शोले फिल्म का एक मशहूर डायलॉग ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई‘, आज भी लोगों की जेहन में है, और इसी के साथ जहन में आता है एक चेहरा ए.के हंगल साहब का। ए.के हंगल का जन्म 1 फरवरी 1914 को सियालकोट(पाकिस्तान) में हुआ था। ए.के हंगल का पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। ये मुख्य रूप से कश्मीरी पंडित थे, जिन्होंने अपना ज्यादातर बचपन पेशावर में गुजारा था। ए.के हंगल के पिता का नाम हरिकिशन हंगल और माता का नाम रागिए हुंदू था। भारत को आजादी दिलाने में हंगल का भी योगदान रहा। 1930-47 के बीच स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हंगल ने विशेष भूमिका निभाई। इस दौरान उन्हें कई कष्टों का सामना भी करना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के दौरान जहाँ उन्हें तीन साल पाकिस्तानी कारावास की सजा भी हुई। वहीं साल 1944 में हंगल की पत्नी मनोरमा का निधन हो गया। पाकिस्तानी कारावास से सजा काटने के बाद जब हंगल ने अकेले ही अपने बेटे विजय की परवरिश अकेले ही की। 1949 में भारत विभाजन के बाद ए के हंगल मुंबई आ गए और बॉलीवुड में कदम रखा। लेकिन बॉलीवुड में कदम रखने से पहले ही एके हंगल रंगमंच से जुड़ चुके थे। वह 1936 से 1965 तक रंगमंच कलाकार भी रहे, और उन्होंने रंगमंच पर अपनी सेवाएं दीं। ए के हंगल ने 1966 मे आई बासु भट्टाचर्य निर्देशित फिल्म तीसरी कसम से बॉलीवुड मे डेब्यू किया। उस समय हंगल की उम्र 52 साल थी। हंगल बॉलीवुड मे सबसे अधिक उम्र मे कदम रखने वाले पहले अभिनेता थे। उनके बारे मे कहा जाता था कि- ‘ए के हंगल बॉलीवुड का वह अभिनेता है जो बूढ़ा ही पैदा हुआ है।’ फिल्मों में वह अक्सर मुख्य किरदार के करीबी के रूप में ही नजर आये है। हंगल को चरित्र अभिनेता भी कहा जाता था। फिल्म शोले में लोग उनके अभिनय को भुलाये नहीं भूलते, ‘शोले’ में अंधे ‘इमाम साहब’ के किरदार में, उनके अभिनय और उनका डायलॉग ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई’ आज भी दर्शकों की जुबान पर है। वहीं फिल्म शौकीन में उनकी रंग मिजाजी बुजुर्ग इंद्रसेन उर्फ एंडरसन के रूप में उनका अभिनय काबिले तारीफ है। ए.के हंगल ने नमक हराम, शौकीन, शोले, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज, बावर्ची, छुपा रुस्तम, चितचोर, बालिका वधू और गुड्डी जैसी कई फिल्मों में शानदार अभिनय किया और अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के दिलों को जीता भी। अपने पूरे फ़िल्मी करियर में हंगल ने 200 से ज्यादा फिल्मों मे अभिनय किया है। दर्शको का उनका हर किरदार चाहे वह शोले के इमाम चाचा का हो, या खुद्दार के रहीम चाचा या फिर नरम गरम के मास्टरजी का दर्शकों ने हर रूप मे उन्हें सराहा और पसंद किया है। साल 2005 में आई अमोल पालेकर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘पहेली’ हंगल साहब की आखिरी फिल्म थी। फिल्मों के अलावा ए.के हंगल टेलीविजन की कई धारावाहिकों में भी नजर आये, जिसमें जबान संभाल के, चंद्रकांता, मधुबाला एक इश्क एक जुनून आदि शामिल हैं। 96 वर्ष की उम्र में वे व्हीलचेयर पर बैठकर फैशन परेड में शामिल हुए थे। 97 वर्ष की उम्र में उन्होंने एनिमेटेड फिल्म में अपनी आवाज भी दी थी। ए.के. हंगल ने चार दशक से अधिक के करियर में लगभग 225 फिल्मों में काम किया। साल 2006 में ए.के हंगल को अभिनय जगत में दिए गए उनके सराहनीय योगदानों के लिए, भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लेकिन इन सब के बावजूद ए.के हंगल का अंतिम समय आर्थिक संकट मे गुजरा। हालांकि बाद में तन्हाइयों और गुमनामी के बीच जिंदगी गुजार रहे हंगल की मदद के लिए कई सितारे आगे आये। जिंदगी के आखिरी क्षणों में एक दिन ए.के हंगल अपने घर में ही बाथरूम में फिसलकर गिर गए जिसके बाद उनकी जांघ की हड्डी टूट गई और पीठ में भी चोट आई। इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया सर्जरी के लिए, लेकिन छाती और सांस लेने में तकलीफ के चलते सर्जरी नहीं की जा सकी। हालत और बदतर होती चली गई और फिर हंगल साहब को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रख दिया गया। धीरे-धीरे उनके फेफड़ों ने भी काम करना बंद कर दिया और फिर ए.के हंगल 26 अगस्त 2012 को दुनिया को अलविदा कह गए थे। लेकिन वह बॉलीवुड के ऐसे कलाकार है, जो आज भी दर्शकों के दिलों मे जीवित है। फिल्म जगत मे ए.के हंगल को फिल्मों मे उनके अभिनय और योगदान के लिए हमेशा याद किया जायेगा।