उनकी लैब में आग लग गई और पूरी लैब जलकर खाख हो गई। पता लगने पर एडिसन वहां पर आए और ऊपर आकाश में देखकर बोले, भगवान शुक्र है आपका कि आपने मेरी हर गलती को जला दिया, मैं अब फिर से नए तरीके से मेरी खोज का प्रारंभ करूँगा। यह है कृतज्ञता की असीम सीमा है । मेलोडी बेटी ने कहा है कि(Gratitude gives us equality with yesterday’s work, peace in today’s work, and a compass for tomorrow’s work. Just as every day comes to us fresh and new, my gratitude renews itself every day.) अर्थात, कृतज्ञता से हमें कल के कामों की समानता रहती है, आज के काम में शांति मिलती है, और कल करने वाले कामों के लिए एक दिशा सूचक मिलता है। जैसे हर दिन हमारे पास ताजा और नया आता है, उसी तरह मेरी कृतज्ञता, प्रति दिन स्वयं को पुनः नवीनीकरण देती है। जेम्सफोस्टर के अनुसार, “कृतज्ञता पूर्ण हृदय की शुरुआत है, विनम्रता की एक अभिव्यक्ति है, और यह प्रार्थना, श्रद्धा, साहस, प्रेम, संतोष, सुख, एवं भलाई जैसे सद्गुणों के विकास की आधारशिला हैय्। रामायण में हमें भगवान श्री राम, वीर भक्त हनुमान जैसे पात्रें के द्वारा यह गुण सीखने को मिलता है।
अगर आप रामायण पढ़ते हैं तो पता चलेगा कि पूरी रामायण में जब-जब राम ने अपना परिचय, किसी और को कराया है, उन्होंने यही कहा है कि, “मै अयोध्या नरेश दशरथ पुत्र राम, अपने भाई लक्ष्मण और अपनी भार्या सीता के साथ आपको नमन करता हूं।’’ इस वाक्य में कहीं भी राम ने अपनी गाथा नहीं सुनाई, न ही अपने गुणगान गाये। जिसको भी बोला, पहले अपने पिता का नाम बोला। यह बात हमारे लिए कृतज्ञता की एक चरण सीमा है। हनुमान जी जब लंका पहली बार गए तब सीता माता ने उनसे पूछा कि, हे वीर आप कौन हैं? तब उन्होंने विनम्रता से उत्तर दिया, “राम दूत मैं मातु जानकी..” अर्थात, हे माता,मैं श्री राम का दूत हनुमान हूं। अगर इस जगह पर हम होते तो बोलते, “आपको पता नहीं, पूरी सेना में कोई यहाँ तक आ नहीं सकता था, केवल मेरे में यह शक्ति थी और मैं उड़कर यहाँ तक पहुँच गया।’’ लेकिन हनुमान जी के भीतर कृतज्ञता का भाव था, वह हमेशा अपनी पहचान, राम दूत हनुमान करके ही देते थे।
आज समाज में हर मनुष्य को, हर समय कुछ न कुछ चाहिए। संतोष का भाव तो लोगों के भीतर से निकल ही गया है। मेरे पास क्या है, इस बात का संतोष करने के बजाय, हर मनुष्य मेरे पास क्या नहीं है, उसका रोना रोता ही रहता है। स्वामीनारायण संप्रदाय के एक संत ने कहा था कि,’ अगर आपके पास, रहने के लिए एक घर है, चाहे वो छोटा हो या बड़ा, खाना आसानी से मिल जाता है, चलने के लिए एक वाहन है, 15-20 जोड़ी पहनने के लिए कपडे़ हैं, आपका और आपके परिवार का स्वास्थ्य अच्छा है, आपके बच्चे स्कूल में पढाई करते हैं, समाज में 20-25 परिवार के साथ आपका उठना-बैठना है, छुट्टी के दिनों में आप घूम-फिर सकते हो, और आपके पास बात करने के लिए एक मोबाइल या काम करने के लिए एक कम्प्यूटर-लैपटॉप है— अगर इतनी चीजें आप के पास है, तो आप दुनिया के सबसे भाग्यशाली इंसान हो, क्योंकि दुनिया में 98% लोगों के पास यह सब कुछ नहीं है। मतलब की हमारी गिनती भगवान ने 10% लोगों में है। और अगर यह सब है तो हमें भगवान का हमेशा शुक्रगुजार होना ही चाहिए, वरना हम कृतघ्नी है। कई बार हमें यह लगता है कि मेरी वजह से यह आदमी का पेट भरता है, मेरी वजह से उनका घर चलता है, मेरी वजह से यह व्यक्ति को कुछ पैसे मिलते है—।’
लेकिन यह बात बिलकुल गलत है। क्या पता, भगवान ने वह मनुष्य का पेट भरने के लिए ही हमें सम्पति दी हो, क्या पता कि 200-500 लोगों का घर चलाने के लिए ही भगवान ने मुझे फैक्ट्री का मालिक बनाया हो, क्या पता की लोगों की मदद करने के लिए ही भगवान ने मुझे धनवान बनाया हो। इसलिए हमें इस बात का अभिमान नहीं परन्तु गर्व करना चाहिए कि भगवान ने मुझे दूसरे लोगों की मदद करने के लिए ही यह सब कुछ प्रदान किया है। और इसलिए हमें अपना केंद्र सम्पति या धन-दौलत पर नहीं परन्तु भगवान के प्रति शुक्रिया कर करना चाहिए।
हम किसी को मान देते हैं, तो हमें मान मिलेगा, हम किसी को पैसा देते हैं तो हमें पैसा मिलेगा, हम किसी का शुक्रगुजार रहें, तो कोई हमारा शुक्रगुजार भी रहेगा। भगवान ने हमें सूर्य का प्रकाश, इतनी सारी हवा, इतना सारा ऑक्सीजन, इतना सारा पानी—- यह सब कुछ बिना मांगे दिया है और उसका बिल भी कभी वह नहीं भेजते, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमें उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। हमारे माता-पिता ने हमें अच्छी जिन्दगी दी, पढ़ाया-लिखाया, दुनिया के सामने खड़े रहने के काबिल बनाया तो हमें हमें अपने माता-पिता के प्रति हमेशा कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। स्कूल-कॉलेज में हमारे शिक्षक ने हमें ज्ञान दिया, पैसे कमाने के काबिल बनाया, तो हमें उनके प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। बाकि समाज में ऐसे कई लोग होंगे, जिन्होंने हमारे लिए, हमारे कारोबार के लिए, हमारी प्रतिष्ठा के लिए, हमारे सम्मान के लिए, हमारे घर के लिए, कुछ न कुछ किया है, उन सभी लोगों को हमें कृतज्ञता पूर्वक नमस्कार करना चाहिए।
अंत में राल्फ मार्टिन के ने कहा है कि,’ लोगों को, धन्यवाद करना अपनी आदत बना लीजिए। दूसरों की प्रशंसा निष्कपटता से और बदले में किसी भी चीज की आशा रखे बिना कीजिये। जो भी आपके आसपास हैं, उनकी अगर सच्ची प्रशंसा करते हैं तो आप जल्दी ही दूसरों को अपने आस-पास पाएंगे। जीवन का सच्चे अर्थों में मान कीजिये और आप पाएंगे की आप ने इसे और पा लिया है।’